रिपोर्ट : मोहम्मद आबिद
नई दिल्ली : उत्तराखंड के चमोली में एक बार फिर प्रकृति का कहर दिखाई दे रहा है लेकिन इस पूरे मामले को लेकर कुछ लोग विज्ञान से जोड़ कर देख रहे हैं और कुछ लोग इसे धार्मिक भावना से जोड़कर देख रहे हैं बतादें की साइंटिफिक टीमों ने अभी तक इस बारे में अपनी जांच शुरू नहीं की है। राहत और बचाव कार्य भी अबतक पूरा नहीं हो सका है।
वहीं इसी के बीच में सैटेलाइट से कुछ तस्वीरें सामने आईं हैं जो इस बीच सामने आए नए सबूत इशारा करते हैं यह आपदा शायद हिमस्खलन या लैंडस्लाइड्स के चलते आई रुकावटों से बने अस्थायी तालाब या झील में दरार पड़ने से आई है जहां तकनीकी रूप से इसे लैंडस्लाइड लेक आउटबर्स्ट फ्लड कहते हैं।
उत्तराखंड के चमोली में आई इस सैलाब में घटना पर नजर बनाए हुए साइंटिस्ट्स ने सैटलाइट तस्वीरों का अध्ययन किया है। रॉयल कनैडियल जियोग्रैफिकल सोसायटी के डॉ डैन शूगर ने प्लैनेट लैब्स की सैटलाइट इमेजेज में एक खास चीज नोट की। इसके मुताबिक, रैंणी गांव के पास एक पहाड़ पर जमी बर्फ का एक बड़ा हिस्सा रविवार को गिर गया और शायद वहीं फ्लैश फ्लड की वजह बना। जो हिमस्खलन हुआ उससे नदियों में करीब 3 से 4 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी पहुंचा गया।
देहरादून स्थित वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी ने भी इस घटना की शुरुआती जांच की है। वहां ग्लेशियोलॉजी एंड हाइड्रोलॉजी डिविजल के हेड संतोष राय ने कहा है की “सैटलाइट इमेजिंग के जरिए हमारी शुरुआत जांच इशारा करती है कि बाढ़ की वजह बर्फ पिघलना रही, ग्लेशियल लेक का फटना नहीं। हमें इस बारे में और जांच की जरूरत है। हमने वैज्ञानिकों की दो टीमें साइट पर भेजी हैं और जांच पूरी होने पर हमारे पास पुख्ता जानकारी होगी।”
Satellite images from @planetlabs show that the disaster in Uttarakhand's Chamoli district on Sunday was caused by a large landslide onto a glacier, which transitioned into the flood. The first person to identify this was Dr Dan Shugar – @WaterSHEDLab https://t.co/3TCh2Cf0nt pic.twitter.com/ygmxU3uXqa
— Dave Petley (@davepetley) February 7, 2021
सैटलाइट तस्वीरों से की जा रही जांच में सामने आया है की 2 फरवरी को घाटी में बर्फ नहीं थी लेकिन 5 और 6 फरवरी को भारी हिमपात हुआ। यह ताजा बर्फ 7 फरवरी को पिघलनी शुरू हुई और एक तरफ बर्फ का ढेर लगता चला गया जिसका नतीजा हिमस्खलन हुआ। जैसे-जैसे यह बर्फ घाटी से नीचे आती गई, उसकी रफ्तार और गतिज ऊर्जा बढ़ती चली गई। इसकी वजह से रास्ते में पानी और मिट्टी की मात्रा बढ़ती चली गई।”