Loksabha Election: लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण की समाप्ती के साथ चौथे चरण के मतदान का काउंटडाउन शुरू हो गया है. यह मध्य प्रदेश में आखिरी चरण का मतदान होगा. इसी के साथ सभी 29 लोकसभा सीटों पर वोटिंग संपन्न हो जाएगी. चौथे चरण में 8 सीटों पर वोटिंग होगी. इलेक्शन को लेकर भारत निर्वाचन आयोग ने समीक्षा की. इस बार भी वोटिंग प्रतिशत बढ़ाने पर जोर दिया जाएगा.
भीषण गर्मी की संभावना को देखते हुए सभी मतदान केन्द्रों पर शीतल पेयजल, जरूरी दवाइयां और टेंट की व्यवस्था के निर्देश दिए गए हैं. मतदाता सूचना पर्ची का वितरण कराया जा रहा है. मतदान प्रतिशत बढ़ाने के भी प्रयास लगातार किये जा रहे हैं. तीसरे चरण के मतदान में वर्ष 2019 के चुनाव की तुलना में मतदान प्रतिशत बढ़ने के बाद आयोग ने चौथे चरण के मतदान प्रतिशत में भी वृद्धि होने को लेकर निर्देश दिए.
इन 8 लोकसभा सीटों पर होगी वोटिंग
मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी अनुपम राजन ने यह बातें भारत निर्वाचन आयोग के उप निर्वाचन आयुक्त अजय भादू से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से की गई चौथे चरण की निर्वाचन तैयारियों की समीक्षा के दौरान कही. भारत निर्वाचन आयोग ने देवास, उज्जैन, मंदसौर, रतलाम, धार, इंदौर, खरगोन और खंडवा लोकसभा संसदीय क्षेत्र के सामान्य प्रेक्षक, पुलिस प्रेक्षक और व्यय प्रेक्षक से अलग-अलग चर्चा कर निर्वाचन तैयारियों की जानकारी ली.
कहां कौन प्रत्याशी?
लोकसभा सीट | भाजपा प्रत्याशी | कांग्रेस प्रत्याशी |
खंडवा | ज्ञानेश्वर पाटिल | नरेंद्र पटेल |
इंदौर | शंकर लालवानी | – |
खरगौन | गजेंद्र सिंह पटेल | पोरलाल खरते |
देवास | महेंद्र सिंह सोलंकी | राजेंद्र मालवीय |
उज्जैन | अनिल फिरोजिया | महेश परमार |
मंदसौर | सुधीर गुप्ता | दिलीप सिंह गुर्जर |
रतलाम | अनीता नागर सिंह चौहान | कांतिलाल भूरिया |
धार | सावित्री ठाकुर | राधेश्याम मूवेल |
पिछले चुनाव के मुकाबले कम मतदान
एमपी में तीसरे चरण की लोकसभा सीटों पर 2019 की तुलना में 0.83 प्रतिशत कम मतदान रहा. भिंड, ग्वालियर,गुना, विदिशा और राजगढ़ में वोटिंग प्रतिशत बढ़ा और मुरैना, सागर, भोपाल, बैतूल में वोटिंग घटी. तीसरे चरण की 9 लोकसभा सीटों पर वोटिंग प्रतिशत 66.05% रहा. मुरैना में 58.22%, भिंड में 54.87%, ग्वालियर में 61.68%, गुना में 71.95%, सागर में 65.19%, विदिशा में 74.05%, भोपाल में 62.29%, राजगढ़ में 75.39% और बैतूल में 72.65% मतदान रहा.
खंडवा लोकसभा सीट मध्य प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से एक है. इस सीट पर मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही होता आया है. बीजेपी के नंदकुमार चौहान इस सीट से सबसे ज्यादा बार जीतने वाले सांसद हैं. यहां की जनता ने उनको पांच बार चुनकर संसद पहुंचाया है. 1996, 1998, 1999 और 2004 का चुनाव जीतकर उन्होंने इस सीट पर अपना दबदबा बनाए रखा. हालांकि 2009 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा, लेकिन इसके अगले चुनाव 2014 में उन्होंने इस सीट पर वापसी की और शानदार जीत दर्ज की.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
खंडवा में लोकसभा का पहला चुनाव 1962 में हुआ था. कांग्रेस के महेश दत्ता ने पहले चुनाव में जीत हासिल की. कांग्रेस ने इसके अगले चुनाव 1967 और 1971
में भी जीत हासिल की. 1977 में भारतीय लोकदल ने इस सीट पर कांग्रेस को हरा दिया. कांग्रेस ने इस सीट पर वापसी 1980 में की. तब शिवकुमार सिंह ने इस सीट पर कांग्रेस की वापसी कराई थी. कांग्रेस ने इसका अगला चुनाव भी जीता.1989 में बीजेपी ने पहली बार इस सीट पर जीत हासिल की. हालांकि बीजेपी की खुशी ज्यादा दिन नहीं टिकी. और 1991 में उसे कांग्रेस के हाथों हार का सामना करना पड़ा.
1996 में बीजेपी की ओर से नंदकुमार चौहान मैदान में उतरे और उन्होंने खंडवा में बीजेपी की वापसी कराई. वे अगला 3 चुनाव जीतने में भी कामयाब रहे. 2009 में अरुण सुभाष चंद्रा ने यहां पर कांग्रेस की वापसी कराई. 2009 में हारने के बाद नंदकुमार ने एक बार फिर यहां पर वापसी की और अरुण सुभाष चंद्र को मात दी. बीजेपी को यहां पर 6 बार तो कांग्रेस को 7 बार जीत मिली है.
खंडवा लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत विधानसभा की 8 सीटें आती हैं. बगाली, पंधाना, भीखनगांव, मंधाता, नेपानगर,बदवाह, खंडवा, बुरहानपुर यहां की विधानसभा सीटें हैं. यहां की 8 विधानसभा सीटों में से 3 पर बीजेपी, 4 पर कांग्रेस और 1 सीट पर निर्दलीय का कब्जा है.
सामाजिक ताना-बाना
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार खंडवा शहर का प्राचीन नाम खांडववन(खांडव वन)था जो मुगलों और अंग्रेजो के आने से बोलचाल में धीरे धीरे खंडवा हो गया .खंडवा नर्मदा और ताप्ती नदी घाटी के मध्य बसा है. ओमकारेश्वर यहां का लोकप्रिय और पवित्र दर्शनीय स्थल है. इसे भारत के 12 ज्योतिर्लिगों में शुमार किया जाता है.
2011 की जनगणना के मुताबिक खंडवा की जनसंख्या 2728882 है. यहां की 76.26 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्र और 23.74 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्र में रहती है. खंडवा में 10.85 फीसदी आबादी अनुसूचित जाति और 35.13 फीसदी आबादी अनुसूचित जनजाति की है. चुनाव आयोग के आंकड़े के मुताबिक 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां पर 17,59,410 मतदाता थे. इनमें से 8,46, 663 महिला मतदाता और 9,12,747 पुरुष मतदाता थे. 2014 के चुनाव में इस सीट पर 71.46 फीसदी मतदान हुआ था.
2014 का जनादेश
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी नंदकुमार चौहान ने कांग्रेस अरुण यादव को हराया था. नंदकुमार को 717357(57.05 फीसदी) वोट मिले थे तो वहीं अरुण यादव को 457643(36.4 फीसदी) वोट मिले थे.दोनों के बीच हार जीत का अंतर 259714 वोटों का था. इस चुनाव में आम आदमी पार्टी 1.34 फीसदी वोटों के साथ तीसरे स्थान पर थी.
इससे पहले 2009 के चुनाव में कांग्रेस के अरुण यादव ने जीत हासिल की थी. उन्होंने बीजेपी के नंदकुमार चौहान को हराया था. इस चुनाव में अरुण यादव को 394241(48.53 फीसदी ) वोट मिले थे तो वहीं नंदकुमार चौहान को 345160(42.49 फीसदी) वोट मिले थे. दोनों के बीच हार जीत का अंतर 49081 वोटों का था.
सांसद का रिपोर्ट कार्ड
66 साल के नंदकुमार चौहान 2014 का चुनाव जीतकर पांचवीं बार सांसद बने. पेशे से किसान नंदकुमार ने बीए की पढ़ाई की है. संसद में उनके प्रदर्शन की बात करें तो 16वीं लोकसभा में उनकी उपस्थिति 54 फीसदी रही. वे 7 बहस में हिस्सा लिए. उन्होंने संसद में 6 सवाल किया.
नंदकुमार चौहान को उनके निर्वाचन क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए 22.50 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे. जो कि ब्याज की रकम मिलाकर 22.86 करोड़ हो गई थी. इसमें से उन्होंने 19.54 यानी मूल आवंटित फंड का 85.07 फीसदी खर्च किया. उनका करीब 3.32 करोड़ रुपये का फंड बिना खर्च किए रह गया.
मध्य प्रदेश की खंडवा लोकसभा सीट (Khandwa Lok Sabha Election Results 2019) पर 2014 में हुए चुनाव में BJP के नन्द कुमार सिंह चौहान ने जीत हासिल की थी. उन्हें 7,17,357 वोट मिले थे और 4,57,643 वोट पाकर दूसरे पायदान पर कांग्रेस के अरुण सुभाषचंद्र यादव रहे थे.
खंडवा लोकसभा सीट से 1952 और 1957 में कांग्रेस के बाबूलाल तिवारी, 1962 में कांग्रेस के महेश दत्ता मिश्रा, 1967 और 1971 में कांग्रेस के गंगाचरण दीक्षित ने दो बार जीत हासिल की, 1977 में भारतीय लोकदल के परमानंद ठाकुरदास गोविंदजीवाला, 1980 में कांग्रेस के ठाकुर शिवकुमार नवल सिंह, 1984 में कांग्रेस के कालीचरण रामरतन सकरगय, 1989 में BJP के अमृतलाल तारवाला, 1991 में कांग्रेस के ठाकुर महेन्द्र कुमार नवल सिंह, 1996, 1998, 1999 और 2004 में BJP के नन्द कुमार सिंह चौहान ने चार बार जीत हासिल की. 2009 में कांग्रेस के अरुण सुभाषचंद्र यादव ने जीत हासिल की थी.
खंडवा लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली विधानसभा सीटें मान्धाता, बुरहानपुर, बड़वाह, बागली, पंधाना, नेपानगर, बीकनगांव और खंडवा हैं. बागली, पंधाना, नेपानगर, बीकनगांव सीटें अनुसूचित जनजाति और खंडवा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है.
उज्जैन लोकसभा इतिहास
पूरे देश और विदेश में बाबा महाकाल के लिए जानी जाने वाली उज्जैन लोकसभा सीट बेहद महत्वपूर्ण है. उज्जैन लोकसभा सीट में उज्जैन पूरा जिला और कुछ हिस्सा रतलाम जिले का भी आता है. धार्मिक रूप से अति समृद्ध यह क्षेत्र शिप्रा नदी के किराने बसा हुआ है. यहां पर हर 12 साल में एक बार सिम्हस्थ का आयोजन भी होता है. सिम्हस्थ के दौरान देश-विदेश से हजारों लाखों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. उज्जैन को पुराने जमाने में ज्योतिष के लिए भी जाना जाता था. ज्यादातर हिंदू घरों में विक्रम संवत के कैलेंडर को फॉलो किया जाता है जो कि यहीं के राजा विक्रमादित्य ने शुरू किया था.
उज्जैन में बाबा महाकाल के मंदिर के अलावा विश्व प्रसिद्ध काल भैरव मंदिर, मंगलनाथ मंदिर, चिंतामन गणेश मंदिर, मां हरसिद्धि मंदिर हैं. यहां पर महाकाल लोक भी बनाया गया है जिसका उद्घाटन 11 अक्टूबर 2022 को किया गया था. उज्जैन शहर को कालीदास की नगरी के नाम से भी जाना जाता है. वहीं इस लोकसभा सीट में रतलाम भी आता है जहां का प्राचीन लक्ष्मी माता मंदिर पूरे प्रदेश के आस्था का केंद्र है, वहीं यहां की सोना मंडी का सोना पूरे देश में विख्यात है.
शिवपुराण से लेकर महाभारत तक
उज्जैन शहर के इतिहास का जिक्र न सिर्फ शिवपुराण बल्कि महाभारत में भी मिलता है. महाभारत के अनुसार भगवान श्री कृष्ण अपने भाई बलराम के सात उज्जैन के ऋषि सांदीपनी के आश्रम में शिक्षा प्राप्त करने आए थे. यहां आज भी भगवान श्री कृष्ण और उनके परममित्र श्रीदामा का मंदिर मौजूद है. वहीं यहां पर भगवान भोलेनाथ 84 अलग-अलग मंदिरों में 84 महादेव के नाम से जाने जाते हैं. इन सभी मंदिरों की कथा शिवपुराण में मौजूद है.
राजनीतिक ताना-बाना
उज्जैन की राजनीति की बात की जाए तो इस लोकसभा सीट में आठ विधानसभाएं हैं जिनमें उज्जैन जिले की नागदा-काचरोड, महिदपुर, तराना, घटिया, उज्जैन नॉर्थ, उज्जैन साउथ, बड़नगर शामिल हैं, वहीं रातलाम जिले की आलोट सीट भी इस लोकसभा क्षेत्र में शामिल है. इन सभी विधानसभाओं में 2 पर कांग्रेस काबिज है वहीं बाकी 6 पर बीजेपी ने कब्जा जमाया हुआ है. 2019 के चुनाव की बात की जाए तो यहां पर बीजेपी की ओर से अनिल फिरोजिया ने कांग्रेस के बाबूलाल मालवीय को साढ़े तीन लाख से ज्यादा वोटो के अंतर से हराया था.
उज्जैन लोकसभा 2019 जनादेश
देश में हुए पिछले लोकसभा चुनाव में, यानी लोकसभा चुनाव 2019 में इस सीट पर कुल 1661229 मतदाता थे. उस चुनाव में BJP प्रत्याशी अनिल फिरोजिया को जीत हासिल हुई थी, और उन्हें 791663 वोट हासिल हुए थे. इस चुनाव में अनिल फिरोजिया को लोकसभा सीट में मौजूद कुल मतदाताओं में से 47.66 प्रतिशत का समर्थन प्राप्त हुआ था, जबकि इस सीट पर डाले गए वोटों में से 63.18 प्रतिशत उन्हें दिए गए थे. लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान इस सीट पर INC प्रत्याशी बाबूलाल मालवीय दूसरे स्थान पर रहे थे, जिन्हें 426026 वोट मिले थे, जो संसदीय सीट के कुल मतदाताओं में से 25.65 प्रतिशत का समर्थन था, और उन्हें कुल डाले गए वोटों में से 34 प्रतिशत वोट मिले थे. इस सीट पर आम चुनाव 2019 में जीत का अंतर 365637 रहा था.
इससे पहले, उज्जैन लोकसभा सीट पर वर्ष 2014 में हुए आम चुनाव के दौरान 1525481 मतदाता दर्ज थे. उस चुनाव में BJP पार्टी के प्रत्याशी प्रो. चिंतामणि मालवीय ने कुल 641101 वोट हासिल कर जीत दर्ज की थी. उन्हें लोकसभा क्षेत्र के कुल मतदाताओं में से 42.03 प्रतिशत ने समर्थन दिया था, और उन्हें उस चुनाव में डाले गए वोटों में से 63.07 प्रतिशत वोट मिले थे.
उधर, दूसरे स्थान पर रहे थे INC पार्टी के उम्मीदवार प्रेमचंद गुड्डू, जिन्हें 331438 मतदाताओं का समर्थन हासिल हो सका था, जो लोकसभा सीट के कुल वोटरों का 21.73 प्रतिशत था और कुल वोटों का 32.61 प्रतिशत रहा था. लोकसभा चुनाव 2014 में इस संसदीय सीट पर जीत का अंतर 309663 रहा था.
खरगोन लोकसभा इतिहास
भारत के उत्तर व दक्षिण प्रदेशों को जोड़ने वाले प्राकृतिक मार्ग पर बसा खरगोन मध्य प्रदेश के महत्वपूर्ण शहरों में से एक है. साल 1962 में यहां पर पहला चुनाव हुआ और जनसंघ ने जीत का परचम फहराया. इस सीट पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही मुकाबला रहा है.
बीजेपी इस सीट पर जीत का चौका लगा चुकी है. 1989 से 1999 के बीच हुए चुनाव में उसने लगातार यहां पर विजय हासिल की. खरगोन लोकसभा सीट पर हुए हाल के चुनावों पर नजर डालें तो पिछले 2 चुनावों में बीजेपी और 1 चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली. बीजेपी के सुभाष पटेल यहां के सांसद हैं.
सामाजिक ताना-बाना
1 नवंबर 1956 को मध्य प्रदेश के गठन के साथ ही खरगोन पश्चिम निमाड़ के रूप में अस्तित्व में आ गया था. यह मध्य प्रदेश की दक्षिणी पश्चिमी सीमा पर स्थित है. इस जिले के उत्तर में धार, इंदौर व देवास, दक्षिण में महाराष्ट्र, पूर्व में खण्डवा, बुरहानपुर तथा पश्चिम में बड़वानी है. यह शहर नर्मदा घाटी के लगभग मध्य भाग में स्थित है.
2011 की जनगणना के मुताबिक खरगोन की जनसंख्या 26,25,396 है. यहां की 84.46 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्र और 15.54 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्र में रहती है. यहां अनुसूचित जनजाति के लोगों की संख्या अच्छी खासी है. खरगोन में 53.56 फीसदी आबादी अनुसूचित जनजाति के लोगों की है और 9.02 फीसदी आबादी अनुसूचित जाति की है. यहां पर 17,61,005 मतदाता हैं.
चुनाव आयोग के 2014 के आंकड़े के मुताबिक यहां पर 17,03,271 मतदाता थे, जिनमें से 8,66,897 पुरुष मतदाता और 8,36,374 महिला मतदाता थे. 2014 में इस सीट पर 67.67 फीसदी मतदान हुआ था.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
खरगोन लोकसभा सीट पर पहला चुनाव साल 1962 में हुआ. फिलहाल यह सीट अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार के लिए आरक्षित है. यहां पर हुए पहले चुनाव में जनसंघ के रामचंद्र बडे को जीत मिली थी. हालांकि अगले चुनाव में उनको हार का सामना करना पड़ा और कांग्रेस के एस बाजपेयी को जीत मिली.
1971 के चुनाव में रामचंद्र ने एक बार फिर वापसी की और कांग्रेस के अमलोकाचंद को मात दी. बीजेपी को पहली बार इस सीट पर जीत 1989 में मिली और अगले 3 चुनावों में उसने यहां पर विजय हासिल की. कांग्रेस ने 1999 में यहां पर फिर वापसी की और ताराचंद पटेल यहां के सांसद बने. इसके अगले चुनाव 2004 में बीजेपी के कृष्ण मुरारी जीते. 2007 में यहां पर उपचुनाव और कांग्रेस ने वापसी की. कृष्ण मुरारी को इस चुनाव में हार मिली.
2009 में परिसीमन के बाद यह सीट अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार के लिए आरक्षित हो गई. यहां पर पिछले 2 चुनावों में बीजेपी की जीत मिली है. यहां की जनता ने बीजेपी और कांग्रेस दोनों को बराबरी का मौका दी है.
फिलहाल इस सीट पर बीजेपी का कब्जा है.सुभाष पटेल यहां के सांसद हैं. बीजेपी को यहां पर 7 चुनाव में जीत मिली है तो कांग्रेस को 5 चुनाव में जीत मिली है. खरगोन लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत विधानसभा की 8 सीटें आती हैं. देपालपुल, इंदौर 3,राऊ, इंदौर 1, इंदौर 4, सनवेर, इंदौर 5, इंदौर 2 यहां की विधानसभा सीटें हैं. इन 8 विधानसभा सीटों में से 4 पर बीजेपी और 4 पर कांग्रेस का कब्जा है.
2014 का जनादेश
2014 के चुनाव में बीजेपी के सुभाष पटेल को 649354(56.34 फीसदी) वोट मिले थे. वहीं कांग्रेस के रमेश पटेल को 391475(33.97 फीसदी)वोट मिले थे. आम आदमी पार्टी 2.71 फीसदी वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रही थी.
इससे पहले 2009 के चुनाव में बीजेपी के मक्कन सिंह को जीत मिली थी.उन्होंने का बालाराम बच्चन को हराया था. मक्कन सिंह को 351296(46.19 फीसदी) वोट मिले थे तो वहीं बालाराम बच्चन को 317121(41.7 फीसदी) वोट मिले थे. सीपीआई4.19 फीसदी वोटों के साथ इस चुनाव में तीसरे स्थान पर रही थी.
सांसद का रिपोर्ट कार्ड
41 साल के सुभाष पटेल 2014 का लोकसभा चुनाव जीतकर पहली बार सांसद बने. पेशे से किसान सुभाष पटेल ने एमए किया है. संसद में उनकी उपस्थिति का बात करें तो वह उनकी मौजूदगी 90 फीसदी रही. उन्होंने 8 बहस में हिस्सा लिया और 95 सवाल किए.
सुभाष पटेल को उनके निर्वाचन क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए 22.50 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे. जो कि ब्याज की रकम मिलाकर 24 करोड़ हो गई थी. इसमें से उन्होंने 19.72 यानी मूल आवंटित फंड का 87.62 फीसदी खर्च किया. उनका करीब 4.29 करोड़ रुपये का फंड बिना खर्च किए रह गया.
देवास लोकसभा सीट इतिहास
मध्य प्रदेश की देवास लोकसभा सीट राज्य की एक ऐसी सीट रही है, जहां से बीजेपी के दिग्गज नेता थावरचंद गहलोत चुनाव लड़ चुके हैं. यह सीट 2008 में अस्तित्व में आई. शाजापुर लोकसभा सीट को खत्म करके बनाई गई देवास लोकसभा सीट पर दो चुनाव हुए हैं, जिसमें से एक में कांग्रेस और एक में बीजेपी को जीत मिली है. इस सीट से 2014 का लोकसभा चुनाव जीतने वाले बीजेपी के मनोहर ऊंटवाल ने हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में आगर सीट से भी जीत हासिल की.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
देवास लोकसभा सीट 2008 अस्तित्व में आई. शाजापुर लोकसभा सीट को खत्म करके देवास लोकसभा सीट बनाई गई. यह सीट अनुसूचित जाति के उम्मीदवार के लिए आरक्षित है. 2009 में हुए यहां पर चुनाव में कांग्रेस के सज्जन सिंह को जीत मिली थी. उन्होंने मोदी सरकार में मंत्री थावरचंद गहलोत को मात दी थी. हालांकि इसके अगले चुनाव में बीजेपी ने बदला लेते हुए इस सीट पर कब्जा किया.
बीजेपी के मनोहर ऊंटवाल ने देवास लोकसभा सीट पर जीत हासिल की थी, लेकिन उन्होंने 2018 का विधानसभा चुनाव लड़ा और आगर सीट पर उन्होंने विजय हासिल की.
ऐसे में देखा जाए तो इस सीट पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच बराबरी का मुकाबला रहा है. दोनों को यहां एक-एक चुनाव में जीत मिली है. देवास लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत विधानसभा की 8 सीटें आती हैं.
आष्टा, शुजालपुर,देवास,आगर,कालापीपल, हटपिपल्या, शाजापुर और सोनकच्छ यहां की विधानसभा सीटें हैं. यहां की 8 विधानसभा सीटों में से 4 पर बीजेपी और 4 पर कांग्रेस का कब्जा है.
2014 का जनादेश
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के मनोहर ऊंटवाल ने कांग्रेस के सज्जन सिंह को हराया था. इस चुनाव में मनहोर ऊंटवाल को 665646(58.19 फीसदी) वोट मिले थे तो वहीं सज्जन सिंह को 405333(35.49 फीसदी) वोट मिले थे. दोनों के बीच हार जीत का अंतर 260313 वोटों का था. वहीं बसपा 1.51 फीसदी वोटों के साथ तीसरे स्थान पर थी.
इससे पहले 2009 के चुनाव में कांग्रेस के सज्जन सिंह को जीत मिली थी. उन्होंने बीजेपी के दिग्गज नेता थावरचंद गहलोत को मात दी थी. सज्जन सिंह को 376421(48.08 फीसदी) वोट मिले थे तो वहीं थावरतंद गहलोत को 360964(46.1 फीसदी) वोट मिले थे.दोनों के बीच हार जीत का अंतर 15457 वोटों का था. इस चुनाव में बसपा 1.37 फीसदी वोटों के साथ तीसरे स्थान पर थी.
सामाजिक ताना-बाना
देवास जिला इंदौर से करीब 35 किमी की दूरी पर है. यहां माता की टेकरी पर चामुण्डा माता और तुलजा भवानी माता के प्रसिद्ध मन्दिर हैं ,जिसके दर्शन के लिये लोग दूर-दूर से आते हैं. देवास एक औद्योगिक नगर है.
यह एक ऐसा शहर है, जहा दो वंशों ने राज किया. होलकर राजवंश और पंवार राजवंश ने यहां पर राज किया. देवास में बैंक नोट प्रेस भी है. आर्थिक व्यय विभाग की औद्योगिक इकार्इ बैंक नोट प्रेस, देवास की संकल्पना 1969 में की गर्इ और 1974 में इसकी स्थापना हुर्इ.
2011 की जनगणना के मुताबिक देवास की जनसंख्या 24,85,019 है. इसमें से 73.29 फीसदी लोग ग्रामीण इलाके में रहते हैं और 26.71 फीसदी लोग शहरी क्षेत्र में रहते हैं. यहां पर 24.29 फीसदी जनसंख्या अनुसूचित जाति की है और 2.69 फीसदी जनसंख्या अनुसूचित जनजाति की है. चुनाव आयोग के आंकड़े के मुताबिक 2014 के चुनाव में यहां पर 16,17, 215 मतदाता थे. इसमें से 7,73,660 महिला मतदाता और 8,43, 555 पुरूष मतदाता थे. 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां पर 70.74 फीसदी मतदान हुआ था.
सांसद का रिपोर्ट कार्ड
55 साल के मनोहर ऊंटवाल 2014 में चुनाव जीतकर पहली बार सांसद बने. संसद में उनकी उपस्थिति 58 फीसदी रही. उन्होंने इस दौरान 2 बहस में हिस्सा लिया और 52 सवाल किए. मनोहर ऊंटवाल को उनके निर्वाचन क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए 25 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे. जो कि ब्याज की रकम मिलाकर 25.18 करोड़ हो गई थी. इसमें से उन्होंने 22.23 यानी मूल आवंटित फंड का 86.91 फीसदी खर्च किया. उनका करीब 2.96 करोड़ रुपये का फंड बिना खर्च किए रह गया.
मंदसौर लोकसभा सीट इतिहास
उज्जैन संभाग में आने वाली मंदसौर लोकसभा सीट बहुत महत्वपूर्ण है. शिवना नदी के किनारे बसा यह शहर प्राकृतिक रूप से तो सुंदर है ही साथ ही यह क्षेत्र अफीम की खेती के लिए जाना जाता है. यहां की राजनीति पूरे मालवा क्षेत्र से बहुत प्रभावित रहती है. मध्य प्रदेश के इस क्षेत्र में मसालों का अच्छा खासा व्यापार होता है. यहां पर कई विख्यात शैक्षणिक संस्थान तो हैं ही साथ ही यहां पर कई छोटे-बड़े उद्योग भी हैं.
रावण की ससुराल के रूप में पूरे देश में पहचान रखने वाले मंदसौर शहर का इतिहास भी काफी पुराना है. यहां पर स्थित पशुपतिनाथ मंदिर पूरे विश्व का दूसरा पशुपतिनाथ मंदिर है. यह मंदिर शिवना नदी के किनारे पर है. इस लोकसभा में आठ विधानसभाएं हैं जिनमें रतलाम जिले की जाओरा, मंदसौर जिले की मंदसौर, मल्हारगढ़, सुवासरा, गरोठ, और नीचम जिले की मनसा, नीमच और जावद विधानसभाएं शामिल हैं.
2019 का जनादेश
बीजेपी के सुधीर गुप्ता को 8,47,786 वोट मिले (जीते)
कांग्रेस के मीनाक्षी नटराजन को 4,71,052 वोट मिले
बसपा के प्रभुलाल मेघवाल को 9,703 वोट मिले
2014 का जनादेश
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के सुधीर गुप्ता ने यहां पर जीत हासिल की. उन्होंने कांग्रेस की मीनाक्षी नटराजन को हराया था. सुधीर गुप्ता को 698335 वोट मिले थे तो वहीं मीनाक्षी नटराजन को 394686 वोट मिले थे. दोनों के बीच हार जीत का अंतर 303649 वोटों का था. वहीं आम आदमी पार्टी 0.88 फीसदी वोटों से साथ तीसरे स्थान पर रही थी.
2009 में मीनाक्षी नटराजन ने जीता चुनाव
मंदसौर लोकसभा सीट की सिर्फ मंदसौर विधानसभा को छोड़ दिया जाए तो सभी विधानसभाओं पर बीजेपी काबिज है. वहीं अगर लोकसभा चुनावों की बात की जाए तो इस क्षेत्र में 1989 से 2004 तक बीजेपी का एकतरफा दबदबा रहा है. इस जीत के रथ को 2009 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रही मीनाक्षी नटराजन ने रोका और लोकसभा चुनाव जीता. हालांकि इसके बाद फिर से यह सीट बीजेपी के पास चली गई और 2014 और 2019 में बीजेपी के उम्मीदवार ने यहां पर जीत दर्ज की.
देवास लोकसभा सीट इतिहास
मध्य प्रदेश की देवास लोकसभा सीट राज्य की एक ऐसी सीट रही है, जहां से बीजेपी के दिग्गज नेता थावरचंद गहलोत चुनाव लड़ चुके हैं. यह सीट 2008 में अस्तित्व में आई. शाजापुर लोकसभा सीट को खत्म करके बनाई गई देवास लोकसभा सीट पर दो चुनाव हुए हैं, जिसमें से एक में कांग्रेस और एक में बीजेपी को जीत मिली है. इस सीट से 2014 का लोकसभा चुनाव जीतने वाले बीजेपी के मनोहर ऊंटवाल ने हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में आगर सीट से भी जीत हासिल की.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
देवास लोकसभा सीट 2008 अस्तित्व में आई. शाजापुर लोकसभा सीट को खत्म करके देवास लोकसभा सीट बनाई गई. यह सीट अनुसूचित जाति के उम्मीदवार के लिए आरक्षित है. 2009 में हुए यहां पर चुनाव में कांग्रेस के सज्जन सिंह को जीत मिली थी. उन्होंने मोदी सरकार में मंत्री थावरचंद गहलोत को मात दी थी. हालांकि इसके अगले चुनाव में बीजेपी ने बदला लेते हुए इस सीट पर कब्जा किया.
बीजेपी के मनोहर ऊंटवाल ने देवास लोकसभा सीट पर जीत हासिल की थी, लेकिन उन्होंने 2018 का विधानसभा चुनाव लड़ा और आगर सीट पर उन्होंने विजय हासिल की.
ऐसे में देखा जाए तो इस सीट पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच बराबरी का मुकाबला रहा है. दोनों को यहां एक-एक चुनाव में जीत मिली है. देवास लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत विधानसभा की 8 सीटें आती हैं.
आष्टा, शुजालपुर,देवास,आगर,कालापीपल, हटपिपल्या, शाजापुर और सोनकच्छ यहां की विधानसभा सीटें हैं. यहां की 8 विधानसभा सीटों में से 4 पर बीजेपी और 4 पर कांग्रेस का कब्जा है.
2014 का जनादेश
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के मनोहर ऊंटवाल ने कांग्रेस के सज्जन सिंह को हराया था. इस चुनाव में मनहोर ऊंटवाल को 665646(58.19 फीसदी) वोट मिले थे तो वहीं सज्जन सिंह को 405333(35.49 फीसदी) वोट मिले थे. दोनों के बीच हार जीत का अंतर 260313 वोटों का था. वहीं बसपा 1.51 फीसदी वोटों के साथ तीसरे स्थान पर थी.
इससे पहले 2009 के चुनाव में कांग्रेस के सज्जन सिंह को जीत मिली थी. उन्होंने बीजेपी के दिग्गज नेता थावरचंद गहलोत को मात दी थी. सज्जन सिंह को 376421(48.08 फीसदी) वोट मिले थे तो वहीं थावरतंद गहलोत को 360964(46.1 फीसदी) वोट मिले थे.दोनों के बीच हार जीत का अंतर 15457 वोटों का था. इस चुनाव में बसपा 1.37 फीसदी वोटों के साथ तीसरे स्थान पर थी.
सामाजिक ताना-बाना
देवास जिला इंदौर से करीब 35 किमी की दूरी पर है. यहां माता की टेकरी पर चामुण्डा माता और तुलजा भवानी माता के प्रसिद्ध मन्दिर हैं ,जिसके दर्शन के लिये लोग दूर-दूर से आते हैं. देवास एक औद्योगिक नगर है.
यह एक ऐसा शहर है, जहा दो वंशों ने राज किया. होलकर राजवंश और पंवार राजवंश ने यहां पर राज किया. देवास में बैंक नोट प्रेस भी है. आर्थिक व्यय विभाग की औद्योगिक इकार्इ बैंक नोट प्रेस, देवास की संकल्पना 1969 में की गर्इ और 1974 में इसकी स्थापना हुर्इ.
2011 की जनगणना के मुताबिक देवास की जनसंख्या 24,85,019 है. इसमें से 73.29 फीसदी लोग ग्रामीण इलाके में रहते हैं और 26.71 फीसदी लोग शहरी क्षेत्र में रहते हैं. यहां पर 24.29 फीसदी जनसंख्या अनुसूचित जाति की है और 2.69 फीसदी जनसंख्या अनुसूचित जनजाति की है. चुनाव आयोग के आंकड़े के मुताबिक 2014 के चुनाव में यहां पर 16,17, 215 मतदाता थे. इसमें से 7,73,660 महिला मतदाता और 8,43, 555 पुरूष मतदाता थे. 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां पर 70.74 फीसदी मतदान हुआ था.
सांसद का रिपोर्ट कार्ड
55 साल के मनोहर ऊंटवाल 2014 में चुनाव जीतकर पहली बार सांसद बने. संसद में उनकी उपस्थिति 58 फीसदी रही. उन्होंने इस दौरान 2 बहस में हिस्सा लिया और 52 सवाल किए. मनोहर ऊंटवाल को उनके निर्वाचन क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए 25 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे. जो कि ब्याज की रकम मिलाकर 25.18 करोड़ हो गई थी. इसमें से उन्होंने 22.23 यानी मूल आवंटित फंड का 86.91 फीसदी खर्च किया. उनका करीब 2.96 करोड़ रुपये का फंड बिना खर्च किए रह गया.
फिर हो गया बीजेपी का कब्जा
2019 के चुनाव की बात की जाए तो बीजेपी ने इस लोकसभा सीट से सुधीर गुप्ता को एक बार फिर से मौका दिया. इस चुनाव में कांग्रेस ने मीनाक्षी नटराजन पर ही दाव खेला था. हालांकि यह दूसरी बार था कि इन दो धुरंधरों के बीच मुकाबला था. इससे पहले यह दोनों कैंडिडेट 2014 के चुनाव में आमने-सामने रह चुके हैं. 2019 के चुनाव में सुधीर गुप्ता को 8.47 लाख वोट हासिल किए वहीं कांग्रेस की मीनाक्षी नटराजन को सिर्फ 4.71 लाख वोट मिले थे.
मंदसौर लोकसभा सीट इतिहास
उज्जैन संभाग में आने वाली मंदसौर लोकसभा सीट बहुत महत्वपूर्ण है. शिवना नदी के किनारे बसा यह शहर प्राकृतिक रूप से तो सुंदर है ही साथ ही यह क्षेत्र अफीम की खेती के लिए जाना जाता है. यहां की राजनीति पूरे मालवा क्षेत्र से बहुत प्रभावित रहती है. मध्य प्रदेश के इस क्षेत्र में मसालों का अच्छा खासा व्यापार होता है. यहां पर कई विख्यात शैक्षणिक संस्थान तो हैं ही साथ ही यहां पर कई छोटे-बड़े उद्योग भी हैं.
रावण की ससुराल के रूप में पूरे देश में पहचान रखने वाले मंदसौर शहर का इतिहास भी काफी पुराना है. यहां पर स्थित पशुपतिनाथ मंदिर पूरे विश्व का दूसरा पशुपतिनाथ मंदिर है. यह मंदिर शिवना नदी के किनारे पर है. इस लोकसभा में आठ विधानसभाएं हैं जिनमें रतलाम जिले की जाओरा, मंदसौर जिले की मंदसौर, मल्हारगढ़, सुवासरा, गरोठ, और नीचम जिले की मनसा, नीमच और जावद विधानसभाएं शामिल हैं.
2019 का जनादेश
बीजेपी के सुधीर गुप्ता को 8,47,786 वोट मिले (जीते)
कांग्रेस के मीनाक्षी नटराजन को 4,71,052 वोट मिले
बसपा के प्रभुलाल मेघवाल को 9,703 वोट मिले
2014 का जनादेश
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के सुधीर गुप्ता ने यहां पर जीत हासिल की. उन्होंने कांग्रेस की मीनाक्षी नटराजन को हराया था. सुधीर गुप्ता को 698335 वोट मिले थे तो वहीं मीनाक्षी नटराजन को 394686 वोट मिले थे। दोनों के बीच हार जीत का अंतर 303649 वोटों का था. वहीं आम आदमी पार्टी 0.88 फीसदी वोटों से साथ तीसरे स्थान पर रही थी.
2009 में मीनाक्षी नटराजन ने जीता चुनाव
मंदसौर लोकसभा सीट की सिर्फ मंदसौर विधानसभा को छोड़ दिया जाए तो सभी विधानसभाओं पर बीजेपी काबिज है. वहीं अगर लोकसभा चुनावों की बात की जाए तो इस क्षेत्र में 1989 से 2004 तक बीजेपी का एकतरफा दबदबा रहा है. इस जीत के रथ को 2009 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रही मीनाक्षी नटराजन ने रोका और लोकसभा चुनाव जीता. हालांकि इसके बाद फिर से यह सीट बीजेपी के पास चली गई और 2014 और 2019 में बीजेपी के उम्मीदवार ने यहां पर जीत दर्ज की.
रतलाम-झाबुआ संसदीय सीट प्रदेश की सबसे हॉट आदिवासी सीटों में से एक है. लेकिन इस बार यहां मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है. दरअसल, भारत आदिवासी पार्टी ने रतलाम झाबुआ लोकसभा सीट पर अपना उम्मीदवार मैदान में उतार दिया है. इस सीट से पेटलावद विधानसभा चुनाव में जयस समर्थित भारत आदिवासी पार्टी से उम्मीदवार रहे इंजीनियर बालुसिंह गामड़ को टिकट दिया है. रतलाम जिले की सैलाना विधानसभा सीट भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) के खाते में है। ऐसे में इस क्षेत्र में वर्चस्व रखने वाले जयस और बीएपी के प्रत्याशी में त्रिकोणीय मुकाबला होगा. राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं, बीएपी के चुनाव लड़ने से खासकर भाजपा को नुकसान होने की ज्यादा संभावना दिख रही है.
रतलाम लोकसभा सीट इतिहास
रतलाम लोकसभा सीट को 2008 में हुए परिसीमन के बाद लोगों ने जाना, इससे पहले इस सीट को झाबुआ नाम से जाना जाता था. इस लोकसभा सीट में पूरा अलीराजपुर और झाबुआ जिला आता है. इन दो जिलों के अलावा इस सीट में रतलाम जिले का कुछ हिस्सा भी शामिल है. मध्य प्रदेश में झाबुआ जिला आदिवासियों के लिए जाना जाता है, यहां के तीज-त्यौहार भी आदिवासियों के रीति-रिवाजों के आधार पर मनाए जाते हैं. यहां पर हस्त शिल्प के कई छोटे-छोटे उद्योग भी हैं जो कि आदिवासियों के कल्चर को दर्शाते हैं.
रतलाम लोकसभा सीट को आदिवासी समुदाय के उम्मीदवारों के लिए रिजर्व किया गया है. इस लोकसभा सीट में भी 8 विधानसभाओं को शामिल किया गया है. जिसमें अलीराजपुर जिले की अलीराजपुर और जोबट, झाबुआ जिले की झाबुआ, ठंडला, पेटलावाद, रतलाम जिले की रतलाम रूरल, रतलाम सिटी और सैलाना विधानसभा शामिल हैं. इन विधानसभाओं में तीन पर कांग्रेस काबिज है, 4 पर बीजेपी और एक विधानसभा सीट पर भारत आदिवासी पार्टी ने जीत हासिल की है.
कांग्रेस का दबदबा
यह लोकसभा सीट लंबे वक्त तक कांग्रेस का अभेद्य किला रहा है. यहां से कांतिलाल भूरिया चुनाव लड़ा करते थे. कांतिलाल भूरिया यहां पर 1998 से लेकर 2009 तक लोकसभा चुनाव जीते हैं. उनकी जीत के इस रथ को 2014 में दिलीप सिंह भूरिया ने रोक दिया था. जिसके बाद यहां हुए उपचुनाव में कांतिलाल भूरिया ने फिर से जीत हासिल की थी. इसके बाद 2019 में गुमान सिंह डामोर ने उन्हें शिकस्त दी थी.
करीब 1 लाख वोटों से हारे भूरिया
अगर 2019 के लोकसभा चुनाव की बात की जाए तो इस सीट पर कुल 18,51,112 वोटर्स हैं. यहां पर हुए चुनाव में कांग्रेस ने दिग्गज नेता कांतिलाल भूरिया को एक बार फिर से मौका दिया. वहीं बीजेपी ने गुमान सिंह डामोर को मैदान में उतारा था. इस चुनाव में बीजेपी के गुमान सिंह ने करीब 7 लाख वोट हासिल किए थे, जबकि कांतिलाल भूरिया को करीब 6 लाख वोटों से ही संतोष करना पड़ा था.
पिछले लोकसभा चुनाव 2019 बीजेपी ने यहां से गुमान सिंह डामोर को टिकट दिया था. जबकि कांग्रेस ने पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया पर को प्रत्याशी बनाया था. गुमान सिंह डामोर को 696,103 वोट मिले, जबकि कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया को 6,05,467 वोट मिले थे. बीजेपी के डामोर ने भूरिया को 90,636 वोटों के भारी अंतर से हराया था.
रतलाम सीट से वर्तमान सांसद गुमान सिंह डामोर का टिकट कटने का बड़ा कारण पार्टी का सीट पर कराया गया आंतरिक सर्वे बताया जा रहा है. सूत्रों के मुताबिक सर्वे में गुमान सिंह डामोर रतलाम ग्रामीण सीट के अलावा कहीं पर भी लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार के तौर पर पहली पसंद नहीं बन पाए थे, वहीं अनिता नागर चौहान पांच विधानसभा सीटों पर पहली पसंद बनकर सामने आई थीं. जिसके बाद भाजपा ने सांसद डामोर का टिकट काट कर अनिता को प्रत्याशी बनाया.
रतलाम सीट से भाजपा की लोकसभा उम्मीदवार बनाई गईं अनिता नागर सिंह चौहान मध्यप्रदेश सरकार में मंत्री नागर सिंह चौहान की पत्नी हैं जो कि दो बार से अलीराजपुर जिला पंचायत की अध्यक्ष हैं. यहां ये भी बता दें कि इस बार हुए जिला पंचायत चुनाव में अनिता नागर को 13 में से 12 वोट मिले थे. मंत्री नागर सिंह चौहान इस क्षेत्र में पकड़ रखते हैं.
17 लोकसभा चुनाव और एक उपचुनाव में चार बार ही रतलाम झाबुआ सीट से गैर कांग्रेसी उम्मीदवार जीते है. जनसंघ और भाजपा के लिए यह सीट हमेशा चुनौतीपूर्ण रही है. दिलीप सिंह भूरिया सबसे ज्यादा सात बार कांग्रेस के सांसद रहे. फिर वर्ष 2014 में दिलीप सिंह भूरिया भाजपा में आए और चुनाव जीते, लेकिन उनके निधन के कारण उपचुनाव हुआ और कांग्रेस ने उपचुनाव में जीत दर्ज कराई. 2019 में भाजपा के डामोर ने इस सीट से जीत हासिल की.
इस सीट पर अभी तक तीन बार महिला उम्मीदवार को राजनीतिक दलों ने टिकट दिया है. कांग्रेस ने 1962 में पहली बार महिला प्रत्याशी को मैदान में उतारा था. तब जमुनादेवी चुनाव जीती थी. तब यह सीट चर्चा में आई थी. इस सीट पर 1962 में टिकट बदलते हुए अमर सिंह के स्थान पर जमुना देवी को उम्मीदवार बनाया था. 2004 में दिलीप सिंह भूरिया के बजाए रेलम सिंह चौहान को टिकट दिया, लेकिन वे चुनाव नहीं जीत पाई. अब भाजपा ने फिर महिला को टिकट दिया है.
धार लोकसभा इतिहास
धार लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र मध्य प्रदेश राज्य के 29 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है. यह निर्वाचन क्षेत्र अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. यह निर्वाचन क्षेत्र 1967 में अस्तित्व में आया. यह पूरे धार जिले और इंदौर जिले के कुछ हिस्से को कवर करता है.
2011 की जनगणना के मुताबिक धार की जनसंख्या 25,47,730 है. यहां की 78.63 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्र में रहती है और 21.37 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्र में रहती है. धार में अनुसूचित जनजाति के लोगों की संख्या ज्यादा है. यहां की 51.42 फीसदी जनसंख्या अनुसूचित जनजाति की है और 7.66 फीसदी जनसंख्या अनुसूचित जाति की है.
चुनाव आयोग के आंकड़े के मुताबिक 2014 के चुनाव में यहां पर कुल 16,68,441 मतदाता थे. इनमें से 8,10,348 महिला मतदाता और 8,58,093 पुरुष मतदाता थे. 2014 के चुनाव में इस सीट पर 64.54 फीसदी मतदान हुआ था.
धार लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत विधानसभा की 8 सीटें आती हैं. सरदारपुर, मनवार, बदनावर, गंधवानी, धर्मपुरी, डॉ. अंबेडकरनगर-महू, कुकशी, धार यहां की विधानसभा सीटें हैं.
धार लोकसभा सीट पर एक दौर में कभी कांग्रेस का दबदबा रहा करता था. लेकिन देश के साथ ही वह यहां पर भी कमजोर होती गई और बीजेपी ने इसका पूरा फायदा उठाया. 2014 के चुनाव में बीजेपी की सावित्री ठाकुर कांग्रेस के उमंग सिंघर को मात देकर यहां की सांसद बनीं. हालांकि पिछले तीन चुनाव के नतीजों को देखें तो यहां की जनता ने किसी एक पार्टी को लगातार दूसरी बार नहीं चुना है.
2019 के आम चुनाव में धार संसदीय सीट से चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों में दिनेश गिरवाल(कांग्रेस), छत्तर सिंह दरबार(भारतीय जनता पार्टी), गुलसिंह कवाचे(बहुजन समाज पार्टी), कैलाश वासुनिया(बहुजन मुक्ति पार्टी), मनीष डेविड(भारतीय अमृत पार्टी) और रामचरण मालीवाड़(जनता कांग्रेस) थे. वहीं निर्दलीय उम्मीदवारों में दशरथ भुवन शामिल थे.
2019 का जनादेश
बीजेपी के चत्तर सिंह दरबार को 7,22,147 वोट मिले (जीते)
कांग्रेस के गिरवाल दिनेश को 5,66,118 वोट मिले
नोटा को जनता ने 17,929 वोट दिए
2014 का जनादेश
2014 के चुनाव में बीजेपी की सावित्री ठाकुर ने कांग्रेस के उमंग सिंघर को मात दी थी. सावित्री ठाकुर को 5,58,387(51.86 फीसदी) वोट मिले थे. उमंग सिंघर को 4,54,059(42.17 फीसदी) वोट मिले थे. दोनों के बीच हार जीत का अंतर 1,04,328 वोटों का था. बसपा के अजय रावत 1.36 फीसदी वोटों के साथ इस चुनाव में तीसरे स्थान पर थे.
2009 का जनादेश
इससे पहले 2009 के चुनाव में कांग्रेस के गजेंद्र सिंह को जीत मिली थी. उन्होंने बीजेपी के मुकाम सिंह को हराया था. गजेंद्र सिंह को 3,02,660(46.23 फीसदी) वोट मिले थे तो मुकाम सिंह को 2,99,999( 45.82फीसदी) वोट मिले थे. दोनों के बीच हार जीत का अंतर सिर्फ 2661 वोटों का था. वहीं बसपा के अजय रावत 2.46 फीसदी वोटों के साथ तीसरे स्थान पर थे.
राजा भोज ने बनवाई भोजशाला
ऐतिहासिक धरोहरों की बात की जाए तो यहां पर धार किला और भोजशाला मंदिर स्थित है. धार किला एक ओर समृद्ध इतिहास का प्रतीक है तो वहीं भोजशाला मंदिर शिक्षा की देवी मां सरस्वती की उपासना का प्रतीक है. परमार राजा भोज पर इस भोजशाला का नाम पड़ा है. यहां हर बसंत पंचमी पर भव्य आयोजन किया जाता है. इतिहास में जिक्र है कि मालवा क्षेत्र की राजधानी के तौर पर इस शहर की साख थी.
राजनीतिक वर्चस्व
इस लोकसभा सीट के गठन के बाद से ही यहां पर किसी एक पार्टी का एकछत्र राज नहीं रहा है. समय-समय पर यहां की जनता ने अपने पसंदीदा कैंडिडेट को चुना है और विपक्षी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है. 2014 और 2019 के चुनाव की बात की जाए तो यहां पर बीजेपी से सावित्री ठाकुर और छत्तर सिंह दरबार ने जीत दर्ज की है. 2019 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर छत्तर सिंह दरबार ने कांग्रेस के गिरवाल दिनेश को करीब डेढ़ लाख वोटों के अंतर से हराया था.