रिपोर्ट: सत्यम दुबे
नई दिल्ली: आचार्य चाणक्य का नाम आते ही लोगो में विद्वता आनी शुरु हो जाती है। इतना ही नहीं चाणक्य ने अपनी नीति और विद्वाता से चंद्रगुप्त मौर्य को राजगद्दी पर बैठा दिया था। इस विद्वान ने राजनीति,अर्थनीति,कृषि,समाजनीति आदि ग्रंथो की रचना की थी। जिसके बाद दुनिया ने इन विषयों को पहली बार देखा है। आज हम आचार्य चाणक्य के नीतिशास्त्र के उस नीति की बात करेंगे, जिसमें उन्होने बताया है कि ये 4 गुण मनुष्य में जन्म से होते हैं, आइये जानते हैं कि आचार्य चाणक्य ने क्या बताया है।
दातृत्वं प्रियवक्तृत्वं धीरत्वमुचितज्ञता ।
अभ्यासेन न लभ्यन्ते चत्वारः सहजा गुणाः।।
आचार्य चाणक्य ने इस श्लोक के माध्यम से बताया है कि दान देने की इच्छा, मधुर भाषण, धैर्य और उचित अथवा अनुचित का ज्ञान, ये चार गुण मनुष्य में सहज-स्वभाव से ही होते हैं। अभ्यास से इन गुणों को प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
आचार्य चाणक्य ने बताया है कि सहज का अर्थहोता है, साथ में उत्पन्न जिसका मतलब जन्म के साथ होता है। वहीं उन्होने आगे कहा कि व्यवहार में इसे ‘खून में होना’ कहते हैं । इन गुणों में विकास किया जा सकता है, लेकिन इन्हें अभ्यास से पैदा नहीं किया जा सकता है।
आचार्य चाणक्य ने कहा कि ये गुण मनुष्य में आनुवंशिक होते हैं। इन गुणों को विकसित कियाजा सकता है, लेकिन बदला नहीं जा सकता है।