{ मथुरा से शुभम की रिपोर्ट }
कान्हा का प्रेम रंग ही इतना मनमोहक और गहरा है कि जो एक बार इसको देख भर ले वह इसमे सराबोर होना चाहता है चाहे वह हिंदुस्तानी हो या सात समंदर पार से आये सैलानी।
मंच पर रासलीला, लट्ठमार होली व फूलों की होली खेल रहे यह विदेशी राधा कृष्ण है जो सिर्फ सात दिनों में ही भारतीय संस्कृति से इतने प्रभावित हुए कि अब कान्हा के प्रेम रंग से अमेरिका के न्यू टाउन को रंगते नजर आएंगे।
अमेरिका के न्यू टाउन शहर से भारतीय संस्कृति को पढ़ने जानने आये इन लोगो को भारतीय संस्कृति व सभ्यता ने इतना प्रभावित किया, सिर्फ सात दिनों में ही वृन्दावन के वात्सल्य ग्राम में भारतीय संस्कृति को अपने आप मे उतार लिया और बिना किसी झिझक के इतने विश्वास से राधा कृष्ण की लीलाओं को जीवंत कर रहे है।
अपनी कला से सबको रिझाने वाले विदेशी कृष्ण व राधा ने भाव साझा करते हुए कहा कि हम लोग यहाँ भारतीय संस्कृति व सभ्यता जानने आये थे लेकिन यहाँ जीवन जीना एक अलग ही आंनद देने वाला है । यहाँ की संस्कृति जीवन को नया आयाम देने वाली है हमने यहाँ होली खेली बहुत अच्छा लगा ।
भारतीय संस्कृति व कान्हा के प्रेम रंग में सराबोर होते विदेशी बच्चों को देख साध्वी ऋतंभरा ने कहा कि यह दो संस्कृति और सभ्यता का मिलन है। क्योंकि पश्चिम के लोगों को भारत के प्रति भारी आकर्षण है। हमारी संस्कृति और हमारा ज्ञान जो है सबसे खूबसूरत चीज है।
8 दिन में ही बच्चों ने कितना भारत को जिया है भावों को जिया है और सबसे बड़ी भाषा प्रेम की भाषा होती है और प्रेम के लिए किसी भाषा की जरूरत नहीं होती है।
ब्रज का सबसे बड़ा रंग तो होली का रंग है और यह श्री राधा और श्रीकृष्ण के प्रेम तरंगे यह निस्वार्थ प्रेम का रंग है। निष्काम प्रेम करेंगे जिसको एक ना एक दिन पूरी दुनिया को रंगना ही होगा तभी सारी मनुष्यता आनंद पाएगी सुख पाएगी।
हमारी अतिथि देवो भव की जो संस्कृति है भारत की वह निश्चित रूप से सबके दिलों को छूती है। मुझे लगता है कि सारी दुनिया एक परिवार बने एक दूसरे के हो जाएं हम दूसरों के आंसू पहुंचने में सार्थक हो और यही संदेश आज के कार्यक्रम से मैं सारी दुनिया को देना चाहती हूँ ।