{ श्री अचल सागर जी महाराज की कलम से }
हमारा सम्पूर्ण भारत धर्म, न्याय, नीति और मर्यादा का ही स्थान रहा है लेकिन वेद पुराण का कहना है कि श्री भगवान विष्णु की प्रेरणा से चार युगों को अपना कार्य करना होता है।
सतयुग में भी भगवान् ने अवतार लेकर भक्त प्रह्लाद की रक्षा की थी। त्रेता युग में जब पृथ्वी रावण के पाप के भार से कांपने लगी श्री विष्णु ने राम का अवतार लेकर लोगों को सुख प्रदान किया।
इसके बाद कंसा जैसे राजा से जब द्वापर में लोग पीड़ित हो गए तो श्री विष्णु ने कृष्ण का अवतार लेकर उनका वध किया और धर्म की स्थापना की थी।
सिर्फ इतना ही नहीं उन्होंने महायुद्ध में अर्जुन को गीता का ज्ञान देकर इस संसार को धन्य किया।आज भी गीता को इस देश में कृष्ण कि वाणी के के रूप में ही स्वीकार किया जाता है.
लेकिन समय का पहिया अपने हिसाब से घूमता है। इन तीन युगों के बाद जब कलियुग का समय आया तो राजा परीक्षित को उसे स्थान देना पड़ा।
झूठ, द्वेष, जुआ, स्वर्ण जैसे स्थान उसे दे दिए गए। कलियुग का युग एक ऐसा युग है जिसमे इंसान कि बुद्धि बहुत ही जल्दी क्षीण हो जायेगी।
कलियुग में झूठ और पाखंड अपने चरम पर हो जाएगा और लोग एक दूसरे के धन का हरण करने लग जायेगे लेकिन काल चक्र के नियम है कि कोई भी युग किसी भी युग में अतिक्रमण नहीं कर सकता है।
कलियुग में सिर्फ उसी व्यक्ति को शांति मिलेगी जो श्री विष्णु का निरंतर भजन कीर्तन करते हुए जीवन जीएगा। तुलसीदास जी ने भी कलियुग में बस नाम कि ही महिमा बताई है।