दस महाविद्या विभिन्न दिशाओं की अधिष्ठातृ शक्तियां हैं। भगवती काली और तारा देवी- उत्तर दिशा की, श्री विद्या ईशान दिशा की, देवी भुवनेश्वरी पश्चिम दिशा की, श्री त्रिपुर भैरवी दक्षिण दिशा की,
माता छिन्नमस्ता, भगवती धूमावती पूर्व दिशा की, माता बगलामुखी अग्नि दिशा की, भगवती मातंगी वायव्य दिशा की तथा माता श्री कमला र्नैत्य दिशा की अधिष्ठातृ है।
यह दस महविद्या भगवान विष्णु के 10 अवतारों को दर्शाती है जिसका मूल मत यह है कि नारी सर्व शक्तिमान और महान होती है और साधक इन 10 शक्तियों की आराधना ही गुप्त नवरात्रों में करते है और सिद्धि प्राप्त करते है।
दस महविद्याओं के उप्तन्न होने की कथा का वर्णन देवी भागवत में आता है, दरअसल दक्ष प्रजापति की बेटी सती ने भगवान शिव से विवाह किया था जिसके कारण उनके पिता उनसे नाराज रहते थे, इसी कारण उन्होंने शिव को अपमानित करने के लिए एक यज्ञ का आयोजन किया।
इस कथा का वर्णन मूल भागवतम के चौथे स्कंध में भी है, दरअसल जब सती उस आयोजन में जाने की ज़िद करने लगी तो शिव ने उन्हें रोकने की कोशिश की लेकिन माता सती शिव से विवाद करने लगी और धीरे धीरे उनका शरीर काला पड़ने लगा।
बहस को ज्यादा बढ़ते देख शिव ने वहां से प्रस्थान कर दिया लेकिन उन्होंने एक दिव्य और भयानक स्वरुप को अपने सामने देखा, जब वो दूसरी दिशा में आगे बढ़े तो भी वही रूप देखा और ऐसे करके वो दस दिशाओं में गए और बार बार ऐसे रूप देखकर वो हल्का सा भयभीत हो गये।
पति को भयभीत जान सती ने उन्हें रोका और एक बार फिर वो दस रूप एक हो गए और इन्ही १० रूपों को महाविद्या के नाम से सम्बोधित किया गया, सती ने इन 10 रूप की साधना करने वाले को धर्म, भोग, मोक्ष और अर्थ की प्राप्ति का वरदान दिया और इन्ही 10 रूपों का समाहित रूप माता काली को माना गया है।