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पंडित दीनदयाल उपाध्याय के रहस्यमयी मौत से उठा पर्दा, इस किताब ने खोला रहस्य

By: RNI Hindi Desk 
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पंडित दीनदयाल उपाध्याय के रहस्यमयी मौत से उठा पर्दा, इस किताब ने खोला रहस्य

रिपोर्ट: सत्यम दुबे

नई दिल्ली: भारतीय जनसंघ के संस्थापको में से एक पंडित दीन दयाल उपाध्याय की गुरुवार को 11 फरवरी को पूर्णतिथि के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं को संबोधित किया। दीन दयाल उपाध्याय के मौत का कारण आज भी पता नहीं चल पाया है। आज हम आपको हरीश शर्मा की किताब ‘पंडित दीनदयाल उपाध्याय’ के माध्यम से बताने की कोशिश कर रहे हैं कि उनकी मृत्यु के आखिरी कुछ घंटो में उनके साथ क्या हुआ था?

हरीश शर्मा ने अपनी किताब पंडित दीनदयाल उपाध्याय में जिक्र किया है कि साल 1968 के जाड़े का समय था। इस समय संसद का बजट सत्र भी शुरु होने वाला था। बजट सत्र को ध्यान में रखते हुए जनसंघ ने 11 फरवरी को 35 सदस्यों वाली संसदीय दल की बैठक बुलाई थी। बजट सत्र शुरु होने से एकदिन पहले जनसंघ के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष पंडित दीनदयाल उपाध्याय लखनऊ में थे। दीन दयाल जी अपनी मुंहबोली बहन लता खन्ना से मिलने आए हुए थे। उसके अगले दिन पंडित जी को संसदीय दल की बैठक के लिए दिल्ली जाना था।

यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि ऐसा क्या हुआ कि पंडित जी को दिल्ली की बजाय पटना जाना पड़ा। आइये जानते हैं कि पंडित जी को अचानक पटना क्यों जाना पड़ा?

10 फरवरी 1968 की सुबह आठ बजे लता खन्ना के घर फोन आया। फोन था बिहार जनसंघ के संगठन मंत्री अश्विनी कुमार की। उश्विनी कुमार ने पंडित जी से बिहार प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में शामिल होने का आग्रह किया। जिसके बाद उन्होने दिल्ली में सुंदर सिंह भंडारी से बात कर बिहार जाने का फैसला लिया।

जल्दी-जल्दी  में पटना जाने के लिए पंडित जी का टिकट करवाया गया। पंडित जी का टिकट पठानकोट-सियालदह एक्सप्रेस के फर्स्ट क्लास में करवाया गया। आपको बता दें कि उनके टिकट का नंहर 04348। ट्रेन की फर्स्ट क्लास की बोगी के ‘ए’ कम्पार्टमेंट में उनको सीट मिल गई थी। शाम सात बजे, पठानकोट-स्यालदाह लखनऊ पहुंची। इस दौरान यूपी के तत्कालीन उप मुख्यमंत्री राम प्रकाश गुप्त उन्हें स्टेशन तक छोड़ने आए थे।

पठानकोट-सियालदह एक्सप्रेस बाराबंकी, फैजाबाद, अकबरपुर और शाहगंज होते हुए जौनपुर पहुंची। जब ट्रेन जौनपुर पहुंती को उस वक्त रात के ठीक 12 बज रहे थे। यहां उनसे जौनपुर के महाराज के कर्मचारी कन्हैया एक पत्र देने पहुंचे थे। पत्र लेते ही उनको आया कि वो अपना चश्मा कम्पार्टमेंट के भीतर ही भूल गए थे। पंडित जी कन्हैया को लेकर कम्पार्टमेंट के भीतर आ गए। उन्होंने कन्हैया से कहा कि जल्द ही वो महाराजा को पत्र का जवाब भेजेंगे। तभी ट्रेन के चलने की सीटी बजी। उस वक्त 12 बजकर 12 मिनट हो रहे थे।

जौनपुर से गाड़ी चलकर बनारस पहुंची। और 2 बजकर 15 मिनट पर ट्रेन मुग़लसराय जंक्शन के प्लेटफॉर्म नंबर 1 पर आकर रुकी।  यह गाड़ी पटना नहीं जाती थी। इसलिए इस डिब्बे को दिल्ली-हावड़ा एक्सप्रेस से जोड़ा गया।

मुगलसराय से गाड़ी 2 बजकर 50 मिनट पर चली और सुबह 6 बजे पटना जंक्शन पहुंची। पंडित जी की अगवानी करने वहां कैलाशपति मिश्र स्टेशन पर मौजूद थे। उन्होंने पंडित जी को ढूढते हुए पूरी बोगी देख ली। पंडित जी वहां नहीं थे। कैलाशपति ने सोचा कि शायद पंडित जी पटना आने के बजाय दिल्ली चले गए और वो वापस घर लौट गए।

दूसरी ओर  मुग़लसराय स्टेशन के यार्ड में लाइन से करीब 150 गज दूर एक बिजली के खंभा संख्या 1267 से करीब तीन फुट की दूरी पर एक लाश पड़ी मिली। रेलवे के डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। डॉक्टरों ने इस बात की पुष्टी की कि पंडित जी की मौत 5 बजकर 55 मिनट पर हुआ है। लोकिन बाद में संसोधन करते हुए 3 बजकर 55 मिनट कर दिया गया।

25 मार्च 1968 को नागपुर से नानाजी देशमुख ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मौत को राजनीतिक हत्या बताया था। दीन दयाल की मृत्यु होने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी को जनसंघ की कमान सौंपी गई। आपको बता दें कि आज तकयह रहस्य बना हुआ है कि दीन दयाल जी की मृत्यु हुई कैसे?

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