{ श्री अचल सागर जी महाराज की कमल से }
सृष्टि के प्रारंभ से ही पृथ्वी घूम रहीं हैं और उसी के साथ समय का चक्र भी घूम रहा है। समय परिवर्तित होता है और सातों ग्रह अपना अपना काम करते रहते है। उसी के अनुसार संसार में विफलता और सफलता का आवागमन होता है। साधु संतों का कहना है कि मनुष्य को विवेक से ज्ञान प्राप्त होता है।
वही जीव जंतुओं को आभास तो होता है लेकिन वो चिंतन नहीं कर सकते, उनमे इतनी क्षमता नहीं है, उन्हें बच्चे पालना, खाना पीना, अपनी रक्षा करना इन सब बातों का बोध है और शायद इसलिए ही वो घोंसला बनाकर रहते है। उन्हें कई बार तो भविष्य की आपदाओं का भी ज्ञान होता हैं। कई बार आपने देखा होगा, चिड़िया अपने अंडों को सुरक्षित स्थान पर रख देती है। उनका पूर्व अनुमान इतना बेहतरीन होता है कि वो खतरे को भांप जाते है।
गाँव में तो आपने कई बार देखा होगा कि मोर को तो पहले से वर्षा आने का अंदाज़ा हो जाता है, पशु पक्षी हमेशा प्रकृति के बनाये गए नियमों के अनुसार ही चलते है, जबकि उन्हें वो सुख प्राप्त नहीं हो सकता जो मनुष्य को हुआ है। कहते है की यह आत्मा कई जन्म जन्मांतर ना जाने कितने शरीर में भटकने के बाद मनुष्य शरीर को प्राप्त करती है लेकिन मनुष्य प्रकृति के बनाये गए नियमों को कभी नहीं मानता है।
मनुष्य को इस सृष्टि ने सब कुछ दिया है, प्रकृति मनुष्य को वो सब कुछ देती हैं जो उसके जीवन के लिए ज़रूरी होता है, उसके बाद भी हम पर्यावरण का ध्यान नहीं रखते है। अगर हमने आज हमारी गलती नहीं मानी तो आने वाले समय में कभी भी इस समस्या का समाधान नहीं हो पायेगा। हम हमारे स्वार्थ के वशीभूत होकर ऐसे कार्य कर रहे है जिससे समाज और मानवता दोनों नष्ट हुई है।
धरती में इतने कीटनाशकों का प्रयोग किया है की आज कोई भी चीज़ आपको बिना मिलावट के नहीं मिल सकती है। ढेर सारे पैसे खर्च करने के बाद भी घी, तेल, दूध, सब्जी सब हमें मिलावटी ही प्राप्त हो रही है। आज कल देखा जाता है की नकली दवाई तक मिलने लगी है। ये धरती को बेहद नुकसान करती है क्यूंकि इसमें बेहद खतरनाक केमिकल होते है। आने वाली संतानें जब इस ज़हरीले पर्यावरण में पैदा होगी तो कैसे स्वस्थ रहेगी ! पानी और हवा तक अशुद्ध हो गए है।
हमें अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए यह चिंतन करना होगा की प्रकृति अगर इसी तरह अशुद्ध होती रही तो कैसे सब कुछ खत्म हो जाएगा, कल को पानी की कमी हो जायेगी। आज कहीं वर्षा नहीं होती है और कहीं होती है तो बाढ़ आ जाती है। अब समय आ गया है कि हम हमारी इस पीढ़ी और समाज को जागरूक करे ताकि प्रकृति शुद्ध हो और हमारी आने वाली पीढ़ियां खुली हवा में सांस ले पाए और पर्यावरण का कोई नुकसान नहीं हो।