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सेना में महिलाओं के स्थायी कमीशन भेदभाव पर SC की सख्त टिप्पणी, कहा- समाज पुरुषों ने पुरुषों के लिए बनाया

By: Amit ranjan 
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सेना में महिलाओं के स्थायी कमीशन भेदभाव पर SC की सख्त टिप्पणी, कहा- समाज पुरुषों ने पुरुषों के लिए बनाया

नई दिल्ली: सेना में महिलाओं के स्थायी कमिशन मामले में सुप्रीम कोर्ट से फैसला आने के बाद सभी महिला अधिकारी खुश हुई थी की अब उन्हें भी पुरूष सैनिकों की तरह स्थायी कमीशन मिलेगा। लेकिन इस फैसले के तकरीबन 1 साल गुजर गये, लेकिन महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन नहीं मिला। बल्कि उन्होंने इसके उलट सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल कर दी। आपको बता दें कि इस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट बेहद नाराज हुआ।

कोर्ट ने कहा कि इस बारे में दिल्ली हाई कोर्ट का पहला फैसला 2010 में आया था। सेना ने उसे लागू करने की बजाय सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने भी वही फैसला दिया। अब मूल फैसले के 10 साल बीत जाने के बाद फिटनेस और शरीर के आकार के आधार पर महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन न देना सही नहीं कहा जा सकता।

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और एम आर शाह की बेंच ने इस बात की आलोचना करते हुए कहा कि महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने में उनके पुराने एसीआर और शारीरिक फिटनेस के शेप-1 क्राइटेरिया को आधार बनाया जा रहा है। जजों ने कहा कि 45 से 50 साल की महिला अधिकारियों के फिटनेस का पैमाना 25 साल के पुरुष अधिकारियों के बराबर रखा गया है। यह भेदभाव है।

137 पन्ने के फैसले में कोर्ट ने कहा कि कई ऐसी महिला अधिकारियों को भी स्थायी कमीशन नहीं दिया जा रहा है, जिन्होंने अतीत में अपनी सेवा से सेना और देश के लिए सम्मान अर्जित किया है। महिलाओं के साथ हर जगह होने वाले भेदभाव पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा कि, “हमारी सामाजिक व्यवस्था पुरुषों ने पुरुषों के लिए बनाई है। इसमें समानता की बात झूठी है। हमें बदलाव करना होगा। महिलाओं को बराबर अवसर दिए बिना रास्ता नहीं निकल सकता।”

कोर्ट ने सेना से 1 महीने में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने पर विचार करने और  2 महीने में अंतिम फैसला लेने के लिए कहा है। आपको बता दें कि कोर्ट के इस फैसले से करीब 150 महिला अधिकारियों को इससे लाभ होने की उम्मीद है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि वह मेडिकल फिटनेस के पैमाने को खारिज नहीं कर रहा है। सिर्फ इस विशेष केस में कुछ रियायत दी है रही है।

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