नई दिल्ली : फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का विशेष धार्मिक महत्व है। इस एकादशी को जहां लोग आमलकी एकादशी के नाम से जानते हैं, वहीं कुछ लोग इसे रंगभरनी एकादशी के भी नाम से जानते है। इस एकादशी में भगवान विष्णु के साथ साथ आंवला के पेड़ की भी पूजा की जाती है।
पूजा विधि :
एकादशी पर स्नान करने के बाद पूजा आरंभ करें। पूजा स्थान पर बैठकर हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प लें और पूजा आरंभ करें। इस दिन भगवान विष्णु की प्रिय चीजों का भोग लगाएं। आपको बता दें कि इस दिन मंदिर के पास आंवला का पौधा लगाना शुभ माना गया है। इस दिन आंवला के वृक्ष की भी पूजा करें।
आमलकी एकादशी तिथि का मुहूर्त :-
24 मार्च को प्रात: 10 बजकर 23 मिनट से एकादशी तिथि का आरंभ।
25 मार्च प्रात: 09 बजकर 47 मिनट पर एकादशी तिथि का समापन।
26 मार्च प्रात: 06:18 बजे से 08:21 बजे तक एकादशी व्रत का पारण मुहूर्त।
आमलकी या रंगभरनी एकादशी का महत्व
आमलकी एकादशी के दिन विधि पूर्वक पूजा और व्रत रखने से जीवन में आने वाली परेशानियां दूर होती है। लंबी आयु के लिए यह व्रत अतिउत्तम माना गया है। यह एकादशी आंवले की उपयोगिता को बारे में भी बताती है। आंवला के कारण ही इस एकादशी को आमलकी एकादशी कहा जाता है।
आंवला के गुण :
आंवला को बहुत ही गुणकारी माना गया है। शास्त्रों में आंवला के पेड़ में भगवान विष्णु का निवास माना गया है। आंवले के पेड़ को आदि वृक्ष भी कहा जाता है। आपको बता दें कि आंवला विटामिन सी का बेहतरीन श्रोत माना गया है। इसके साथ ही आंवला में कैल्शियम, आयरन, फॉस्फोरस, फाइबर और कार्बोहाइड्रेट जैसे जरूरी तत्व भी पर्याप्त मात्र में उपलब्ध रहते हैं। आंवला के बारे में कहा जाता है कि यह कैंसर जैसे रोगों को दूर करने में सक्षम है। अल्सर से बचाता है और वजन कम करने में भी इसका प्रयोग लाभकारी माना गया है।