सियाचीन ग्लेशियर पर भारत को कब्जा दिलाने वाले पूर्व सैन्य अधिकारी कर्नल नरेंद्र कुमार का गुरुवार को निधन हो गया। 87 वर्ष के नरेंद्र कुमार को उम्र संबंधी बीमारियां थीं। आर्मी रिसर्च एंड रेफरल हॉस्पिटल में उन्होंने आखिरी सांस ली। सेना के आर एंड आर हॉस्पिटिल में उन्होनें आखिरी सांसें लीं।
जिसके बाद अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर कर्नल नरेंद्र ‘बुल’ कुमार को श्रद्धांजलि अर्पित की है। पीएम ने लिखा “एक अपूरणीय क्षति! कर्नल नरेंद्र ‘बुल’ कुमार (सेवानिवृत्त) ने असाधारण साहस और परिश्रम के साथ देश की सेवा की। पहाड़ों के साथ उनका विशेष संबंध याद किया जाएगा। उनके परिवार और शुभचिंतकों के प्रति संवेदना। ओम शांति।”
An irreparable loss! Colonel Narendra 'Bull' Kumar (Retired) served the nation with exceptional courage and diligence. His special bond with the mountains will be remembered. Condolences to his family and well wishers. Om Shanti. https://t.co/hTQvGJobxM
— Narendra Modi (@narendramodi) December 31, 2020
कर्नल बुल की मदद से ही भारत सियाचिन पर अपना कब्जा बरकरार रख पाया था। उनकी रिपोर्टों के आधार पर तब प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी ने भारतीय सेना को ऑपरेशन मेघदूत चलाने की इजाजत दी थी।
इसी के बाद सेना सियाचिन पर कब्जा करने के मिशन पर आगे बढ़ी। अगर ऐसा नहीं किया जाता तो इस ग्लेशियर का पूरा हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में चला जाता। नरेंद्र कुमार भारत के शीर्ष के पर्वतारोहियों में शामिल रहे हैं। वो ही उन पहले व्यक्तियों में थे जिन्होंने सियाचिन ग्लेशियर पर पाकिस्तानी सेना की गतिविधियों के खतरे से चेताया था।
नरेंद्र बुल कुमार का जन्म रावलपिंडी में 1933 में हुआ था। उन्हें 1953 में कुमाऊं रेजिमेंट में कमीशन मिला था। उनके तीन और भाई भारतीय सेना में रहे थे। नंदादेवी चोटी पर चढ़ने वाले वह पहले भारतीय थे। उन्होंने 1965 में माउंट एवरेस्ट, माउंट ब्लैंक (आल्प्स की सबसे ऊंची चोटी) और बाद में कंचनजंघा की चढ़ाई की थी।
आपको बता दें, 1953 में भारतीय सेना की कुमाऊं रेजीमेंट में शामिल होने वाले कर्नल नरेंद्र कुमार को उंची पर्वत श्रृंखलों को फतह करने का शौक था। उन्होनें वर्ष 1965 में माउंट एवरेस्ट पर विजय हासिल की थी।
पहले के अभियानों में चार उंगलियां खोने के बाद भी उन्होंने इन चोटियों पर जीत हासिल की थी। 1981 में उन्होंने अंटार्कटिका टास्क फोर्स के मेंबर के रूप में उन्होंने शानदार भूमिका निभाई।
कर्नल बुल 1965 में भारत की पहली एवरेस्ट विजेता टीम के डिप्टी लीडर थे। बुल उनका निकनेम था। उन्होंने हमेशा इसे अपने नाम के साथ रखा। उन्हें कीर्ति चक्र, पद्म श्री, अर्जुन पुरस्कार और मैकग्रेगर मेडल से सम्मानित किया गया था।
उसके बाद नंदा देवी, माउंट ब्लैंक और कंचनजंगा पर, लेकिन भारतीय सेना में होने खास तौर से जाना जाता है उनके सियाचिन ग्लेशियर पर चढ़ाई के लिए। गुलमर्ग स्थित हाई ऑल्टिट्यूड वॉरफेयर कॉलेज के कमांडेंट के तौर पर 70 के दशक के आखिर और 80 के दशक में शुरूआत में कर्नल बुल अपने दल के साथ सिचायिन ग्लेशियर और सालटारो-रिज पर पर्वतरोहण के लिए गए थे।
इसी दौरान 1977 में उन्होंने पाकिस्तान के मंसूबे भांप लिए थे। 13 अप्रैल 1984 को सेना ने ऑपरेशन मेघदूत शुरू कर सियाचिन पर कब्जा कर लिया। इसके तहत दुनिया की सबसे ऊंचाई वाले युद्ध क्षेत्र में पहली बार हमला किया गया था। सेना ने यह ऑपरेशन बखूबी पूरा करते हुए पूरे सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा कर किया था।’
रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी ने कहा कि उन्हें सियाचिन को बचाने वाले के तौर पर जाना जाता है। उन्होंने ही पहली बार सियाचिन ग्लेशियर एरिया कब्जे करने की पाकिस्तान की साजिश का पता लगाया था। इसके बाद बाकी इतिहास है। कुलकर्णी भी उन पहले सैनिकों में से हैं, जो ग्लेशियर के टॉप पर पहुंचे थे। वे तब कैप्टन हुआ करते थे और अपनी प्लाटून के साथ वहां गए थे।
वे भारतीय सेना के एकमात्र कर्नल रैंक के अधिकारी हैं जिसे पीवीएसएम यानि परम विशिष्ट सेवा मेडल और एवीसीएम यानि अति-विशिष्ट सेवा मेडल से नवाजा गया था। उन्हें बहादुरी के लिए कीर्ति चक्र और खेलों के प्रोत्साहन के लिए अर्जुन-अवार्ड से भी नवाजा गया था।
हालांकि, ये कहा जाता है कि उनकी बुल (बैल) जैसी दृढ-शक्ति के लिए बुल-कुमार कहा जाता था लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि एनडीए में अपने एक सीनियर से लड़ाई के दौरान ‘बुल’ की तरह टक्कर मारने के लिए उन्हें ये नाम दिया गया था।
हालांकि, वे इस लड़ाई में अपने सीनियर से हार गए थे लेकिन उनका ये नाम मरते दम तक साथ रहा। उनका ये सीनियर बाद में भारतीय सेना का प्रमुख बना था—जनरल जे एफ रोड्रिग्स।