{ श्री अचल सागर जी महाराज की कलम से }
हम भली भांति जानते है की जितने भी शहर बसे है वो ग्रामीण जनता द्वारा ही विकसित हुए है। धीरे धीरे गांव छोटे होते गए और गावों की आबादी शहरों में आकर बस गयी। शहर वाले लोग आज हर फील्ड में आगे बढ़ रहे है लेकिन इस दौड़ में वो दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से कुछ अनमोल बातों को भूलते जा रहे है।
आज आधुनिकता की इस चकाचौंध में स्त्री और पुरुष दोनों ने ही गांव की परम्पराओं को मानना छोड़ दिया है जिसका दुष्परिणाम यह होगा की उनके बच्चे गांव की संस्कृति और सभ्यता से रूबरू नहीं हो पाएंगे। आज इस आधुनिकता की दौड़ में 90 फीसदी तो वास्तविक स्त्री और पुरुष का प्रेम खत्म हो चुका है। आज के समय में तो सिर्फ दिखावा ही दिखता है वही जो घनिष्ठ रिश्ते थे वो भी अब खत्म हो रहे है।
आज इस समय में कोई त्यौहार हो या कोई आयोजन सिर्फ उन्ही लोगों को बुलाया जाता है जिनसे आपका स्वार्थ सिद्ध हो जाता है, जिस गांव में हमारा जन्म हुआ, बड़े हुए, खेले, काम सीखा किन्तु आज उसी गांव से हमे कोई मतलब नहीं रहा है। आज इस पीढ़ी को अपने गांव में रह रहे माता पिता भाई बहन से कोई मतलब नहीं है।
क्या हमारे देश की यही मर्यादा है ? क्या इसी को व्यवहार कुशलता कहा जाएगा ! वही स्त्री ने भी अपनी शर्म लज्जा को खत्म कर दिया है। क्या शहर में ऐसी एक भी चीज़ ऐसी है जो गांव से शुद्ध है ! आज आपने सोचा है कि आप अपने बच्चों को क्या खिला रहे है ? आप सब नकली चीज़े अपनी संतानो को खिला रहे है। ये शहरी सभ्यता आप अपने बच्चों को सिखा रहे है जिससे आपके बच्चे भी आगे चलकर स्वार्थी ही होने वाले है।
शहर और गांवो में क्या अंतर रहेगा भविष्य में ? बच्चे हो सकता है पढ़ लिखकर आगे निकल जाए लेकिन हवा, पानी, अनाज, दूध तो सब नकली ही है ना ! नकली विकास की चमक धमक है और लोग एक दूसरे को बेवकूफ बनाते है। आज शहरों में झूठ, छल, फरेब के अलावा दीखता ही क्या है ?
गांवो से लोग ऐसे पलायन करेगें और आने वाले समय में ऐसे फरेब का बोलबाला होगा ऐसा तो किसी ने सोचा भी नहीं था। अब तो सिर्फ आम जनता के प्रतिनिधि और सांसदों से ही यह उम्मीद है की वो नयी नयी योजनाओं के माध्यम से गांव का विकास करे और युवाओं को रोज़गार प्रदान करे ताकि उनका पलायन रुके वही किसानों के अनाज को खरीदने की समुचित व्यवस्था हो, नहरों का निर्माण करके खेतों की सिंचाई का बंदोबस्त हो ताकि गांव में भी विकास की बयार बहे और किसी को भी पलायन करने की ज़रूरत नहीं पड़े।