रिपोर्ट: सत्यम दुबे
नई दिल्ली: आचार्य चाणक्य का नाम आते ही लोगो में विद्वता आनी शुरु हो जाती है। आचार्य चाणक्य ने अपनी नीति और विद्वाता से चंद्रगुप्त मौर्य को राजगद्दी पर बैठा दिया था। इस विद्वान ने राजनीति,अर्थनीति,कृषि,समाजनीति आदि ग्रंथो की रचना की थी। जिसके बाद दुनिया ने इन विषयों को पहली बार देखा है। आज हम आचार्य चाणक्य के नीतिशास्त्र के उस नीति की बात करेंगे, जिसमें उन्होने बताया है कि अपने से शक्तिशाली शत्रु का सामना कैसे करें और किन बातों रखें ध्यान?
आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में बताया है कि जब शत्रु आपसे अधिक शक्तिशाली हो तो उस समय छिप जाना चाहिए और सही समय आने का प्रतीक्षा करनी चाहिए। उसके बाद स्वयं की शक्ति को बढ़ाने के विषय में कार्य करना चाहिए एवं अपने शुभचिंतकों को एकत्रित करने के बाद रणनीति बनानी चाहिए और शत्रु पर वार करना चाहिए।
उन्होने आगे बताया है कि शत्रु की प्रत्येक गतिविधि पर नजर रखकर उसकी कमजोरियों का पता लगाकर उसे परास्त किया जा सकता है, इसलिए शत्रु की गतिविधियों पर नजर रखें और समय आने पर उसे पराजित करें।
आचार्य चाणक्य की नीति शास्त्र से आप सीख सकते थे, हर सफल व्यक्ति के शत्रु अवश्य होते हैं। जिनमें से कुछ शत्रुओं के बारे में हमें पता होता है तो वहीं कुछ अज्ञात शत्रु भी होते हैं। ये शत्रु आपको सीधे नुकसान न पहुंचाकर छिपकर वार करते हैं। ऐसे शत्रु बहुत ज्यादा घातक साबित होते हैं। ऐसे शत्रुओं का पता लगाने के लिए बहुत सतर्क रहने की आवश्यकता होती है। अचानक वार होने पर घबराने की बजाय शत्रु की हर चाल का डटकर मुकाबला करना चाहिए।