रिपोर्ट: सत्यम दुबे
नई दिल्ली: कोरोना के दूसरे लहर के कहर में भारत लगातार घिरता चला जा रहा है, ऑक्सीजन और दवाइयों की कमीं से कोरोना संक्रमित मरीज लगातार दम तोड़ रहे हैं। लगातार स्थिति बिगड़ते देख दुनिया के कई देश भारत की मदत को सामने आये हैं। इन देशो में अमेरिका, रूस, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, आयरलैंड, बेल्जियम, रोमानिया, लक्समबर्ग, सिंगापुर, पुर्तगाल, स्वीडन, न्यूजीलैंड, कुवैत और मॉरीशस मुख्य रुप से शामिल हैं।
कोरोना महामारी ने भारत को विदेश नीति बदलने पर मजबूर कर दिया है। भारत ने विदेश से सहायता प्राप्त करने की अपनी नीति में 16 साल बाद बदलाव किया है। भारत द्वारा किये गये इस बदलाव के बाद उसने विदेश से मिलने वाले उपहार, दान एवं सहायता को स्वीकार करना शुरू किया है। इसके साथ ही चीन से भी चिकित्सा उपकरण खरीदने का फैसला किया है।
मीडिया रिपोर्ट में दावा किया जा रहा है कि कोरोना महामारी के संकट को देखते हुए विदेशी सहायता प्राप्त करने के संबंध में दो बड़े बदलाव देखने को मिले हैं। इस दावे में कहा गया है कि भारत को अब चीन से ऑक्सीजन से जुड़े उपकरण एवं जीवन रक्षक दवाएं खरीदने में कोई ‘समस्या’ नहीं है। वहीं पड़ोसी देश पाकिस्तान ने भी भारत को मदद की पेशकश की है। आपको बता दें कि पाकिस्तान के पेशकश पर भारत ने इस बारे में अभी कोई फैसला नहीं किया है। सूत्रों की मानें तो राज्य सरकारें विदेशी एजेंसियों से जीवन रक्षक दवाएं खरीद सकती हैं, केंद्र सरकार द्वारा उनको बाध्य नहीं किया जायेगा।
आपको बता दें कि भारत लगातार अपनी उभरते ताकतवर देश के रुप में और अपनी आत्मनिर्भर छवि पर जोर देता आया है। 16 साल पहले मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए सरकार ने विदेशी स्रोतों से अनुदान एवं सहायता न लेने का फैसला किया था। इससे पहले, भारत ने उत्तरकाशी भूकंप (1991), लातूर भूकंप (1993), गुजरात भूकंप (2001), बंगाल चक्रवात (2002) और बिहार बाढ़ (2004) के समय विदेशी सरकारों से सहायता स्वीकार की थी। 16 साल बाद विदेशी सहायता हासिल करने के बारे में ये निर्णय केंद्र सरकार के रणनीति में बदलाव माना जा रहा है।
आपको बता दें कि दिसंबर, 2004 में आई सुनामी के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने घोषणा करते हुए कहा, ”हमारा मानना है कि हम खुद से इस स्थिति का सामना कर सकते हैं। यदि जरूरत पड़ी तो हम उनकी मदद लेंगे।” मनमोहन सिंह के इस बयान को भारत की आपदा सहायता नीति में एक बड़े बदलाव के रूप में देखा गया। इसके बाद आपदाओं के समय भारत ने इसी नीति का पालन किया। साल 2013 में आई केदारनाथ त्रासदी और 2005 के कश्मीर भूकंप और 2014 की कश्मीर बाढ़ के समय भारत ने विदेशी सहायता लेने से साफ इनकार कर दिया था।