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काशी के महाश्मशान पर खेली गई चिता की भस्म से होली, जानिए क्या हैं मान्यताएं

By RNI Hindi Desk 
Updated Date

रिपोर्ट: सत्य़म दुबे

वाराणसी: होली का त्योहार बड़े धूमधाम से देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी मनाया जाता है। देश की बात करें तो हर राज्य में इस त्योहार के मनाने की परंपरा अलग-अलग है। बात करें वर्षाने के होली की तो वहां विश्व प्रसिद्ध लट्ठ मार होली खेली जाती है। इसी के साथ ही अलग-अलग जगह अलग-अलग तरीके से होली खेलने की परंपरा है।

आज हम आपको बताते है, कि पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र बाबा भोले नाथ की नगरी वाराणसी में किस तरीके से होली खेली जाती है। इस साल 29 मार्च को होली का त्योहार मनाया जायेगा, लेकिन धर्म नगरी काशी में इसकी शुरुआत रंगभरी एकादशी से हो जाती है। काशी वाशी अपने इष्ट बाबा भोलेनाथ के साथ हाश्मसान पर चिता भस्म के साथ खेलकर होली के पहले इस पर्व की शुरूआत करते हैं, गुरुवार को हाश्मसान पर चिता भस्म के साथ काशी वाशी बाबा भोलेनाथ के साथ चिता भस्म होली खेलकर त्योहार की शुरुआत कर दिये।

मोक्षदायिनी काशी नगरी के महाश्मशान हरिश्चंद्र घाट पर कभी चिता की आग ठंडी नहीं पड़ती, चौबीसों घंटें चिताओं के जलने और शवयात्राओं के आने का सिलसिला लगातार जारी रहा है। आपको बता दें कि चारों ओर पसरे मातम के बीच साल में एक दिन ऐसा आता है जब महाश्मशान पर होली खेली जाती है। इस दौरान काशी के लोग बाबा भोलेनाथ के साथ चिता के भस्म से होली खेलते हैं।

मान्यता है कि रंगभरी एकादशी पर महाश्मशान में खेली गई इस अनूठी होली की, कि जब रंगभरी एकादशी के दिन भगवान विश्वनाथ मां पार्वती का गौना कराकर काशी पहुंचे तो उन्होंने अपने गणों के साथ होली खेली थी। बाबा विश्वनाथ अपने प्रिय श्मशान पर बसने वाले भूत, प्रेत, पिशाच और अघोरी के साथ होली नहीं खेल पाए थे। इसीलिए रंगभरी एकादशी से विश्वनाथ इनके साथ चिता-भस्म की होली खेलने महाश्मशान पर आते हैं।

आपको बता दें कि इस दिन से पंचदिवसीय होली पर्व शुरू हो जाता है। इसकी शुरुआत हरिश्चंद्र घाट पर महाश्मशान नाथ की आरती से की जाती है। भस्म की होली खेलने से पहले एक भव्य शोभायात्रा भी निकाली जाती है।

इसके पीछे एक और मान्यता है कि जब यज्ञ में सती जी ने अपने प्राणों का त्याग कर दिया था, उस वक्त भोलेनाथ और देवगढ़ खुश नहीं थे। कामदेव के भस्म होने के बाद माता पार्वती का विवाह शिव जी के साथ हुआ था। रंगभरी एकादशी के दिन ही भोलेनाथ माता पार्वती का गौना कराकर काशी ले आए जिससे शिवजी के गणों को काफी खुशी हुई।

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