2024 का आम चुनाव जैसे जैसे करीब आता जा रहा है दल बदल कानून की सारे नियमों को ताक पर रखकर नेतागण एक दल को रातों -रात छोड़कर दूसरे दलों का दामन थामने बड़ी बेशर्मी से थामने से संकोच नहीं कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1985 में 52वें संविधान संशोधन के माध्यम से देश में ‘दल-बदल विरोधी कानून’ संसद से पारित भी किया गया था और दाल बदल क़ानून की धज्जियाँ उड़ गयी हैं । लेकिन जिस प्रकार वर्तमान चुनावी माहौल में नेताओं द्वारा एक दल से दूसरे दल का दामन थामने की होड़ मची है उससे हमारे नीति -नियंताओं की खोखली मानसिकता खुद बखुद सामने आ रही है।
इस बात को तब और बल मिल गया जब राजस्थान जैसे देश के अहम् प्रदेश में आसन्न लोक सभा चुनाव से ऐन पूर्व कांग्रेस के 32 नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर लिया। बिहार जैसे प्रदेश में जहाँ वर्षों से नीतीश कुमार बीजेपी के विजय में रोड़ा बने हुए थे। वे जब एनडीए में पिछले दिनों शामिल हुए और रातों-रात बिहार जैसे अहम् चुनावी राज्य में एनडीए में शामिल होने वाले पल्टू राम के नाम से कुख्यात नीतीश कुमार ने भारतीय जनता पार्टी के साथ अपने दाल का गठबन्धन कर कुल आठवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। तब किसी को जरा भी आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि राजनीति के माहिर खिलाड़ी को इस बात का भान हो गया कि देश में एक बार फिर मोदी लहर बह रही है जिसमें विपक्ष ताश के पत्ते की मानिद बहने को लाचार है और वो इसमें उनका, जरा भी बाल बांका नहीं कर पाएंगे ।
आज एनडीए के सितारे तो सांतवें आसमान पर हैं ही , प्रधानमंत्री मोदी अपनी चुनावी सभाओं में गरज गरज कर इस बात पर मुहर लगा रहे हैं कि इस बार एनडीए गठबन्धन 400 सीटों के जादुई आंकड़ों को भी पार कर लेगा और एनडीए 2024 के आम चुनाव में जीत की तिकड़ी लगाएगा। वहीं जिस तरह से बड़ी संख्या में विपक्षी खेमे के धाकड़ नेताओं मोदी की चुनावी तिलिस्म के आगे एक -एक कर नतमस्तक होते जा रहे हैं उससे इस बात को बल मिलता है कि कुछ माह पूर्व काशी विश्वनाथ में माथा ठेक जीत का आशीर्वाद मांगा था आज बाबा विश्वनाथ उनमें पूरी तरह मेहरबान लगते हैं और दोनों हाथों से उन्हें जीत का आशीष देते लग रहे हैं।
उत्तर-प्रदेश जैसे बड़े राज्य में कांग्रेस के तमाम नेता जहाँ मोदी के तिलिस्म के आगे नतमस्तक होते जा रहे हैं। यही बात बिहार जैसे देश के दूसरे बड़े राज्यों में भी देखने को मिल रहा है। वहीं सुदूर गुजरात से लेकर अरूणांचल प्रदेश तक से कांग्रेस के नेता भारतीय जनता पार्टी के साथ जा मिले। तो दक्षिण में बीजेपी ने बड़ी सेंध लगाते हुए अपने विजय रथ को 2024 के आम चुनाव में मुकाम तक पहुँचाने का मुकम्मल बंदोबस्त कर लिया गुजरात विधानसभा में विपक्ष के नेता रह चुके अर्जुन मोढवाडिया राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के आयोजन से दूरी बनाने के स्टैंड का विरोध करते हुए विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए।
वहीं भारतीय जनता पार्टी के लिए अभेद्य रहे दक्षिणी राज्यों में से एक तमिलनाडु में अपना कुनबा बढाते हुए चन्द्रबाबू नायडू के तेलगुदेशम से गठबंधन कर प्रतिपक्ष के संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन के रीढ़ को और अधिक तोड़ दिया। कुल मिलाकर स्थिति यह है कि 2024 में देश के आम चनाव को जहाँ पूर्व में चुनावी पंडित, मोदी बनाम राहुल गांधी के बीच आर-पार की लड़ाई के तौर पर देख रहे थे वहीं आज यह स्थिति है कि मोदी लहर के समक्ष विपक्ष की ताकत नगण्य हो गयी है।
वैसे एक स्वस्थ प्रजातंत्र के लिए एक मुकम्मल विपक्ष की उपस्थिति आवश्यक मानी जाती है लेकिन जिस प्रकार अपनी चुनावी तिकड़मों से नरेंद्र मोदी ने विपक्ष को घुटनों पर ला खड़ा किया है उससे इस बात को भी बल मिलने लगा है कि प्रजातान्त्रिक व्यवस्था देश में अधिनाययकवाद का रूप न ले लें और बार -बार भारतीय जनता पार्टी नीत गठबंधन के चुने जाने से व निरंकुश न बन जाए और उसके सही गलत फैसले की भक्तभोगी वही जनता हो जाए जिसने उसे अपने सर आँखों पर बिठाकर उसे सत्ता में भेजा।
This post is written by Anjani Kumar and Edited/Published by Abhinav Tiwari.