नई दिल्ली : पत्नी की तंबाकू खाने की आदत से परेशान एक पति ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और तलाक की अपील की। पति का आरोप है कि वह तंबाकू चबाने की आदी थीं और इसलिए उनके पेट में एक गांठ हो गई। पत्नी के इलाज के लिए उसे बहुत धन खर्च उठाना पड़ा। उसने यह भी दावा किया कि वह कोई घरेलू काम नहीं करती थी और अक्सर उसके घरवालों के साथ झगड़ा करती थी। पति ने यह भी आरोप लगाया था कि पत्नी बिना बताए अपने मायके चली जाती थी।
हालांकि कोर्ट ने इन सभी आरोपों को खारिज करते हुए तलाक देने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि पत्नी की तंबाकू या खर्रा चबाने की आदत भले ही खराब हो, लेकिन यह कारण उसके पति को तलाक देने के लिए पर्याप्त नहीं है। न्यायमूर्ति अतुल चंदुरकर और पुष्पा गनेदीवाला की खंडपीठ ने कहा कि पति के आरोप सामान्य हैं। बेंच ने कहा कि, ‘यह विशिष्ट आरोप है कि चूंकि पत्नी को तंबाकू चबाने की आदत थी, इसलिए उसे पत्नी के इलाज में बहुत अधिक धन खर्च करना पड़ा। हालांकि, वह इस दलील के समर्थन में मेडिकल दस्तावेज और बिल के रेकॉर्ड पेश नहीं कर सके।’
जजों की बेंच ने कहा कि, ‘ये आरोप कुछ और नहीं बल्कि विवाहित जीवन में सामान्य खटपट का हिस्सा हैं। यह दंपती लगभग नौ वर्षों तक एक साथ रहा और पति ने मानसिक क्रूरता के आधार पर तलाक मांगा है लेकिन वह इसे साबित करने में सफल नहीं हुए। इसके विपरीत, उन्होंने स्वीकार किया कि 2008 में उन्हें एचआईवी पॉजिटिव पाया गया और पत्नी 2010 तक उनके साथ रही। शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना के कारण पति से ज्यादा पत्नी के पास हैं।’
हाई कोर्ट ने कुछ पुराने जजमेंट्स का हवाला देते हुए कहा विवाहित जीवन का पूरा मूल्यांकन किया जाना चाहिए, छोटी सी बात का उदाहरण देकर क्रूरता साबित नहीं की जा सकती। वहीं फैमिली कोर्ट का हवाला देते हुए, पीठ ने कहा कि विवाह को भंग करने के लिए पति की दलीलें इतनी गंभीर और वजनदार नहीं हैं। उन्होंने कहा कि, ‘अगर विवाह को शून्य कर दिया जाता है, तो उनके बेटे और बेटी को एक बड़ा नुकसान होगा और उनकी परवरिश प्रभावित होगी। दोनों बच्चों के सर्वोत्तम हित में, वैवाहिक बंधन को बरकरार रखना जरूरी है।’
आपको बता दें कि 15 जून 2003 को दंपती की शादी हुई थी। दोनों के बीच कुछ दिनों के बाद विवाद होने लगा। पति ने क्रूरता के आधार पर पारिवारिक अदालत में तलाक का मामला दायर किया। पति के तलाक का आधार प्रमुख रूप से पत्नी की तंबाकू या खर्रा चबाने की आदत थी। बता दें कि इस मामले में फैसला बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने फैसला सुनाया।