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सुशांत का यूं चले जाना एक बार फिर बॉलीवुड का काला सच उजागर कर गया

By: RNI Hindi Desk 
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सुशांत का यूं चले जाना एक बार फिर बॉलीवुड का काला सच उजागर कर गया

जितेंद्र शर्मा की कलम से { Editor In Chief } 

नाम सुशांत सिंह, उम्र सिर्फ 34 साल, एक अच्छा बेटा, एक अच्छा भाई, एक अच्छा अभिनेता, लेकिन अचानक से खबर आती है उसने आत्महत्या कर ली। एक बार तो विश्वास नहीं होता है।

21 जनवरी 1986 को बिहार के छोटे से गांव मल्डीहा गांव में पैदा हुए थे सुशांत। पूर्णिया जिले में आने वाले इस गांव के लोगों की तकदीर बस एक दुकान और सरकारी नौकरी तक सीमित रहती है।

एक छोटे से गांव में जन्मा एक लड़का जब अपनी मेहनत से, लगन से, आत्मविश्वास से सिर्फ 30 साल की उम्र में टीवी से लेकर बड़े परदे तक छा जाता है, दौलत शोहरत कमा लेता है तो यकीन करना ज़रा मुश्किल हो जाता है कि इतने संघर्ष के बाद ऐसा क्या हुआ जो खुद को मारने का निर्णय लिया।

कहा जा रहा है कि रात भर दोस्तों के साथ थे, सुबह दरवाज़ा नहीं खोला तो चिंता हुई। बाद में पता चला की फांसी लगा ली है। हालांकि पुलिस को कोई पत्र बरामद नहीं हुआ है।

पुलिस को जांच में गोलियां, पर्चियां मिली है। माना जा रहा है कि वो मानसिक तौर पर बीमार थे। एक ऐसा व्यक्ति जो अपनी मेहनत के दम पर और लोगों को प्रेरित कर रहा हो वो कैसे बीमार हो सकता है ?

कभी उन्हें देखकर, उनके हाव भाव देखकर लगा नहीं की बीमार है लेकिन यही मायानगरी की चकाचौंध के पीछे का काला सच है जो लोगों को नहीं पता है। पीएम मोदी ने लिखा कि एक उज्जवल अभिनेता चला गया, देश का पीएम तारीफ़ कर रहा है।

कारण है उनकी फिल्में, व्योमकेश बख्शी में जिस तरह उन्होंने किरदार निभाया वो ऐसा लग रहा था जैसे किसी मंझे हुए कलाकार ने किया हो। इस फिल्म के बाद वो युवाओं की प्रेरणा बन गए। सब कुछ तो था उनके पास। फिर क्या वजह थी की मौत को गले लगा लिया ?

दरअसल इस माया नगरी में दौलत शोहरत, नाम, ऑटोग्राफ के लिए पीछे भागते लोग, पार्टियां, नशा सब कुछ है। अगर कुछ नहीं है तो वो है अपनापन। यह एक ऐसा मायाजाल है जहां आपको दिखाया कुछ और जाता है और असली सच्चाई कुछ और होती है।

महंगी महंगी गाड़ियां, कपड़े, बड़े बड़े फ्लैट और आपकी दीवानी लड़कियां ऐसा क्या नहीं है जो मैंटेन नहीं करना होता। अंकिता लोखंडे के साथ काफी कम उम्र में सुशांत रिलेशनशिप में थे। कहते है कि परदे पर किसी लड़की को किस करना होता तो अंकिता से परमिशन लेनी होती।

जब एक व्यक्ति टीवी से फिल्मों में जाता है तो सब बदलता है। उसका व्यक्तित्व, उसकी लाइफस्टाइल, कभी कभी लोग अहंकारी भी हो जाते है। अंकिता के साथ उनके संबंध बिगड़ते गए। अंदर ही अंदर वो उस दौर से बाहर आना चाहते थे। जब आप फिल्में करते है तो आप पर दबाब होता है सफल होने का।

फिल्मे कोई 500 एपिसोड का धारावाहिक नहीं है कि एक एपिसोड में ठीक नहीं हुआ तो अगले में देख लिया जाएगा। सोन चिड़िया अच्छी फिल्म थी लेकिन नहीं चली। जैकलीन के साथ आयी ड्राइव तो सिनेमाघरों में रिलीज़ तक नहीं हो पायी। एक फिल्म बंद हो गयी। उधर अंकिता को छोड़ने के बाद ना जाने किस किस ने नाम जोड़ा गया।

कइयों का कहना है कि राब्ता फिल्म में काम करने के दौरान कृति से नजदीकी बढ़ी, किसी का कहना है की रिया चक्रवर्ती लेकिन सुशांत अंदर से खाली होते जा रहे थे। एक छोटे गांव का लड़का जब इतनी छोटी उम्र में इतना कुछ पा जाए तो खोने का डर बहुत रहता है। यही उनके साथ हुआ।

6 महीने पहले उन्होंने अपने डिप्रेशन का इलाज़ करवाना शुरू किया था। शार्ट टेम्पर उन्हें कहा जाने लगा था जब उन्होंने पद्मावती फिल्म की शूटिंग के दौरान संजय लीला भंसाली पर हुए हमले के बाद लिखा की मुझे राजपूत होने में शर्म आती है। उसके बाद उन्होंने राजपूत लिखना बंद कर दिया था।

उस दौरान लोगों ने लिखना शुरू किया की सफलता उनके दिमाग पर चढ़ गयी है। लोग उन्हें शार्ट टेम्पर कहने लगे। बीते कुछ समय में ना उनकी फिल्मे चली और ना ही पर्सनल लाइफ में कोई सहारा उन्हें मिल पाया।

ये मायानगरी का जाल ऐसा है की यहां किसके मन में क्या चल रहा है पता नहीं चलता है। दुःखद अंत ही भाग्य में लिखा होता है। सुशांत के साथ हुई इस घटना से मुझे याद आ रही है जिया खान, आमिर खान की गजनी में जब लोगों ने उसे देखा तो लगा की कुछ कमाल होगा लेकिन उसने सिर्फ 25 साल की उम्र में अपनी जान दे दी।

प्रत्युषा बनर्जी, एक जिंदादिल लड़की जिसने छोटे से शहर से आकर अपना मुकाम हासिल किया। बालिका वधु की आनंदी, जिसे पूरा देश प्रेम करता था अचानक से एक दिन वो खुद की जान ले लेती है। इनके पास किसी चीज़ की कमी नहीं थी।

कमी थी तो बस किसी अपने की। मायानगरी एक ऐसी खोखली जगह है जहां नशा करना, ड्रग्स लेना आम बात है। कुछ दिनों पहले जब सुशांत की ही मैनेजर ने आत्महत्या की तो उसके कमरे से शराब की बोतलें और ड्रग्स मिले। जब इंसान अंदर से टूट जाता है, खाली हो जाता है तो वो नशे में सहारा खोजने लगता है लेकिन कब तक ?

सुशांत को क्या बात परेशान कर रही थी वो राज़ तो उनके साथ ही चला गया लेकिन हमें एक सबक दे गया कि जीवन में दौलत ही सब कुछ नहीं है। अगर आपके पास मन की शांति नहीं है तो जीवन का कोई अर्थ नहीं। साधारण जीवन सबसे उच्च कोटि का जीवन है।

पुनश्च, सुशांत एक भावुक, मेधावी और एक ऐसे व्यक्ति के रूप में याद किये जायेगे जिसने खुद की मेहनत से बिना किसी गॉड फादर के एक मुकाम बनाया। ईश्वर उनकी आत्मा को अपने चरणों में स्थान दे। ॐ शांति।

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