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इस महिला ने अपना शरीर कोविड रिसर्च के लिए दिया दान, कौन हैं 93 साल की ये महिला

By: RNI Hindi Desk 
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इस महिला ने अपना शरीर कोविड रिसर्च के लिए दिया दान, कौन हैं 93 साल की ये महिला

रिपोर्ट: सत्यम दुबे

कोलकाता: कोरोना महामारी के दूसरे लहर का कहर लगातार जारी है। कोरोना से संक्रमित मरीज ऑक्सीजन और दवाईयों की कमीं से लगातार दम तोड़ रहें हैं। महामारी के दूसरे लहर ने कई हंसते-खेलते परिवारों को तबाह कर दिया है। एक तरफ दुनिया में कोविड-19 को काबू करने के लिए तमाम तरह की रिसर्च की जा रही हैं। कभी जानवरों, तो कभी अलग-अलग चीजों पर इसका ट्रायल किया गया है, लेकिन अभी तक कोरोना मरीज की बॉडी पर इसका क्या प्रभाव पड़ा है, इसपर रिसर्च में कुछ सामने नहीं आया है। इसी कड़ी में 93 साल की बुजुर्ग महिला ने सरहानीय पहल करते हुए अपना शरीर रिसर्च करने के लिए दान कर दिया है।

आपको बता दें कि कोलकाता की 92 साल की ज्योत्सना बोस  ने अपनी बॉडी को कोविड पर मेडिकल रिचर्स के लिए डोनेट किया है। ऐसा करने वाली वो भारत की पहली महिला बनी हैं। ज्योत्सना बोस ट्रेड यूनियन नेता थी। उनका जन्म 1927 में चिटगांव में हुआ था, जो अब बांग्लादेश का हिस्सा है। पिछले दिनों कोरोना पॉजिटिव हो गई थीं, और उन्होंने अपना शरीर दान करने का फैसला लिया था।

ज्योत्सना बोस की पोती डॉ तिस्ता बसु ने बताया कि 14 मई को उत्तरी कोलकाता के बेलियाघाटा इलाके के एक अस्पताल में उन्हें भर्ती कराया गया था। जहां 2 दिन कोविड वॉर्ड में उनका इलाज चला, लेकिन वह जिंदगी की जंग हार गई। मौत से पहले ही उन्होंने अपनी बॉडी कोरोना की रिसर्च के लिए दान करने का निर्णय ले लिया था।

आपको बता दें कि उनकी मौत के बाद उनकी ऑटोप्सी RG Kar Medical College and Hospital में की गई। जहां डॉक्टर बसु ने बताया कि ‘हम आज तक कोरोना वायरस के बारे में बहुत ज्यादा नहीं जानते हैं। हमें यह जानने की जरूरत है कि कोरोना वायरस मानव अंगों और मानव प्रणालियों को किस तरह प्रभावित करता है। पेथोलॉजिकल ऑटोप्सी इस सवाल का बहुत हद तक जवाब दे सकती है।’

ज्योत्सना बोस कोविड रिचर्स के लिए अपना शरीर दान करने वाली भारत की पहली महिला हैं। लेकिन उनसे पहले पश्चिम बंगाल के ही रहने वाले ब्रोजो रॉय ने अपना शरीर रिचर्स के लिए दान किया था। इनके आलावा  डॉ. विश्वजीत चक्रवर्ती का शव भी रिचर्स के लिये दान किया गया है। उनकी पोती ने बताया कि, उनकी दादी ने ट्रेड यूनियनिस्ट मोनी गोपाल बसु से शादी की और रिटायरमेंट के बाद भी खुद को सामाजिक और राजनीतिक कार्यों में बिजी रखा। जाते-जाते भी वह समाज के लिए अच्छा काम करके गईं।

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