भारतीय जनता पार्टी के सीनियर नेता और हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। इस पत्र में उन्होंने आग्रह किया है कि दलाई लामा को भारत रत्न दिया जाए।
शांता कुमार ने अपने पत्र में संयुक्त राष्ट्र में तिब्बत मुद्दा उठाने की भी वकालत की है। कुमार ने कहा कि 1950 में जब चीन को तिब्बत पर अधिकार जमाने दिया गया, उस वक्त तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने ‘‘पाप किया’’।
बीजेपी नेता ने कहा, ‘‘आज चीन दुनिया में अकेला पड़ गया है।’’ उन्होंने कहा कि 1950 की गलती को सुधारने का यह सुनहरा अवसर है। भारत द्वारा दलाई लामा को सम्मानित किए जाने और तिब्बत मुद्दा संयुक्त राष्ट्र में उठाए जाने के दो कदमों से, चीन का पूरी दुनिया के सामने पर्दाफाश हो जाएगा।BJP leader wrote letter to PM Modi’’
बता दें कि तेनजिन ग्यात्सो 14वें दलाई लामा हैं। दलाई लामा की उम्र 85 साल है। और वे आध्यात्मिक नेता है। उन्हें 61 साल पहले 1959 तिब्बत से भागना पड़ा था। तब से वो भारत में रह रहे हैं।
ऐसा कहा जाता है कि दलाई लामा 17 मार्च को तिब्बत की राजधानी ल्हासा से पैदल ही निकले थे। दरअसल तिब्बत संकट की शुरुआत 1951 से हुई। आजाद तिब्बत पर चीन ने हजारों सैनिकों को भेजकर कब्जा कर लिया था।
चीनी कब्जे के बाद तेनजिन ग्यात्सो को 14वें दलाई लामा के तौर पर पद पर बैठाया गया। फिर तिब्बत के 14वें दलाई लामा 1959 में भागकर भारत आ गए थे। भारत ने उन्हें राजनीतिक शरण दी थी और तब से वे हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में रह रहे हैं।
यात्रा के दौरान उनकी और उनके सहयोगियों की कोई ख़बर नहीं आने पर कई लोग ये आशंका जताने लगे थे कि उनकी मौत हो गई होगी।तिबब्त और चीन के बीच पहले से ही तनाव चला आ रहा था, जिसकी वजह थी चीन का तिब्बत को अपना हिस्सा मानना।
इसपर बातचीत के लिए चीन ने दलाई लामा को अपने यहां आने का न्यौता दिया लेकिन उसकी शर्त थी कि वे बिना किसी सुरक्षा के आएं।ये चीन की कोई चाल हो सकती थी। ये समझने के बाद तिब्बतियों ने अपने धर्म गुरु को चीन जाने से रोक दिया।
वार्ता शुरू होने से पहले ही विफल देखकर भड़के हुए चीन ने योजना बनाई और साल 1959 में आजाद तिब्बत पर भारी संख्या में चीनी सैनिकों ने हमला किया और उसपर कब्जा कर लिया।इससे पहले से ही चीनी जनवादी गणराज्य और तिब्बतियों के बीच लड़ाई चल रही थी। माना जाता है कि इस लड़ाई में लगभग 87,000 तिब्बती मारे गए।