एक भारतीय उपभोक्ता के रूप में हम कई तरह की उच्च गुणवत्ता वाली वस्तुओं और सेवाओं तक पहुंच का फायदा उठा रहे हैं जो भारत से बाहर उत्पादित होती हैं, चाहे वह मोबाइल फोन हो या लग्जरी कार।
वैश्विक स्तर पर देखें तो बहुत तरह के इनोवेशन या नवाचार हो रहे हैं जो कि हमारे दिन-प्रतिदिन के जीवन पर असर डाल रहे हैं, विभिन्न तरह के उद्योगों में आमूल बदलाव करने वाले। और इन सबका निवेश के लिहाज से भी निहितार्थ होता है। इस समय की बात करें तो भारतीय शेयर बाजार में बहुत कम इनोवेटर सूचीबद्ध है।
भारत भले ही पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हो, लेकिन हमारे यहां की बाजार पूंजी करीब 2.1 ट्रिलियन (लाख करोड़) डॉलर ही है, जबकि बाकी दुनिया की बाजार पूंजी 90 ट्रिलियन डॉलर के करीब है। तो आप यदि भारत से बाहर वैश्विक बाजारों में निवेश नहीं करते हैं, तो इसका मतलब यह है कि आप उस अवसर को नजरअंदाज कर रहे हैं जो करीब 43 गुना ज्यादा है।
निवेश के साथ जोखिम जुड़ा होता है और इस जोखिम को खत्म नहीं किया जा सकता, लेकिन डायवर्सिफिकेशन यानी विविधीकरण के द्वारा कम जरूर किया जा सकता है। सभी तरह के एसेट (परिसंपत्ति) में निवेश का विविधीकरण करना और किसी एक एसेट में भी विविधीकरण करना जोखिम के प्रबंधन का मूल है।
ग्लोबल फंडों/शेयरों में निवेश से आपको रुपये के अवमूल्यन का फायदा उठाने में भी मदद मिलती है। पिछले 35 साल में रुपया हर साल औसतन 6 फीसदी अवमूल्यित हुआ है। तो यदि आप अपने बेटियों या बेटों को अगले कुछ वर्षों में विदेश में पढ़ाने की तैयारी कर रहे हैं तो आपको बढ़ती फीस और रुपये के अवमूल्यन की वजह से ज्यादा रकम चुकानी पड़ सकती है।
वैश्विक शेयर बाजारों में निवेश भारतीय निवेशकों के लिए तुलनात्मक रूप से नई बात है। यह यात्रा लगभग उसी तरह से है जैसे निवेशक इक्विटी म्युचुअल फंडों में निवेश करता है। अब हमारे देश में निवेशकों का ऐसा वर्ग है जिन्होंने कई चक्र में निवेश किया है और एक अवधारणा के रूप में म्युचुअल फंडों के साथ सहज हैं।
वे अब सामान्य संवाद से आगे बढ़ रहे हैं और अपने सलाहकारों से ऐसी रणनीतियों पर बात करने लगे हैं कि इक्विटी और डेट से भी आगे किस तरह से पोर्टफोलियो में विविधता लाई जाए, एक एसेट वर्ग के रूप में किस तरह से करेंसी का फायदा उठाया जाए और ऐसे वैश्विक कारोबारों में कैसे हिस्सेदारी ली जाए जिनका भारतीय स्टॉक एक्सचेंजों में प्रतिनिधित्व नहीं है।
अब ज्यादा लोग इस तथ्य को स्वीकार करने लगे हैं कि बाजारों में उतार-चढ़ाव का स्रोत दुनिया में कहीं से भी हो सकता है और आगे के लिए एकमात्र रास्ता यही है कि अपने पोर्टफोलियो का जितना संभव हो सके उतने एसेट वर्ग में विविधीकरण किया जाए। इसी वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निवेश का आकर्षण बढ़ रहा है।
म्युचुअल फंडों के द्वारा वैश्विक इक्विटीज यानी शेयरों में निवेश के नफा-नुकसान पर बात करते हैं। निवेशकों के सामने दो विकल्प होते हैं। 1- सीधे वैश्विक इक्विटीज में निवेश करना। 2-म्युचुअल फंडों में निवेश करना।
सीधे वैश्विक शेयरों में निवेश करने के कई फायदे हैं जैसे निवेशक अपनी समझ, सुविधा और सूझबूझ के मुताबिक कुछ चुनींदा शेयरों के पोर्टफोलियो पर अपना ध्यान केंद्रित रख सकता है (एक शेयर से लेकर 10 शेयरों तक)। उसका इसमें पूरा नियंत्रण होता है और यह एक आसान विकल्प लग रहा है। लेकिन इसीलिए यह किसी मंझे हुए निवेशक ही लिए ही है जिसके पास पर्याप्त संसाधन और समय हो।
इसके अलावा, उसके पास ऐसी क्षमताएं होनी चाहिए कि वह ऐसी वैश्विक घटनाओं को पहचान सके और उन पर नजर रख सके जो उसके शेयरों पर असर डाल सकती हैं, ऐसे निवेशक के पास अनुपालन और नियामक मसलों से भी निपटने की क्षमता होनी चाहिए।
उदाहरण के लिए इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) के शेड्यूल एफए में निवेशकों को अपने पास रहने वाले विदेशी एसेट का विस्तृत ब्योरा देना अनिवार्य होता है। इसी तरह, लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम (LRS) के तहत प्रति व्यक्ति के सालाना 2.5 लाख डॉलर ही भेजने की सीमा तय है।
किसी म्युचुअल फंड में निवेश करने (चाहे वह इंटरनेशनल फंड ऑफ फंड्स हो या फीडर फंड) के कई फायदे हैं, जैसे-