नई दिल्ली : अमेरिकी सैनिकों के वापस लौटने के बाद अफगानिस्तान पूरी तरह से तालिबान के कब्जे में आ गया है। इसे लेकर उसने अपने नवनियुक्त सरकार का भी गठन कर दिया है। जिसमें शामिल कई सदस्य पहले से ही यूएन की ब्लैक लिस्ट में शामिल हैं। ऐसे में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। इस बीच, तालिबान सरकार अमेरिका और अन्य देशों के सामने घुटना टेंकता नजर आया।
आपको बता दें कि अमेरिका और अन्य देशों के भारी दबाव के बाद वहां के अथॉरिटीज ने अमेरिका और अन्य देशों के वहां पर फंसे हुए करीब 200 नागरिकों को जाने देने पर राजी हुआ है। बता दें कि ये लोग अमेरिका की तरफ से काबुल एयरपोर्ट से चलाए गए इवैक्यूएशन ऑपरेशन के बाद भी फंसे हुए हैं। इस बात की जानकारी अमेरिकी अधिकारी ने रॉयटर्स की दी है।
अधिकारी ने कहा कि तालिबान पर अमेरिकी विशेष प्रतिनिधि जलमय खलीलजाद द्वारा डिपार्चर की अनुमति देने के लिए दबाव डाला गया था। गुरूवार को डिपार्चर की उम्मीद की जा रही है। हालांकि, अधिकारी ने यह नहीं बताया कि क्या ये वही लोग है, जो मजार-ए-शरीफ पर फंसे हुए हैं, क्योंकि प्राइवेट चार्टर को उड़ान भरने की इजाजत नहीं दी गई थी।
अफगानिस्तान पर पाक ने की मंत्रिस्तरीय बैठक
वहीं दूसरी तरफ, काबुल में तालिबान के सत्ता संभालने के बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने अफगानिस्तान के पड़ोसियों की पहली मंत्रिस्तरीय बैठक की मेजबानी की। इस दौरान कुरैशी ने कहा कि भले ही युद्ध से थके हुए देश में स्थिति “जटिल और परिवर्तनशील” है, उसकी “नई वास्तविकता” को देखने के लिये दुनिया को अपना “पुराना नजरिया” छोड़ना होगा और एक “यथार्थवादी दृष्टिकोण” के साथ आगे बढ़ना होगा।
कुरैशी ने अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों- चीन, ईरान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के विदेश मंत्रियों की पहली डिजिटल बैठक की अध्यक्षता करने के बाद एक के बाद एक कई ट्वीट किए। उन्होंने एक ट्वीट में कहा कि, “अफगानिस्तान में स्थिति जटिल और परिवर्तनशील बनी हुई है। हमें उम्मीद है कि राजनीतिक स्थिति स्थिर हो जाएगी और जल्द ही स्थितियां सामान्य हो जाएंगी। उन्होंने कहा कि नई वास्तविकता के लिए हमें पुराने नजरिये को त्यागने, नई अंतर्दृष्टि विकसित करने और यथार्थवादी/व्यावहारिक दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ने की आवश्यकता है।”