नई दिल्ली : अमेरिकी सैनिकों के वापसी के बाद अफगानिस्तान पर कब्जा जमा चुके तालिबान एक बार फिर अमेरिका के पुराने जख्म को कुरेदने की तैयारी कर रहा है, जिससे वो सीधे-सीधे अमेरिकी सरकार को चुनौती देगा। हालांकि उसने अपने इस कुटनीतिक चाल में अमेरिका को भी शामिल करने की कोशिश की है। आपको बता दें कि अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद तालिबान (Taliban) अपनी अंतरिम सरकार का ऐलान कर चुका है।
शपथग्रहण के लिए तय किया समय
सरकार के ऐलान के बाद तालिबान के अभी किसी मंत्री ने शपथ नहीं ली है। क्योंकि उसने शपथग्रहण के लिए जिस समय का चयन किया है। वो अमेरिकी इतिहास में एक काला दिन है। खबरों की मानें तो 11 सितंबर को तालिबान की नई सरकार का शपथग्रहण हो सकता है।
11 सितंबर अमेरिका को चुनौती?
11 सितंबर की ये तारीख सुपर पावर अमेरिका को एक चुनौती है, क्योंकि इस दिन तालिबान सरकार का शपथग्रहण अमेरिका के जख्म कुरेदने वाला हो सकता है। क्योंकि इसी दिन साल 2001 में अमेरिका स्थित विश्व व्यापार संगठन (WTO) के ट्विन टावर पर भीषण आतंकी हमला हुआ था और इस दिन तालिबान सरकार का गठन अमेरिका को सीधी चुनौती है।
शपथ ग्रहण समारोह के लिए इन देशों को निमंत्रण
रिपोर्टों के अनुसार, तालिबान की अंतरिम सरकार ने शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए भारत और अमेरिका के अलावा चीन, तुर्की, पाकिस्तान, ईरान और कतर सहित विभिन्न देशों को निमंत्रण दिया गया है। तालिबान अपनी सरकार को अंतरराष्ट्रीय मान्यता की मांग कर रहा है और उसने दूसरे देशों से अपने दूतावास फिर से खोलने के लिए भी कहा है।
तालिबान ने आतंकियों को बनाया मंत्री
मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद अफगानिस्तान का नया प्रधानमंत्री और अब्दुल गनी बरादर उप-प्रधानमंत्री होगा। तालिबान सरकार में कुल 33 मंत्रियों को शामिल किया गया है। इनमें से ज्यादातर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वॉन्टेंड हैं और उनके सिर पर इनाम भी हैं। अंतरिम प्रधानमंत्री मुल्ला हसन अखुंद पर संयुक्त राष्ट्र ने प्रतिबंध लगा रखा है। कार्यवाहक गृह मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी एफबीआइ के वांछितों की सूची में शामिल हैं और उस पर एक करोड़ डॉलर यानी करीब 73 करोड़ रुपये का इनाम है। शरणार्थी मंत्री खलील हक्कानी पर 50 लाख डॉलर यानी करीब 36.5 करोड़ रुपये का इनाम है। अब आप सोच सकते है कि तालिबान किस तरह की सरकार का गठन कर सकता है।