मनुष्य की जन्मपत्री में 12 भाव होते है जिन्हें 9 ग्रह नियंत्रित करते है। इनमे से रोग ऋण का कारक मंगल, वहीं कर्म और लाभ का कारक शनि माना जाता है। मंगल और शनि दोनों पाप ग्रह है और इनका कुंडली में बलवान होगा बहुत जरुरी है।
अगर ये दो ग्रह बलवान नहीं हो तो मनुष्य जीवन भर कर्ज में डूबा रहता है और उसे किसी भी कार्य में सफलता नहीं मिलती है। कुंडली में अगर शनि मजबूत नहीं हो जातक का बार बार एक्सीडेंट होता है।
इसके अलावा मृत्यु यानी आठवें भाव का कारक भी शनि ही होता है, इसलिए जब शनि बलवान नहीं होता तो जातक को हर कार्य में बाधा आएगी और वहीं उस पर तंत्र का प्रभाव भी बड़ा जल्दी हो जाता है।
इसलिए इन दो ग्रहों को प्रसन्न रखना बड़ा जरुरी है। मंगल रक्त का कारण है, भूमि का कारक है। अगर मंगल अच्छा नहीं हो तो जातक को रक्त संबंधी बीमारी होती है। मंगल के प्रतिनिधि हनुमान जी है।
इसके अलावा रावण की सभा से जब शनि को हनुमान जी ने आजाद करवाया, तो शनि ने उन्हें वचन दिया की मैं आपके साधक को कभी परेशान नहीं करुँगा।
इसलिए इन दो ग्रहों को अगर प्रसन्न रखना है तो जातक को हनुमान जी की साधना करनी चाहिए। इसके लिए हर मंगलवार को नारियल और सिंदूर हनुमान जी को भेंट करना चाहिए।
इसके बाद एक गुलाब के फूलों की माला लेकर हनुमान जी को पहनाए, और घी का दीपक जलाकर हनुमान चालीसा का पाठ करें। वहीं शनिवार के दिन शनि मंदिर में जाकर शनि देव को तेल अर्पण करके हनुमान जी के सामने बैठकर सुंदरकांड का पाठ करें।
हर शनिवार को किसी हनुमान की के मंदिर में जाकर उन्हें सिंदूर अवश्य अर्पित करे। उन्हें सिंदूर प्रिय है और ऐसा करने से जल्दी ही वो प्रसन्न हो जाते है।
ये सारे उपाय करने से आप पर हनुमान जी की कृपा बरसेंगी और शनि, मंगल से जुड़े हुए सारे सुख आपको प्राप्त होंगे।