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वक़्फ़ बोर्ड नहीं संभल रहा तो हमारे हवाले करें केजरीवाल: चीफ़ इमाम

आल इंडिया इमाम आर्गेनाईजेशन के चीफ़ इमाम डॉ उमेर अहमद इल्यासी से आर एन आई न्यूज़ के सीनियर एडिटर मुमताज़ आलम रिज़वी की इमामों की तन्ख़्वाह न मिलने के मसले पर ख़ास बातचीत

By: RNI Hindi Desk 
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वक़्फ़ बोर्ड नहीं संभल रहा तो हमारे हवाले करें केजरीवाल: चीफ़ इमाम

मुमताज़ आलम रिज़वी

नई दिल्ली: दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड के तहत आने वाली सैंकड़ों मसाजिद के इमामों और मुवज़्ज़िनों को पिछले 9 महीने से एज़ाज़िया (तनख्वाह की एक शक्ल) नहीं मिला जिससे वह काफी परेशान हैं। इस सिलसिले में आरएनआई न्यूज़ के सीनियर एडिटर मुमताज़ आलम रिज़वी से ख़ास बातचीत करते हुए डॉ इमाम उमेर अहमद इलियासी (चीफ़ इमाम, आल इंडिया इमाम आर्गेनाईजेशन, इमाम हाउस दिल्ली )ने कहा कि मैं एक बात कहना चाहता हूँ कि अगर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल इमामों को तनख़्वाह नहीं दे सकते, वक़्फ़ बोर्ड की ज़िम्मेदारी नहीं संभाल सकते तो मेरा बहुत अच्छा सुझाव है केजरीवाल साहब कि आप वक़्फ़ बोर्ड हमारे हवाले कर दीजिये। हमारी इतनी ज़मीन व जायदादें हैं, वक़्फ़ बोर्ड की इतनी सारी चीज़ें हैं कि हमें किसी से कुछ लेने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।

हम आप से कुछ नहीं मानेंगे लेकिन जब तक आपके पास वक़्फ़ बोर्ड है, जब तक आप दिल्ली के चीफ़ मिनिस्टर हैं आपसे कहना पड़ेगा। एक सवाल के जवाब में इमाम इलियासी ने कहा कि हमें इस बात का इल्म है और हमने पहले भी इसके बारे में कहा है। 9 महीने का अरसा काफ़ी होता है। जो हालात हैं , कोरोना के भी हालात आये, इसकी वजह से जो पैसे की दुश्वारी है, उसका एहसास वही कर सकता है जो उस दौर से गुज़र रहा हो। जहाँ तक बात इमामों की है तो उनके पास दूसरे ज़राए नहीं होते, इमाम चूंकि मस्जिद के अंदर 24 घंटे की ड्यूटी देता है, तो जो इमाम 24 घंटे की ड्यूटी करेगा और कोई दूसरा काम नहीं करेगा, उसकी बीवी है, बच्चे हैं, अख़राजात हैं, और ज़रुरयात हैं तो उनको कौन पूरी करेगा? यक़ीनन अल्लाह पूरी करेगा, अल्लाह के घर की ज़िम्मेदारी इमाम के पास है। इमाम इलियासी ने कहा कि सबसे पहली बात यह है कि जो इमामों की तनख्वाहें हैं वह बहुत कम हैं। वक़्फ़ बोर्ड एक सरकारी मोहकमा है और क़ानून की नज़र से देखेंगे तो हिंदुस्तान का जो क़ानून है, लेबर मिनिस्टरी का जो क़ानून है, मिनिमम वेजेज़ हैं वो 19 हज़ार पांच सौ हैं।

यह लेबर के लिए क़ानून है तो इमाम तो बहुत बड़ी चीज़ हैं। आज वैसे भी इमाम की तनख़्वाह 18 हज़ार है, मोअज़्ज़िन के 15 हज़ार रूपए हैं, इसके बावजूद वह वक़्त पर नहीं मिलती। तो इन हालात को देखते हुए सभी को इसका एहसास होना चाहिए। जहां तक हमारा ताल्लुक़ है ,हमने लगातार कोशिश की है ,1993 में हज़रत मौलाना जमील अहमद इलियासी रहमतुल अलैह का जो एहसास था वह यही एहसास था। उसी एहसास के साथ उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था। और सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने के बाद ,लम्बी सुनवाई के साथ इसमें तमाम वकील जुड़े, नतीजे में 1993 में सुप्रीम कोर्ट ने एक तारीख़ी फ़ैसला सुनाया और पहले दर्जे का ऑफ़िसर इमाम को क़रार दिया। कहा कि इमाम तो 24 घंटे ड्यूटी देता है। उस वक़्त जब यह फ़ैसला आया था तो सेकंड पे कमीशन था। आज आठवां पे कमीशन होने जा रहा है, तो सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर के मुताबिक़ कम से कम 85 हज़ार तन्ख़्वाह होनी चाहिए। लेकिन चलिए कोई बात नहीं, वक़्फ़ बोर्ड के पास इस वक़्त पैसे नहीं हैं लेकिन उनको इस बात का यक़ीन तो दिलाना चाहिए।

केजरीवाल सरकार का दावा है कि वो वक़्फ़ बोर्ड को पैसे देती है और आमदनी भी है तो फिर ऐसा क्यूं हो रहा है ? इस सवाल पर चीफ़ इमाम ने कहा कि इसमें कहां रुकावट है , क्या तकनीकी मामलात हैं यह तो वही लोग जानते हैं। इस बारे में मुझे पूरी मालूमात नहीं है कि दुश्वारी कहां है लेकिन दुश्वारी तो है। लेकिन इसका हल तो निकलना चाहिए। केजरीवाल सरकार जो मुसलामानों का वोट हासिल करती है और मुसलामानों के नाम पर राजनीति करती है, तो केजरीवाल साहब हों या कोई साहब हों उसका एहसास तो होना चाहिए। वह कहते हैं कि हम बिजली का बिल कम कर देंगें, पानी का बिल कम कर देंगें। सारी सियासत कर देंगे लेकिन उनको मालूम होना चाहिए की इमाम तीन महीने से मेमोरंडम देकर आ रहे हैं ,उसके बावजूद न उसका वो कोई जवाब दे रहे हैं ,न नोटिस ले रहे हैं तो क्या वो चीफ़ मिनिस्टर नहीं हैं क्या ? क्या उनको जवाब देना नहीं चाहिए? इमामों के डेलिगेशन से मिलना नहीं चाहिए। तो केजरीवाल साहब अगर आप इमामों की तन्ख़्वाह नहीं दे सकते, अगर आप वक़्फ़ बोर्ड को नहीं चला सकते तो मेरा बहुत अच्छा सुझाव है कि आप स्तीफ़ा दे दीजिये। दूसरी बात यह है कि अगर आप नहीं चला सकते तो वक़्फ़ बोर्ड हमारे हवाले कर दीजिये। जिस तरह से गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी अपने निज़ाम को चलाती है, तो आप अगर नहीं चला पा रहे हैं तो आप हमारे हवाले कर दीजिये, हम चलाएंगे। इतनी ज़मींने हैं जायदादें हैं , हमें किसी से फिर कुछ लेने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।

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