रिपोर्ट: गीतांजली लोहनी
नई दिल्ली: क्या आप जानते है भारत की सबसे विशालकाय और चमत्कारी तिरुपति बलाजी के मंदिर में स्थित भगवान वेंकटेशवर की वरदानी मूर्ति का सच ? आखिर क्या राज है इस मूर्ति पर लगे असली बालों का ? जो समय के साथ बढ़ते घटते रहते है। इस जगह पर सैंकड़ों लोगों के बाल दान करने के पीछे की धारणा के बारे में भी आज हम आपको बताने जा रहे है। भगवान वेंकटेशवर की मूर्ती का अकाल्पनिक और चमात्कारी रहस्य का जवाब NASA के कई वैज्ञानिक के लिए भी किसी पहेली से कम नहीं है।
दरअसल, भारतवर्ष में दक्षिण भारत के मंदिर काफी प्रचलित है और मान्यातों के हिसाब से उनमें सबसे ज्यादा प्रसिद्ध तिरुपति बालाजी है। इनका भव्य और विशालकाय मंदिर आंध्रप्रदेश के चित्तौड़ जिले में स्थित है। जहां पर भगवान श्री विष्णु के अवतार प्रभु वेंकटेश बालाजी साक्षात विराजित है जो दक्षिण में स्थित सुंदर तालाब तिरुमाला के निकट बना है। इसके चारों ओर स्थित पहाड़ियां शेषनाग के साथ फनों के आधार पर सत्यगिरी के नाम से विश्व प्रसिद्ध है। इस मंदिर का इतिहास काफी प्राचीन है जो लगभग 5वीं शताब्दी से प्रारंभ हुआ। इस मंदिर का द्वार हर धर्म के लिए खुला हुआ है। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि यहां विराजमान भगवान बालाजी की मूर्ति को किसी ने नहीं बनाया है। बल्कि ये मूर्ति स्वंय यहां प्रकट हुई है। बालाजी की मूर्ति पर चोट का निशान भी है जहां औषधी के रुप में चंदन लगाया जाता है। इस मूर्ति की सबसे बड़ी खासियत इसमें लगे असली रेशमी बाल है। जो कभी सुलझते नहीं है। और हमेशा साफ-सुधरे दिखायी देते है।
यहां मंदिर में केश दान करना भी बहुत प्रसिद्ध परंपरा है। जिसमें मन्नत पूरी होने पर लोग यहां केश दान करते है। माना जाएं तो इसके पीछे एक गहन अर्थ भी है, जिसके मुताबिक लोग अपने बालों के साथ अपने शरीर में भरी असामाजिक सोच, अहंकार सब समर्पित कर देते है। केशदान की परंपरा कोई छोटी-मोटी नहीं है, बल्कि एक अनुमान के मुताबिक यहां रोज 20 हजार से ज्यादा श्रद्धालु मात्र केशदान के लिए आते है। इस मूर्ति की अपनी खुद की विशेषताएं है जिनमें से एक इसकी नम्रता है। यहां जाने वाले बताते हैं कि भगवान वेंकटेश की मूर्ति पर कान लगाकर सुनने पर समुद्र की लहरों की ध्वनि सुनाई देती है। यही कारण है कि मंदिर में मूर्ति हमेशा नम रहती है। इसके पीछे का कारण आजतक वैज्ञानिक भी नहीं लगा पाये है।
मंदिर में मुख्य द्वार पर दरवाजे के दाईं ओर एक छड़ी है। इस छड़ी के बारे में कहा जाता है कि बाल्यावस्था में इस छड़ी से ही भगवान बालाजी की पिटाई की गई थी, इस कारण उनकी ठुड्डी पर चोट लग गई थी। इस कारणवश तब से आज तक उनकी ठुड्डी पर शुक्रवार को चंदन का लेप लगाया जाता है। ताकि उनका घाव भर जाए।
भगवान बालाजी की प्रतिमा पर खास तरह का पचाई कपूर लगाया जाता है। वैज्ञानिक मत है कि इसे किसी भी पत्थर पर लगाया जाता है तो वह कुछ समय के बाद ही चटक जाता है। लेकिन भगवान की प्रतिमा पर कोई असर नहीं होता।
भगवान बालाजी के हृदय पर मां लक्ष्मी विराजमान रहती हैं। माता की मौजूदगी का पता तब चलता है जब हर गुरुवार को बालाजी का पूरा श्रृंगार उतारकर उन्हें स्नान करावाकर चंदन का लेप लगाया जाता है। जब चंदन लेप हटाया जाता है तो हृदय पर लगे चंदन में देवी लक्ष्मी की छवि उभर आती है।
भगवान बालाजी के मंदिर से 23 किमी दूर एक गांव है, और यहां बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश वर्जित है। यहां पर लोग बहुत ही नियम और संयम के साथ रहते हैं। मान्यता है कि बालाजी को चढ़ाने के लिए फल, फूल, दूध, दही और घी सब यहीं से आते हैं। इस गांव में महिलाएं सिले हुए कपड़े धारण नहीं करती हैं।