{ श्री अचल सागर महाराज की कलम से }
श्री भगवान ने इस संसार में जो भी रचना की वो अद्वितीय है। एक बच्चा जन्म लेता है और उसी के साथ उसकी जीवन लीला शुरू होती है।
इंसान का जीवन सारे चरणों से गुजरते हुए आखिर में वृद्धावस्था तक जाता है जिसे मनुष्य का अंतिम समय कहा जाता है। जैसे शरीर नए वस्त्र धारण करता है ठीक उसी प्रकार आत्मा भी नया शरीर धारण करती है।
जीवन के कई चरणों में इंसान अपने कर्तव्यों और ज़िम्मेदारी के बोझ के तले दबा हुआ रहता है और वो ईश्वर के लिए समय नहीं निकाल पाता है।
कभी अपने गुरुओं की आज्ञा का पालन करना तो कभी अपने माता पिता की सेवा करना वही शादी हो जाने के बाद पत्नी और बच्चों के भविष्य का निर्माण करना।
कई बार इंसान का जीवन इन सबमे ही निकल जाता है और उसे भक्ति करने का ना समय मिलता है और ना ही सौभाग्य।
वृद्ध होना कोई अभिशाप नहीं है वरन वरदान है। आप अपनी ज़िम्मेदारियों से मुक्त हो जाते है। आपकी संताने जीवन को समझ चुकी होती है।
आपके द्वारा दिए गए ज्ञान और संपत्ति से उनका जीवन सुखपूर्वक चल रहा होता है। इसलिए इस अवस्था में इंसान को सदैव भगवान में अपना मन लगाना चाहिए।
यही एक ऐसा अवसर होता है जब आप अपने ईश्वर से जुड़ सकते है। कोई बोझ नहीं, कोई कामना नहीं। शरीर बस मृत्यु का इंतज़ार कर रहा होता है।
इस समय आप अपने मोह से पार पा सकते है। अच्छे संग में अपने अगले जन्म का प्रबंध कर सकते है। इसलिए इस समय का सदुपयोग कीजिये और ईश्वर को जानिये।