पीस पार्टी के अध्यक्ष डॉ. अयूब जेल से रिहा हो गए है। आपको बता दे, डॉ. अयूब व अन्य मुल्जिमों द्वारा कुछ उर्दू अखबारों में एक विज्ञापन प्रकाशित कराया गया था। इस मामले की एफआइआर थाना हजरतगंज में दर्ज हुई थी। आरोप लगाया गया था कि इससे विभिन्न समुदायों और वर्गो में शत्रुता, घृणा, द्वेष तथा वैमन्स्यता पैदा हो रहा है।
डॉ. अयूब पर राष्ट्रदोह और धार्मिक भावना को भड़काने समेत कई गंभीर आरोप लगे थे, जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया था। उनकी गिरफ़्तारी गोरखपुर पुलिस ने की थी और उसे बाद में लखनऊ पुलिस को सौंप दिया गया था। उनके खिलाफ धार्मिक भावना भड़काने, 7 क्रिमिनल लॉ एमेंडमेंट एक्ट और आइटी एक्ट के तहत केस दर्ज हुआ था।
ज्ञात हो, जिस वक्त पुलिस दल-बल के साथ डॉ. अयूब को गिरफ्तार करने पहुंची थी, वह ऑपरेशन थिएटर में थे। उन्हें किसी अधिकारी की तबीयत खराब होने का बहाना देकर बाहर बुलाया गया और वहीं से गिरफ्तार कर लिया गया। डॉ. अयूब पर एनएसए के तहत भी कार्रवाई की गई थी।
इसके बाद अयूब ने इन सभी मामलों में एमपी-एमएलए कोर्ट में जमानत अर्जी दाखिल की थी जिसके बाद उन्हें जमानत मिल गई थी। इसके अलावा सरकार ने इनके ऊपर लगाया गया एनएसए भी हटा लिया है।
दरअसल पीस पार्टी बनने के पीछे की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। कैसे एक डॉक्टर बिज़नेसमैन बना और आगे चलकर कैसे उसने एक सियासी पार्टी का गठन किया।
आपको बता दे, डॉ. मोहम्मद अयूब का जन्म उत्तर प्रदेश के गोरखपुर स्थित गोला तहसील के बाधलगंज में हुआ था। उन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से चिकित्सा के सर्जरी क्षेत्र में मास्टर डिग्री प्राप्त की। इसके अलावा सर्जरी में उन्होंने एमएस, एफ़एआईएस, एफआईसीएस की भी डिग्री ली।
पढ़ाई के बाद वह चिकित्सा क्षेत्र के बड़े बिजनेस मैन बनने में सफल हुए। डॉ. अयूब की इस कारण शोहरत थी कि वह एक दिन में दर्जनों ऑपरेशन करते थे और ये ऑपरेशन ज्यादातर पेट में पथरी के होते थे। तराई क्षेत्र में भारी पानी के कारण पेट में पथरी के मरीज बहुत मिलते हैं।
अपने जोहरा अस्पताल और पथरी के ऑपरेशनों के कारण डॉ. अयूब को खूब शोहरत और पैसा मिला ऐसा जानकारों का मानना है। वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल की राजनीति में परिवर्तनकारी की शुरुआत हो चुकी थी।
हिन्दू और हिंदुत्व के प्रखर योगी आदित्यनाथ ने अपनी हिन्दू वाहिनी के 5 लोगों को टिकट दिलवा दिया और वो जीत भी गए। इसके बाद पूर्वांचल की ब्राह्मण राजनीति के केंद्र पंडित हरिशंकर तिवारी चिल्लूपार सीट से एक पत्रकार से हार गए और उसका नाम था राजेश त्रिपाठी। डॉक्टर अयूब और राजेश त्रिपाठी की अच्छी दोस्ती है।
इसी घटनाक्रम के बाद डॉक्टर अयूब ने फरवरी 2008 में पीस पार्टी की स्थापना की। पार्टी ने पहली बार 2009 के लोकसभा चुनाव में यूपी की 80 सीटों में 21 पर अपनी किस्मत आजमाई। पार्टी को कई सीटों पर 75 हजार से एक लाख तक वोट मिले।
इसलिए विधानसभा के चुनाव में यह पार्टी आकर्षण का केंद्र हो गयी। अल्पसंख्यको के बीच ज्यादा लोकप्रिय उर्दू अखबारों में डॉ. अयूब के बड़े-बड़े विज्ञापन छपने लगे। इसमें डॉ. अयूब को बड़ी भीड़ को संबोधित करते दिखाया जाता था और इसमें वह भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने का आह्वान करते थे।
डॉक्टर अयूब की राजनीतिक सक्रियता का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ की लोकतांत्रिक पार्टी का कैडर और जनाधार पीस पार्टी में शिफ्ट हो गया। संयोग से इसी वक्त बाटला हाउस एनकाउंटर भी हुआ था जिसने पूर्वांचल के मुस्लिमों के दिलों पर गहरा असर डाला था।
आतंकवाद के नाम पर बेकसूर युवा मुसलमानों के उत्पीड़न पर चुप्पी साधे रहने वाले कुछ दलों से अलग सोच रखने वाले डॉक्टर अयूब इस सियासी माहौल को अच्छे से समझ और परख रहे थे।
इसी बीच लोकसभा चुनावों की घोषणा हो गई थी। सपा मुखिया मुलायम सिंह ने कल्याण सिंह से गठबंधन कर लिया जिसकी मुस्लिम समाज में जमकर प्रतिक्रिया हुई। पीस पार्टी ने अपने गठन के सिर्फ एक साल के बाद ही चुनाव लड़ने का निर्णय लिया और 20 सीट पर अपने प्रत्याशी खड़े कर दिए।
खलीलाबाद, डुमरियागंज सहित कुछ अन्य स्थानों पर उनकी पार्टी को मिले वोट से बड़ी बड़ी पार्टियां हैरान हो गई थी। डुमरियागंज और लखीमपुर में पीस पार्टी को कांग्रेस और सपा से भी अधिक वोट मिले।
2009 के लोकसभा और 2010 के विधानसभा उपचुनाव में अच्छा वोट पाने से चुनाव लड़ने के इच्छुक नेता पीस पार्टी में शामिल होने की इच्छा रखने लगे। 2012 के विधानसभा चुनाव में पीस पार्टी में शामिल होने के लिए दूसरे दलों और चुनाव लड़ने के इच्छुक नए लोगों की होड़ लग गई।
उनकी पार्टी प्रदेश के 403 सीटों में से 208 स्थानों पर चुनाव लड़ गई. पार्टी चार सीटों पर जीत गई हालांकि 25-30 सीटों पर चुनाव जीतने के दावे किए जा रहे थे। इसके पहले उन्होंने ओम प्रकाश राजभर की भारतीय समाज पार्टी और अमर सिंह के लोकमंच से गठबंधन बनाया।
यह गठबंधन टूटा तो अजीत सिंह की रालोद से नाता जोड़ा। अजीत सिंह कांग्रेस के साथ चले गए तो नया गठबंधन बना। 2014 का लोकसभा चुनाव पार्टी 51 स्थानों से चुनाव लड़ी लेकिन किसी भी सीट पर सफलता नहीं मिली।
उसे 0.25 फीसदी (5,18,724) वोट मिले. डॉ. अयूब डुमरियागंज से चुनाव लड़े. उन्हें 99,242 मत मिले और वह चौथे स्थान पर रहे। वर्ष 2017 के चुनाव में उन्होंने निषाद पार्टी से गठबंधन बनाया और नारा दिया कि मुसलमान व निषाद मिलकर यूपी में सरकार बनाएंगे।
चुनाव में निषाद पार्टी को अच्छा वोट (72 सीटों पर 5,40,339 मत) मिला लेकिन पीस पार्टी मुसलमानों का वोट पाने में नाकाम रही। उसे 68 सीटों पर सिर्फ 1.56 फीसदी यानी 2,27,998 वोट मिले। खुद डॉ. अयूब खलीलाबाद से और बेटे इंजीनियर मो. इरफान मेंहदावल से हार गए।
आपको बता दे, राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम-1980 (NSA), देश की सुरक्षा के संबंध में सरकारों को कुछ विशेष शक्तियां देने से संबंधित कानून है। यह कानून केंद्र और राज्य सरकारों को किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को हिरासत में लेने की शक्ति देता है और यह एक्ट 23 सितंबर, 1980 में इंदिरा गांधी की सरकार के दौरान बना था।