क्योंकि इंसान का मन पकड़ में आता नहीं, इसलिए दूसरों को पता नहीं चलता, लेकिन यह सत्य है कि मनुष्य दो बातों पर सर्वाधिक ध्यान देता है। दूसरे के शरीर पर और अपने स्वयं के शरीर पर।
फिर शरीर का अगला कदम होता है। धन, वासना, भोग आदि। पर शुरुआत होती है शरीर से ही भोग और रोग दोनों के लिए शरीर टोल टैक्स नाके की तरह है। इस समय शरीर को बिल्कुल ऐसे बचाया जाए, जैसे सास-बहू के रिश्ते को इधर से उधर की लगाने वाली स्त्री से बचाना पड़ता है।
वरना कितनी ही परिपक्व सास या समझदार बहू हो लड़े बिना नहीं रहेगी। क्योंकि इस समय लगभग सभी या अधिकतर लोग जिनके पास थोड़ी सी भी समझ है, इस महामारी के आंकड़ों और उनसे जुड़ी खबरों में रुचि ले रहे हैं।
कई तो अधिकांश समय इसी के बारे में सोचते रहते हैं। उसके साथ ऐसा हो गया हम कैसे बचें, कहीं लपेटे में न आ जाए और फिर झंझट चालू हो जाता है।
पिछले दिनों एक डॉक्टर ने मुझे बहुत अच्छी बात बोली कि जैसे डायबिटीज लाइफ़स्टाइल डिसीज है वैसे ही अब कोरोना को मान लेना चाहिए।
इस महामारी को जीवन शैली से जोड़ लीजिए और जीवनशैली को ही इसका इलाज बनाइए। वरना इस ने हमें मजबूर तो बना ही दिया है। अगले चरण में पागल भी बना सकती है।