{ श्री अचल सागर जी महाराज की कलम से }
जिज्ञासा एक ऐसा शब्द है जिसका जीवन में बड़ा महत्व है। जिज्ञासा मनुष्य के जीवन के उत्थान का कारण बन सकती है अगर इसे सही मायनों में समझा जाए।
जिज्ञासा का शाब्दिक अर्थ है किसी भी चीज़ को जानने और समझने की कोशिश करना। लेकिन निर्भर करता है की जिज्ञासा हो किस चीज़ के बारे में रही है।
परीक्षित शुकदेव से धर्म और भक्ति के बारे में जिज्ञासा कर रहे है तो भागवत पुराण जैसा महान ग्रन्थ इस संसार को मिला। वही अगर को ताश के पत्तों के बारे में जिज्ञासा करे तो संसार को एक जुआरी मिल जाएगा।
इसलिए वेदों में काल भेद का वर्णन किया गया है। वेद पुराणों में क्या है ? जिज्ञासा ही तो है ! प्रश्न उत्तर है, लेकिन जीवन के उत्थान के। जीव के कल्याण के।
पार्वती जब शिव से राम शब्द को समझने की जिज्ञासा करती है तो संसार में राम कथा का जन्म हो जाता है।
जब तुलसीदास जी खुद के बारे में जिज्ञासा करते है कि मेरा अस्तित्व क्यों है तो रामचरितमानस जैसे महान काव्य की रचना होती है।
जिज्ञासा के साथ एक समस्या भी जुड़ी हुई है और वो है किसी सही गुरु मार्गदर्शक का होना। जरा सोचिये की कोई यह जिज्ञासा कर दे कि मेरी आत्मा का उत्थान कैसे हो ? लेकिन आपके पास ऐसा मार्गदर्शक ही नहीं तो क्या होगा ? वहां भी आप चूक जायेगे।
अर्जुन ने जिज्ञासा की जानने की लेकिन उसके पास कृष्ण थे, तो कर्म योग का ज्ञान मिला लेकिन हमारे पास कृष्ण नहीं है लेकिन कृष्ण का दर्शन तो है। पुराण है।
बच्चों को कम उम्र में ही पुराण पढ़वाइए, इसका फायदा यह होगा की वो जिज्ञासा करेंगे और उसका फायदा यह होगा कि वो और धर्म को समझने की कोशिश करेंगे।