रिपोर्ट: सत्यम दुबे
नई दिल्ली: आचार्य चाणक्य का नाम आते ही लोगो में विद्वता आनी शुरु हो जाती है। आचार्य चाणक्य ने अपनी नीति और विद्वाता से चंद्रगुप्त मौर्य को राजगद्दी पर बैठा दिया था। इस विद्वान ने राजनीति,अर्थनीति,कृषि,समाजनीति आदि ग्रंथो की रचना की थी। जिसके बाद दुनिया ने इन विषयों को पहली बार देखा है। आज हम आचार्य चाणक्य के नीतिशास्त्र के उस नीति की बात करेंगे, जिसमें उन्होने बताया है कि इन हालात में पिता, मां, पत्नी और बेटा भी हो सकते हैं दुश्मन, आइये जानते हैं, चाणक्य की ये बातें…
ऋणकर्ता पिता शत्रुर्माता च व्यभिचारिणी।
भार्या रूपवती शत्रु: पुत्र: शत्रुरपण्डित:।।
आचार्य चाणक्य ने इस श्लोक के माध्यम से बताया है कि कर्ज लेकर उसे न चुकाने वाला पिता, पुत्र के लिए शत्रु समान होता है। अगर पिता के सिर पर कर्ज का बोझ होता है तो बेटा का जीवन कष्टकारी होता है। इस परिस्थिति में एक पिता अपने बेटे के लिए दुश्मन से कम नहीं होता है।
इसके आलावा उन्होने इस श्लोक के माध्यम से बताया कि रिश्ते में मां और संतान के बीच का रिश्ता बेहद पवित्र माना गया है। लेकिन मां अपने बच्चों के साथ एक जैसा व्यवहार न करें तो वह शत्रु समान है। इसके अलावा पति के अलावा पराए व्यक्ति से रिश्ते हैं तो वह अपने बेटे के लिए दुश्मन समान है।
आचार्य ने आगे कहा है कि इस श्लोक में कहते हैं कि सुंदर पत्नी का होना पति के लिए समस्या का कारण बन जाती है। पति के मुकाबले कमजोर और उसकी रक्षा न करने वाला पत्नी के लिए दुश्मन से कम नहीं होता है।
माता-पिता के लिए मूर्ख संतान दुश्मन से कम नहीं होती है। संतान के मूर्ख होने से माता-पिता का जीवन दुखों से भर सकता है। इसके अलावा जो माता-पिता अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा और परवरिश नहीं देते हैं वह संतान के लिए दुश्मन समान होते हैं।