रिपोर्ट: सत्यम दुबे
नई दिल्ली: आचार्य चाणक्य का नाम आते ही लोगो में विद्वता आनी शुरु हो जाती है। इतना ही नहीं चाणक्य ने अपनी नीति और विद्वाता से चंद्रगुप्त मौर्य को राजगद्दी पर बैठा दिया था। इस विद्वान ने राजनीति,अर्थनीति,कृषि,समाजनीति आदि ग्रंथो की रचना की थी। जिसके बाद दुनिया ने इन विषयों को पहली बार देखा है। आज हम आचार्य चाणक्य के नीतिशास्त्र के उस नीति की बात करेंगे, जिसमें उन्होने बताया है कि जिस व्यक्ति के जीवन में ये दो सुख हैं, उसके लिए स्वर्ग यहीं हैं, आइये जानते हैं कि आचार्य चाणक्य ने क्या बताया है।
आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतिशास्त्र में बताया है कि मनुष्य को एक जिम्मेदार और श्रेष्ठ नागरिक बनने के लिए शिक्षा ग्रहण करना चाहिए। उन्होने तर्क दिया है कि शिक्षा ही वह एक मात्र माध्यम है जिससे आपको जीवन में किन चीजों को अपनाना चाहिए और किन चीजों का त्याग करना चाहिए ज्ञान करा सकती है।
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि व्यक्ति को स्वर्ग की कामना नहीं करना चाहिए क्योंकि अगर आपका पुत्र आज्ञाकारी, पत्नी वेदों के अनुसार जीवन जीने वाली और अपने वैभव से जो संतुष्ट है उसके लिए स्वर्ग यहीं है।
चाणक्य ने इसका महत्व बताते हुए कहा है कि जिस व्यक्ति का पुत्र आज्ञाकारी होता है। उसका जीवन धन्य हो जाता है। वहीं पत्नी अगर वेदों को पढ़ती है, और वेदों की शिक्षाओं पर अमल करती है वहां सुख, शांति और समृद्धि स्थाई होती है। इसी प्रकार जब व्यक्ति अपने कार्यों और उपलब्धियों से संतुष्ट होता है उसका जीवन दुख और कष्टों से पूरी तरह से मुक्त होता है। जिसके पास ये सुख है उसके लिए यह धरती ही स्वर्ग के समान है।