(कानपुर से इब्ने हुसैन जैदी की रिपोर्ट)
कानपुर में होली का हुड़दंग अभी जारी है। जो गंगा किनारे होली मेला के आयोजन के साथ समाप्त होगा। ये बात सन् 1930 के आसपास की है। जब जियालों के इस शहर में सात दिनों तक होली मनाने की परम्परा शुरू हुई थी। उस समय कुछ देशभक्त नौजवानों की एक टोली ने हटिया इलाके से निकल रहे अंग्रेज पुलिस अधिकारियों पर रंग डालकर हाय हाय के नारे लगाए थे।
जनता के बढ़ते दबाव के बाद सात दिनों बाद सभी गिरफ्तार युवकों को रिहा कर दिया गया था। तब अपनी इस जीत का जश्न मनाने और अंग्रेजी हुकूमत को ठेंगा दिखाने के लिए पूरे शहर में होली मेला आयोजित किया गया। तब से आज तक कानपुर में सात दिनों तक होली मनाना और बिट्रिश कालीन कोतवाली के सामने से रंगों का ठेला निकालना बदस्तूर चला आ रहा है ।
तो वहीं, बिरहाना रोड में युवाओं द्वारा होली गंगा मेला के दिन मटकी फोड़ गंगा मेला का आयोजन किया जाता है। यहां पर सड़क के बीचो-बीच ऊंचाई पर रस्सी द्वारा मटकी बांधी जाती है और होली के रंग और गाने गाने के बीच में इस मटकी फोड़ का आयोजन किया जाता है। जिसमें युवाओं के द्वारा श्रंखला बनाकर मटकी को फोड़ा जाता है।
मटकी फोड़ने के लिए शहर के कोने -कोने से युवाओं की टोली आती है और एक-एक करके अपनी कोशिश करती है और मटकी फोड़ने का प्रयास करती है मटकी फोड़ने में युवाओं की जो टोली सफल होती है उसको कमेटी द्वारा इनाम दिया जाता है।