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मेरी व्यथा सुनो : इन वेदनाओं में घिरा हुआ मैं JNU हूँ

By: RNI Hindi Desk 
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मेरी व्यथा सुनो : इन वेदनाओं में घिरा हुआ मैं JNU हूँ

खून से लथपथ मेरा परिसर और हाथ में सरिये लाठी और डंडे लिये हुए नकाबपोश गुंडे ! ये जो खून बह रहा है ना ये सिर्फ इन लड़के लड़कियों का ही खून नहीं बल्कि मेरे उस गौरवशाली अतीत का खून है जिसे बड़ी उम्मीदों से सींचा गया था।

ये मेरे साबरमती हॉस्टल का दृश्य है और इस नाम के आते ही आपके जहन में गाँधी उतर आये होंगे और उतर आयी होगी उनकी वो बात जिसमे वो अहिंसा से दुश्मन को जीतने की बात किया करते थे लेकिन उन्ही गांधी के कथन को कुछ ही घंटो में मेरी ही आँखों के सामने लहूलुहान कर दिया गया।

आपको आँखों में भी खून उतर आया होगा की आज देश का भविष्य लहूलुहान है और वही पीड़ा वही दर्द , कष्ट भी आज मेरे सीने में है, आज खून से लथपथ मैं JNU हूँ जिसका नाम देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के नाम पर रखा गया और जिसकी नींव पर ना जाने कितने सरस्वती के उपासको का भविष्य टिका हुआ है।

मैं JNU हूँ जिसकी गिनती देश की बड़ी यूनिवर्सिटी में होती है, मुझे वर्ष 2017 में भारत के राष्ट्रपति की ओर से सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय का पुरस्कार मिला, मैं जेएनयू बौद्धिक रूप से बेचैन, संतुष्ट न होने वाले जिज्ञासु और मानसिक रूप से कठोर लोगों के लिए ऐसा स्थान हूँ जो उन्हें रमणीय स्थल की शांति के बीच आगे बढने का मौका देता हूँ !

कई संकाय-सदस्यों और शोध छात्रों ने अपने अकादमिक काम के लिए प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीते हैं।

वैसे तो मुझे इतिहास में झांकने की कोई नौबत दिखाई नहीं देती लेकिन 5 जनवरी को मेरे ही छाती के ऊपर हिंसा का नंगा नाच किया गया, मेरे छात्रों को पीटा गया तो आज मेरी वेदना मेरी पीड़ा मेरा दर्द और मेरी छटपटाहट आज आपको सुनने की जरुरत है।

मेरा तो काम बस देश के भविष्य को तैयार करना है लेकिन मेरे ही आंगन में तांडव किया गया, मेरे ही घर में तोड़फोड़ की गयी, मेरे छात्र अक्सर देश की सत्ता को ललकारते हुए और गरीब की आवाज़ उठाते हुए नज़र आते है लेकिन मुझे ही राजनीति का अखाड़ा बना दिया, कुछ स्वार्थी और लालची नेताओ के हाथों में खेलता मैं JNU हूँ।

जिन बेटियों को बचाने की बात खुद देश के प्रधानमंत्री करते है उन्ही बेटियों को मेरे परिसर में पीटा जाता है, पत्थर मारे जाते है , मेरी बेटियां आज मेरे ही परिसर में सुरक्षित नहीं है। जिस देश में ईश्वर से पहले गुरु का आशीष लेने का विधान हो उन्ही शिक्षकों पर हमला किया किया।

किन गुनाहों की आज मैं कीमत चूका रहा हूँ ? धैर्य की कमी नहीं है मुझमे लेकिन अब मेरे सब्र का बाँध टूट रहा है, जिस देश में नारियों की पूजा करने की संस्कृति हो उसी देश में महिलाओ को मारना किसको शोभा देता है ? आखिर हमारी सभ्यता किस और जा रही है ? गुंडों की इस जमात ने मेरे सीने को छलनी कर दिया है।

किसी भी यूनिवर्सिटी की ताकत उसमे पढ़ने वाले छात्रों और उनके हाथ की कलम में होता है लेकिन वो कौन नकाबपोश है जो मेरे परिसर में कलम की बजाय अपने हाथो में तलवार और सरिये लेकर घूम रहे है ? कौन है वो लोग जो मेरे ही बच्चो को लड़ा रहे है ! मैंने तो किसी को पराया नहीं माना ! ये राइट विंग ये लेफ्ट विंग इन सबके आधार पर मैंने तो कभी भेदभाव नहीं किया लेकिन अब मेरा दम घुटने लगा है। क्या ये दिल कभी जुड़ पायेगे ?

मेरे वर्तमान में ज़हर घोलने का काम किया जा रहा है, बड़ी साजिश के तहत मेरे बच्चो को जख्मी किया गया लेकिन ये जख्म मेरे छात्रों को नहीं बल्कि मुझे दिये गये है। मेरे कैंपस में खुनी हिंसा का खेल खेला गया और पुलिस बस तमाशबीन बनी देखती रही, मेरा मन घायल है।

ऐसी क्या कमी मैंने रखी जो आज मेरे सीने पर ये दर्द दिया गया है ? क्या नहीं दिया मैंने ? विश्व स्तर की इमारत, देश के सबसे ज्ञानी और विद्वान शिक्षक मैंने दिए है ! क्या यही मेरा कसूर है ? वरना दिल्ली पुलिस की क्या हिमाकत की वो मेरी ही छाती पर चढ़कर धारा 144 लगा दे !

वैसे मेरा विवादों से आज का नाता नहीं है, मेरे छात्रों को तो देशद्रोही और आतंकी तक बोला गया है ! मुझे आज भी याद है 9 फरवरी की वो रात जब मेरे ही कुछ छात्रों ने भारत तेरे टुकड़े होंगे के नारे लगाये ! मैं कैसे उस पीड़ा को भूल जाऊं जब उसी रात भारत की बर्बादी तक जंग करने का एलान किया।

देश के लोकतंत्र की चौपाल संसद पर हमला करने की नापाक साजिश करने वाले अफ़ज़ल गुरु का महिमा मंडन भी तो मेरे ही आँगन में किया गया, जहां से विदेश मंत्री जयशंकर और वित्त मंत्री निर्मला पढ़ी हो उसी यूनिवर्सिटी में ” फ्री कश्मीर ” के झंडे लहराये गये।

मेरे जख्म अभी सूखे नहीं है, 15 मार्च 2016 को ही मेरे आँगन में खेलता हुआ एक बच्चा नजीब गायब हो जाता है ! उसकी बूढी माँ सबके सामने आकर गुहार लगाती रही लेकिन कोई उस बेटे को खोज नहीं पाया ! पता नहीं उसे ज़मीन खा गयी या आसमान निगल गया लेकिन वो आज तक नहीं मिला।

अंत में, मेरी व्यथा यही है की मेरे जीवन में उतार चढ़ाव के कई लम्हे आये है, वैसे तो मुझे न जाने कितनी पीड़ाओं के बीच आगे के रास्तों को खंगालना है जो मुझे उस मंज़िल तक लेकर जाये जिसके लिए मैं वज़ूद में आया।

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