एक और आईएएस ने इस्तीफा देकर राजनीति में अपना कदम रखा है। दरअसल आईएएस वीके पांडियन ने हाल ही में, 23 वर्षों तक सेवा करने के बाद सरकारी सेवाओं से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली है। इस्तीफे के तुरंत बाद राजनीति में शामिल होने के उनके फैसले ने न केवल सिविल सेवकों के आचरण बल्कि देश में राजनीतिक आचरण पर भी कई सवाल खड़े कर दिये हैं।
नई दिल्लीः बीते दिन राजनीति की दुनिया में एक नौकरशाह का नाम काफी चर्चा में है। पूर्व आईएएस अधिकारी वीके पांडियन का नाम काफी चर्चा में है, जो ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक के निजी सचिव भी थे। पांडियन ने हाल ही में, 23 वर्षों तक सेवा करने के बाद सरकारी सेवाओं से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली है, लेकिन यही कारण नहीं है कि वह सुर्खियों में हैं। इस्तीफे के तुरंत बाद राजनीति में शामिल होने के उनके फैसले ने न केवल सिविल सेवकों के आचरण बल्कि देश में राजनीतिक आचरण पर भी कई सवाल खड़े कर दिये हैं।
अक्सर विवादों रहे पांडियन
वैसे तो नवीन पटनायक के प्रभुत्व में ओडिशा की राजनीति बहुत ही शांत और नीरस जानी जाती है, लेकिन इस खबर ने वहां की राजनीति में सनसनी मचा दी। हालांकी राज्य के सीएम के निजी सहयोगी होने के कारण पांडियान अक्सर विवादों में घिरे रहते हैं। उन पर अक्सर राजनीतिक लाभ के लिए अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया जाता रहा है। कहा जा रहा है कि उनका इस्तीफा राजनीतिक खींचतान की वजह से काफी समय से रुका हुआ था।
पांडियन के इस्तीफे पर राजनीतिक खींचतान
एक ओर बीजेपी का आरोप है कि राज्य भर में जनसुनवाई के लिए उनके दौरे के बाद विपक्ष ने उन्हें इस्तीफा देने के लिए प्रेरित किया ताकि वह बिना मास्क पहने खुलेआम राजनीति में शामिल हो सकें। वहीं कांग्रेस विधायक एसएस सलूजा ने उनके फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि उन्हें ये फैसला पहले ही ले लेना चाहिए था। अगर वह बी जे डी में शामिल होते हैं तो यह विपक्ष के लिए फायदेमंद होगा। इस घटनाक्रम ने राजनीति को रोमांचक और हंगामेदार दौर में ला दिया है, लेकिन प्रशासन के संदर्भ में, यह हमारे देश को नियंत्रित करने वाले कानूनों पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। अगर राजनीति में आना इतना आसान है तो हर कोई समय-समय पर इसी नतीजे पर पहुंचेगा। जिस तरह जजों के लिए एक कूलिंग पीरियड की रूप रेखा बन गई है, वैसे ही सिविल सेवकों के लिए कोई नियम कानून बनाया जाना चाहिए।