देवव्रत हस्तिनापुर के राजा शांतनु के पुत्र थे ,एक बार शांतनु को निषाद कन्या सत्यवती से प्रेम हो गया और वो हमेशा उसी को याद करते और उसके प्रेम में तड़पते थे।
अपने पिता महाराज की इस दशा को देखकर देवव्रत को चिंता हुई और जब उन्हें मंत्रियों द्वारा उन्हें यह पता चला की उनके पिता की यह दशा क्यों है तो वो खुद निषाद के घर जा पहुंचे।
वहां जाकर उन्होंने निषाद से कहा कि आप सहर्ष अपनी पुत्री सत्यवती का विवाह मेरे पिता शांतनु के साथ कर दें।
आगे उन्होंने यह भी कहा कि मैं आपको वचन देता हूं कि आपकी पुत्री के गर्भ से जो बालक जन्म लेगा वही राज्य का उत्तराधिकारी होगा।
कालांतर में मेरी कोई संतान आपकी पुत्री के संतान का अधिकार छीन न पाए इस कारण से मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि मैं आजन्म अविवाहित रहूंगा और तभी से देवव्रत भीष्म कहलाये।