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मिशन 2022 यूपी चुनाव : चाचा के आशीर्वाद से भतीजा-चाचा मिलकर चलाएंगे साइकिल

By: RNI Hindi Desk 
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मिशन 2022 यूपी चुनाव : चाचा के आशीर्वाद से भतीजा-चाचा मिलकर चलाएंगे साइकिल

मिशन 2022 चुनाव : चाचा के आशीर्वाद से भतीजा-चाचा मिलकर चलाएंगे साइकिल

यूपी विधानसभा चुनाव में करीब डेढ़ साल का समय है लेकिन विधानसभा उपचुनाव में करारी हार के बाद विपक्ष की बेचैनी बढ़ गयी है। जोड़ तोड़ की राजनीति शुरू हो चुकी है। बड़ी खबर है कि चाचा भतीजा एक हो रहे है। अखिलेश बयान भी दे चुके हैं कि जसवंत नगर सीट उन्होंने प्रसपा के लिए छोड़ दी है।

यहीं नहीं शिवपाल यादव भी सपा के साथ गठबंधन की इच्छा जता चुके हैं। ऐसे में उनका क्या होगा जिन्होंने 2016 में विधायक बनने की महत्वाकांक्षा लिए सपा से बगावत कर प्रसपा का हाथ थामा था।

कारण कि गठबंधन के बाद तय है कि अखिलेश यादव अपने संसदीय क्षेत्र में किसी दूसरे दल को एक भी सीट देने वाले नहीं है जैसा उन्होंने 2017 में कांग्रेस के साथ किया था। ऐसे में सपा छोड़ प्रसपा से आये दिग्गजों की धड़कन तेज हो गयी है।

बता दें कि आजमगढ़ में दस विधानसभा सीटें हैं जिसमें पांच पर सपा और चार पर बसपा का कब्जा है। एक सीट भाजपा के पास है। फूलपुर-पवई विधानसभा से सपा के बाहुबली पूर्व सांसद रमाकांत यादव के पुत्र अरूणकांत यादव बीजेपी से विधायक है।

यहां बीजेपी कभी सपा बसपा को चुनौती नहीं दे पाई है। यहां तक कि 1991 की राम लहर में भी बीजेपी यहां कोई करिश्मा नहीं कर पायी थी। उसे मात्र दो सीटों पर सफलता मिली थी। बाकी की आठ सीटे सपा, बसपा के खाते में गयी थी। कांग्रेस यहां अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है।

वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और सपा मिलकर लड़ी थी। बीजेपी के प्रति पिछड़ों की लामबंदी के बाद भी पार्टी को सिर्फ एक सीट मिली। यह अलग बात है कि पहली बार वह चार सीटों पर दूसरे नंबर पर थी। इससे भाजपाइयों का उत्साह थोड़ा बढ़ा है लेकिन वे भी जानते हैं कि उनकी राह यहां इतनी आसान नहीं होने वाली है। वहीं सपा आजमगढ़ को अपने लिए सबसे सुरक्षित जिला मानती है। वर्ष 2012 में यहां सपा ने दस में से 9 विधानसभा सीटें जीती थी। मुबारकपुर सीट बसपा के खाते में सिर्फ इसलिए गयी थी कि सपा के पूर्व जिलाध्यक्ष रामदर्शन यादव पार्टी से बगावत कर भाजपा से चुनाव लड़े थे। बाद में उनकी फिर सपा में वापसी हो गयी लेकिन वर्ष 2016 में शिवपाल व अखिलेश में विवाद के बाद राम दर्शन फिर प्रसपा के साथ चले गए। कारण कि अखिलेश यादव ने उन्हें मुबारकपुर से टिकट देने के बाद फिर काट दिया था।

अब सपा और प्रसपा में गठबंधन की बात चल रही है। आजमगढ़ में जो हालात हैं उसमें गठबंधन के बाद भी प्रसपा को कोई सीट मिलने वाली नहीं है। जबकि प्रसपा के प्रदेश सचिव पूर्व विधायक राम दर्शन यादव दोबारा विधायक बनने के लिए बेचैन है। विधायक बनने की महत्वाकांक्षा ने ही उन्हें वर्ष पहले बीजेपी फिर प्रसपा में शमिल होने के लिए मजबूर किया था। यहां से सपा के अखिलेश यादव लगातार दो चुनाव 2000 से कम मतों के अंतर से हारे हैं। दोनों ही बार हार की वजह रमादर्शन यादव बने है।

इसी तरह प्रसपा के गठन के बाद सपा के वरिष्ठ नेता हेमराज पासवान भी अखिलेश का साथ छोड़ शिवपाल के साथ खड़े हो गए थे। शिवपाल ने उन्हें 2019 में लालगंज से लोकसभा चुनाव भी लड़ाया था लेकिन उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा था। हेमराज भी लंबे समय से विधानसभा पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं। हेमराज पासवान का राजनीतिक कैरियर पर गौर करें तो उन्होंने वर्ष 1984 में लोकदल से राजनीतिक सफर शुरू किया था। लोकदल से चुनाव लड़ते हुए वे 800 वोट से सरायमीर विधानसभा चुनाव से हारे थे। इसके बाद वे वर्ष 1991 में जनता दल, 1993 व 1997 में सपा तथा वर्ष 2002 में जद यू से सरायमीर विधानसभा से चुनाव लड़े थे। बाद में फिर सपा में चले गए थे। वर्तमान में शिवपाल यादव के साथ खड़े हैं।

अब बात करें प्रसपा जिलाध्यक्ष रामप्यारे यादव की तो यह भी पुराने समाजवादी नेता हैं। कभी यह समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव व पूर्व मंत्री बलराम यादव के काफी करीबी थे। बलराम यादव के साथ उन्होंने लोकदल सहित उन सभी दलों में काम किया जहां वे रहे।

सपा के गठन के बाद भी बलराम यादव के साथ रहे। मूल रूप से अतरौलिया विधानसभा क्षेत्र के गदनपुर गांव के रहने वाले राम प्यारे यादव वर्ष 1980 में जनता पार्टी के टूटने के बाद जब पूर्व केंद्रीय मंत्री चद्रजीत यादव आजमगढ़ से चुनाव लड़े तो उनके चुनाव प्रभारी रहे। इसके बाद वर्ष 1989-90 में जब कांग्रेस के सहयोग से मुलायम सिंह यादव की सरकार बनी तो बलराम यादव को क्षेत्रीय पंचायती राज मंत्री बनाया गया। उस समय बलराम यादव ने रामप्यारे यादव को अपना पीआरओ नियुक्त किया था।

उसके बाद मुलायम सिंह की ही सरकार में बलराम यादव स्वास्थ्य मंत्री और पंचायती राज मंत्री बने। उस समय भी बलराम यादव के पीआरओ रामप्यारे ही थे। राम प्यारे यादव शिवपाल यादव के साथ इस उम्मीद से जुड़े कि आगे चलकर इन्हें अतरौलिया से लड़ने का मौका मिलेगा लेकिन अब गठबंधन के बाद इनके भी मंसूबे पर पानी फिरता दिख रहा है। कारण कि अतरौलिया से सपा राष्ट्रीय महासचिव बलराम यादव के पुत्र डा. संग्राम यादव विधायक हैं।

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