जन सुराज पार्टी के नेता प्रशांत किशोर को आज 6 जनवरी 2025 को बिहार पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। प्रशांत किशोर 70वीं बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) संयुक्त प्रारंभिक परीक्षा (CCE) में पेपर लीक के आरोपों को लेकर परीक्षा रद्द कराने और अन्य मांगों को लेकर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे थे। उन्होंने आरोप लगाया है कि पुलिस ने उन्हें जबरन हटाने के दौरान थप्पड़ मारा और दुर्व्यवहार किया।
2 जनवरी से भूख हड़ताल पर थे प्रशांत किशोर
प्रशांत किशोर 2 जनवरी से पटना के गांधी मैदान में भूख हड़ताल पर बैठे थे। वह पांच मुख्य मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे। इनमें 70वीं BPSC परीक्षा में हुई अनियमितताओं की उच्चस्तरीय जांच, 2015 के 7 निश्चय वादे के अनुसार 18 से 35 वर्ष के बेरोजगार युवाओं को बेरोजगारी भत्ता देने की मांग शामिल है। उन्होंने पिछले 10 वर्षों में प्रतियोगी परीक्षाओं में पेपर लीक की घटनाओं पर श्वेत पत्र जारी करने और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की। इसके अलावा, 29 दिसंबर को छात्रों पर हुए लाठीचार्ज के लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई और बिहार की सरकारी नौकरियों में युवाओं के लिए दो-तिहाई आरक्षण सुनिश्चित करने हेतु अधिवास नीति लागू करने की बात भी उनकी मांगों में शामिल थी।
पुलिस ने गांधी मैदान को निषिद्ध क्षेत्र बताते हुए प्रशांत किशोर को वहां से हटने की चेतावनी दी थी। जब उन्होंने हटने से इनकार किया, तो पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। जन सुराज पार्टी ने आरोप लगाया कि गिरफ्तारी के दौरान पुलिस ने प्रशांत किशोर के साथ दुर्व्यवहार किया और थप्पड़ मारा। इस घटना के बाद पार्टी के कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन करते हुए पुलिस कार्रवाई की कड़ी निंदा की और इसे लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन बताया।
इस घटना ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है। विपक्षी दलों ने भी प्रशांत किशोर की मांगों का समर्थन करते हुए राज्य सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने प्रतियोगी परीक्षाओं में लगातार हो रही अनियमितताओं और युवाओं के भविष्य को लेकर सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए हैं।
प्रशांत किशोर की गिरफ्तारी और उनकी मांगों ने राज्य में बड़ा मुद्दा खड़ा कर दिया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि राज्य सरकार इन मांगों पर क्या कदम उठाती है और विपक्ष इस मामले को लेकर सरकार को कितना घेर पाता है।
क्या होगी सरकार की प्रतिक्रिया?
प्रशांत किशोर की गिरफ्तारी और उनकी मांगें बिहार की राजनीति में बड़ा मुद्दा बन सकती हैं। अब देखना होगा कि राज्य सरकार इन मांगों पर क्या कदम उठाती है और क्या विपक्ष इस मुद्दे को लेकर सड़क से विधानसभा तक सरकार को घेरने में सफल होता है।