{श्री अचल सागर जी महाराज की कलम से }
ममतामयी शब्द माँ की ममता के साथ ही प्रयोग किया जाता है क्यूंकि माँ ही तो ममता की खान होती है। दरअसल मानव, देवता और पशु पक्षी कोई भी क्यों नहीं हो, माँ के ह्रदय में अपनी संतान के लिए अद्भुत ममत्व दिखलाई देता है। चाहे स्त्री हो या पुरुष, किसी भी प्रकार की वेदना से ग्रसित क्यों नहीं हो, चाहे कितना भी ह्रदय विदारक कष्ट क्यों नहीं हो ! प्रत्येक मानव माँ को ही याद करता है, वो कभी भी हे माँ की जगह हे बाप नहीं कहता क्यूंकि माँ का स्नेह और उसकी ममता अपने बच्चों के लिए कभी कम नहीं होती।
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लेकिन अगर देखे तो चारों युगों का परिवर्तन समय समय पर बदलता रहता है। जिस तरह सतयुग में हर प्राणी सत्य और धर्म को आधार मान कर सतयुग में प्रभाव में रहकर उसी से प्रभावित होता था और सिर्फ धर्म में ही अपना जीवन लगाता था। उसके बाद त्रेता में मानव को मर्यादित करने के लिए भगवान राम ने मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में जन्म लिया और अत्यंत अभिमानी असुर रावण का वध किया और मर्यादा का पालन करते हुए सीता जी को सम्मान सहित वापिस लाये और राम राज्य कहलाया।
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इसके बाद द्वापर युग का आरंभ हुआ जिसमें श्री नारायण ने कृष्ण रूप में मानव अवतार लेकर लीला पुरुषोत्तम कहलाते हुए अनंत लीला की, उन्होंने बचपन से लीला करते हुए मथुरा के राक्षस राजा कंस का वध किया और महाभारत युद्ध में पांडवों की विजय को सुनिश्चित करवाकर द्वापर में धर्म की स्थापना की, और अब कलियुग का काल चल रहा है जिसमे सदाचार, नैतिकता, असली नकली की पहचान और अच्छाई बुराई की परख होना असंभव सा हो गया है।
आज इस समय में जब किसी को यह समझ में ही नहीं आ रहा कि किसको अपना कहे और किसको पराया तो ऐसे में माँ की ममता कैसे अछूती रह सकती है ? यह इस कलियुग का ही प्रभाव है कि माँ की ममता भी अब दूषित हो रही है। इस कलियुग का प्रभाव हर जगह विनाश करता हुआ दिखाई दे रहा है।
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जिन माता पिता ने अपने बच्चों की सुख दुःख में रहकर भली भांति परवरिश की, हमेशा यही सोचा की कैसे समाज में इनका नाम बढ़े, ये खुश रहे। इनको पढ़ाने लिखाने का लक्ष्य निर्धारित किया, ताकि अच्छे से जीवन यापन कर सके, उन्हें अच्छे संस्कार देने का भरसक प्रयास किया। कई मौकों पर संतान में माँ की ममता को प्रेम संबंधो के कारण अज्ञान बना दिया और कई बार संतान अपने माता पिता से बिना परामर्श किये ही अनजान लड़के को अपना जीवन साथी चुन लेती है।
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क्या उन्हें उस समय अबोधता में यह ज्ञान नहीं था या अज्ञानता के अँधेरे में फँसते ही चले गए और माता पिता, भाई बहन के सभी रिश्ते खत्म कर दिए। कई बार जब वो ऐसा करते है तो जीवन बड़ा ही दुःखमयी हो जाता है और कई बार तो उन्हें आत्महत्या भी करनी पड़ती हैं। इसलिए उचित है की माँ से पूछकर ही जीवन साथी का चयन हो तभी परिवार और समाज उत्तम रहेगा।