मध्य प्रदेश में विधानसभा उपचुनाव के साथ किसानों का असंतोष भी बढ़ता जा रहा है। किसान संघ ने सरकार को चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया तो वे सरकार की बात नहीं सुनेंगे और चुनाव में वोट मांगने का प्रयास न करें।
प्रमुख मांगें
किसान संघ की मुख्य मांगों में सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 6000 रुपये, मक्का का एमएसपी पर खरीद, और एमएसपी गारंटी कानून लागू करने की मांग शामिल हैं। इन मुद्दों पर किसानों की निरंतर आवाज़ उठाई जा रही है, लेकिन सरकार ने इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।
चुनाव बहिष्कार का आह्वान
किसान संघ ने सोशल मीडिया के माध्यम से किसानों से अपील की है कि वे अपने गांवों में चुनाव का बहिष्कार करने के लिए बैनर-पोस्टर लगाएं। 23 सितंबर को आयोजित ट्रैक्टर रैली में भी किसानों ने सरकार से उचित मुआवजे की मांग की थी, जिसे नजरअंदाज कर दिया गया। इसके अलावा, किसानों ने शांतिपूर्वक मशाल रैली भी निकाली, लेकिन उसके बाद भी कोई परिणाम नहीं निकला।
प्रशासनिक उपेक्षा
किसान स्वराज संगठन के प्रदेश अध्यक्ष गजेन्द्र सिंह जाट ने बताया कि अक्टूबर में हुई तेज बारिश से फसल बर्बाद हो गई, लेकिन प्रशासन ने इसका सर्वेक्षण नहीं किया और न ही उचित मुआवजा दिया। इससे किसान नाराज हैं और उनका मानना है कि सरकार तानाशाह बन गई है।
राजनीतिक दलों की चिंता
किसानों के इस निर्णय से प्रमुख राजनीतिक दल, विशेषकर भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों में चिंता का माहौल है। यदि किसान अपने चुनाव बहिष्कार की योजना पर अमल करते हैं, तो चुनाव परिणामों पर इसका गहरा असर पड़ सकता है। 23 नवंबर को चुनाव परिणामों से यह स्पष्ट होगा कि इस निर्णय का किस दल को कितना नुकसान हुआ है।