{ श्री अचल सागर जी महाराज की कलम से }
संसार में ज्ञान का अपना महत्व है, बड़ा बड़भागी होता हैं वो पुरुष जसी विद्या प्राप्त होती है। ज्ञान ही सही मायनों में मनुष्य को उसके होने का अहसास करवाता है।
ज्ञान ही मनुष्य को यह अनुभव देता है कि भौतिक जगत तो सिर्फ कर्तव्यों को पूर्ण करने का स्थान भर है असली सत्य तो श्री भगवन है।
साहित्यसङ्गीतकलाविहीनः साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः । तृणं न खादन्नपि जीवमानस्तद्भागधेयं परमं पशूनाम् ॥
हमारे ग्रंथों में यह लिखा गया है कि जिस इंसान को साहित्य, संगीत और कला की समझ नहीं है वो पशु के समान है। क्यूंकि मनुष्य की आत्मा का प्रकाश ज्ञान है।
कई लोग ऐसे होते है जिनको ना तो कोई गाना सुनना पसन्द है, ना कोई चित्र उन के दिल को बहला सकता है।
सिर्फ रात दिन काम काम और काम ही करते रहते हैं और बस पैसा कमाते हैं। उनके लिए तो मानो जीवन की सारी खुशियाँ पैसा जमा कर के अपनी तिजोरी की रखवाली करने में ही होती हैं।
खाना, पीना, सोना और अपना परिवार बढ़ाना ये काम तो पशु भी कर लेते हैं। और अगर हम इंसान भी केवल यही काम करते रहे, तो हमने और अन्य जानवरों में अंतर ही नहीं रहेगा।
अगर कोई चीज़ इंसान को अलग बनाती है तो वो है साहित्य और कला की समझ। यह पृथ्वी पर किसी जीव को नहीं हो सकती है।
अगर एक ऐसा इंसान जो जीवन भर पैसा, संपत्ति और उच्च पद को ही जीवन का अर्थ समझ लेता है वो बिना सींग का जानवर है। मनुष्य को साहित्य और कला की समझ होनी चाहिए।