गांठ रिश्तों में हो या शरीर में दोनों ही जगह नुकसानदेह होता है। वैसे देखने पर दोनों ही परिस्थितियों, बाहरी रूप से सामान्य लगती हैं परंतु अंदर से ये इंसान को खोखला करने का भी काम कर सकती हैं। ठीक ऐसे ही हमारे गले में या शरीर के किसी भाग में गांठ होने पर भी होता है जिसका ज्यादा दिन तक हमारे शरीर में होना कैंसर, टीबी, पाचन-तंत्र जैसे बीमारियों का कारण बनता है। ऐसे में अगर आपने इन खतरों को नज़रअंदाज किया तो आप स्वयं अपने जीवन से दगेबाजी कर रहे हैं जो कि आपके सेहत और आपके परिवार के लिए अच्छा नहीं होने वाला है।
गांठ रिश्तों में हो या शरीर में दोनों ही जगह नुकसानदेह होता है। वैसे देखने पर दोनों ही परिस्थितियों, बाहरी रूप से सामान्य लगती हैं परंतु अंदर से ये इंसान को खोखला करने का भी काम कर सकती हैं।
ठीक ऐसे ही हमारे गले में या शरीर के किसी भाग में गांठ होने पर भी होता है जिसका ज्यादा दिन तक हमारे शरीर में होना कैंसर, टीबी, पाचन-तंत्र जैसे बीमारियों का कारण बनता है। ऐसे में अगर आपने इन खतरों को नज़रअंदाज किया तो आप स्वयं अपने जीवन से दगेबाजी कर रहे हैं जो कि आपके सेहत और आपके परिवार के लिए अच्छा नहीं होने वाला है।
गलें में गांठ एक गोल या अंडाकार गांठ होता है जो त्वचा के ठीक नीचे बढ़ती है। यह फैट से बनी होती और इसे छूने पर आसानी से हिल सकती है। आमतौर पर इसमें दर्द नहीं होता है। गलें में गांठ शरीर के किसी भी भाग में हो सकती है परंतु यह पीठ, धड़, हाथ, कंधे और गर्दन पर सबसे ज्यादा बनती है।
वास्तव में यह सॉफ्ट टिश्यू ट्यूमर हैं। जो धीरे-धीरे बढ़ते हैं पर ज्यादा देरी होने पर कैंसर का कारण बन सकता है। अधिकांश लिपोमा या गठिया के उपचार के लिए किसी भी ट्रीटमेंट या उपचार की जरूरत नहीं होती है। और यदि आप इसे हटवाना चाहते हैं, तो डॉक्टर इसे आसानी से हटा सकते हैं। वहीं आप आयुर्वेदिक उपचार अपनाकर इस बीमारी को शरीर से नष्ट कर सकते हैं। ये बीमारी बहुत आम है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, हर 1,000 लोगों में से लगभग 1 को लिपोमा होने की संभावना रहती है। लिपोमा अक्सर 40 से 60 के उम्र के बीच के लोगों में दिखाई देता है, लेकिन ये किसी भी उम्र में किसी भी व्यक्ति को हो सकता हैं। वे जन्म के समय भी उपस्थित हो सकते हैं। लिपोमा सभी लिंगों के लोगों को प्रभावित करता है, लेकिन महिलाओं में ये बीमारी ज्यादा ही देखने को मिलती है।
अगर डॉक्टर के संदर्भ की बात करें तो गले में गांठ की बात पर डॉक्टर निश्चित नहीं है कि ग्लोबस सेंसेशन(गले में गांठ) का क्या कारण है और यह कैसे होता है। समान्यतः यह देखने में आता है कि इसमें गले की मांसपेशियों में, गले के ठीक नीचे मांसपेशियों में तनाव या खीचाव बढ़ने के मामले आते हैं या यह गैस्ट्रोइसोफ़ेजियल रिफ्लक्स के कारण भी हो सकता है।
गैस्ट्रोओसोफेगल रिफ्लक्स रोग (जीईआरडी) तब होता है जब पेट का एसिड बार-बार आपके मुंह और पेट (ग्रासनली) को जोड़ने वाली नली में वापस बहता है। यह बैकवाश (एसिड रिफ्लक्स) आपके अन्नप्रणाली के अस्तर को परेशान कर सकता है। बहुत से लोग समय-समय पर एसिड रिफ्लक्स का अनुभव करते हैं।
हालांकि, जब एसिड रिफ्लक्स समय के साथ बार-बार होता है, तो यह जीईआरडी का कारण बन सकता है। अधिकांश लोग जीवनशैली में बदलाव और दवाओं के साथ जीईआरडी की परेशानी का प्रबंधन करने में सक्षम हैं।
ग्लोबस सेंसेशन वाले लोगों को शायद ही कभी डॉक्टर द्वारा तुरंत मूल्यांकन की ज़रूरत होती है। आगे की जानकारी लोगों को यह तय करने में मदद कर सकती है कि किसी डॉक्टर के मूल्यांकन की आवश्यकता है या नहीं और यह जानने में उनकी मदद कर सकती है कि मूल्यांकन के दौरान क्या अपेक्षा की जानी चाहिए।
जिन लोगों में चेतावनी के संकेत हैं, उन्हें कुछ दिनों से लेकर एक सप्ताह के भीतर डॉक्टर को दिखाना चाहिए। जिन लोगों में चेतावनी के कोई संकेत नहीं हैं, उन्हें अपने डॉक्टर को कॉल करना चाहिए।
सेंसेशन की गंभीरता और प्रकृति के आधार पर, डॉक्टर लोगों को यह देखने के लिए प्रतीक्षा करने का सुझाव दे सकते हैं कि लक्षण कैसे विकसित होते हैं या पारस्परिक रूप से सुविधाजनक समय सुझा सकते हैं।
गले में गांठ होने वाले लोगों को शायद ही डॉक्टर की कंसलटेंसी की जरूरत पड़ती है। नीचे दी गई जानकारी लोगों को यह तय करने में मदद कर सकती है कि किसी डॉक्टर से सलाह लेने की उसे आवश्यकता है या नहीं।
गिल्टी को खत्म करने में मेथी सकारात्मक भूमिका निभाता है। इसके लिए आप मेथी के दाने या इसके पत्ते को पीसकर लेप बना सकते हैं और इस लेप के बन जाने के बाद इसे गिल्टी वाले जगह में लगाकर कपड़े से बाँध लें। इसी प्रक्रिया को रोजाना गिल्टी के खत्म होने तक दोहराते रहें।
नीम की औषधीय उपयोगिता किसी से छुपी नहीं है। यह जाहिर है कि कई रोगों में नीम के पत्ते या नीम के तेल के सीधे-सीधे इस्तेमाल से आप राहत पा सकते हैं। गिल्टी के मरीजों को नीम के पत्तों को उबालकर इसके रस को पीना चाहिए। इसके अलावा इसके पत्तों को पीसकर इसमें थोड़ा गुड़ मिलाकर गिल्टी वाले स्थान पर लेप करने से भी राहत मिलती है। आप नीम के तेल से मालिश भी कर सकते हैं।
आक का दूध
आक के पौधे का इस्तेमाल भी आप गिल्टी के उपचार में कर सकते हैं। इसके दूध में मिट्टी मिलाकर इसे गिल्टी प्रभावित क्षेत्रों में लागएं। ऐसा कुछ दिनों तक करते रहने से गिल्टी के मरीजों को आराम मिलता है।
गौमूत्र के कई फायदों में से एक ये भी है कि आप इसकी सहायता से गिल्टी के प्रभाव को कम कर सकते हैं। यदि आप गौमूत्र में देवदार के पत्ते को पीसकर और हल्का गर्म करके, लेप गिल्टी पर लगाएं तो आपको इस बीमारी से होने वाले दर्द से राहत मिलेगा।
यदि आप गिल्टी से जल्द से जल्द छुटकारा चाहते हैं तो आपको इसके लिए चूना की सहायता लेनी चाहिए। यदि आप रोजाना रात को सोने से पहले चूना और घी का लेप बनाकर गिल्टी पर लगाएं तो आपको तुरंत लाभ मिल सकता है।
कचनार एक वृक्ष है जबकि गोरखमुंडी एक घास है। गिल्टी के उपचार में इसका इस्तेमाल करने के लिए कचनार के सुखी छाल को हल्का पीसकर इसे एक ग्लास पानी में 2 से 3 मिनट तक अच्छी तरह गर्म करें। इसके बाद इसमें एक चम्मच पीसी हुई गोरखमुंडी डालकर पुनः 2-3 मिनट तक उबालें। इसके ठंडा हो जाने पर नियमित रूप से दिन में दो बार लें।
बरगद के वृक्ष का हिंदू धर्म में बहुत महत्त्व है। बरगद के पेड़ से निकलने वाले दूध का इस्तेमाल आप गिल्टी के उपचार में कर सकते हैं।
गिल्टी के सर्वाधिक आसान घरेलु उपायों में से एक ये है कि आप एक मोटा कपड़ा लेकर उसे हल्का गर्म करके गिल्टी प्रभावित क्षेत्रों की कम से कम 5 मिनट तक कुछ दिन तक सिकाई करें. इससे भी गिल्टी से छुटकारा मिलने की संभावना रहती है।
नेनुआ जिसे कई जगह तोरइ भी कहते हैं, का इस्तेमाल सब्जी के लिए किया जाता है लेकिन इसके पत्ते को आप गिल्टी के उपचार के लिए कर सकते हैं। नेनुआ के पत्ते के रस में गुड़ मिलाकर इसका लेप बनाएं और इसे गिल्टी पर लगाएं।
अरंडी का तेल कई रोगों में औषधि के रूप में इस्तेमाल होता है। गिल्टी में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके लिए आपको सुबह-शाम नियमति रूप से गिल्टी वाले स्थान पर अरंडी के तेल से मालिश करनी होगी।
प्याज का उपयोग सब्जियों और सलाद के साथ कई और सामग्रियों को बनाने के दौरान किया जा सकता है। लेकिन क्या आपको पता है कि इसकी सहायता से गिल्टी को भी दूर किया जा सकता है। इसके लिए प्याज को मिक्सी में पीसकर इसे हल्का भूरा होने तक भुनते रहें। इसके बाद इसे गिल्टी प्रभावित क्षेत्रों में लगाकर इसे कपड़े से बाँध लें।
हल्दी का इस्तेमाल किया जा सकता है। यह हल्दी में यौगिक करक्यूमिन है जो लिपोमा से निपटने में मदद करता है। लिपोमा पर हल्दी का पेस्ट लगाया जा सकता है।
गांठ होने और उसमें वृद्धि करने में सूजन जिम्मेदार होता है। वहीं, नींबू में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं, जो सूजन को कम करने में सहायक हो सकते हैं। जिससे चर्बी की गांठ को दूर किया जा सकता है।
लिपोमा का इलाज सेब के सिरके से भी किया जा सकता है। दरअसल, सेब के सिरके का प्रयोग करने से शरीर को डिटॉक्सीफाई किया जा सकता है। साथ ही इम्यून सिस्टम बेहतर होता है और रक्त संचार भी ठीक हो सकता है।
Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए आपका आभार। यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मक़सद से लिखी गई है। हमने इसको लिखने में घरेलू नुस्खों और सामान्य जानकारियों की मदद ली है। आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो, उसे अपनाने से पहले डॉक्टर से सलाह जरूर लें।