देवी पुराण में वर्णन है कि एक बार दरुका नामक राक्षस को मारने के लिये भगवान शिवजी ने माता पार्वती को यह काम सौपा था. क्योंकिभोले नाथ ने स्वयम ही दरूका राक्षस को वरदान दिया था कि तुम्हे सिर्फ औरत से ही भय है. और दरुका को मारने के लिये शिव ने शक्ति की उत्पत्ति हुई।
दरअसल षट-कर्म के इच्छाधारी साधक सदैव काली की साधना करते है, ये तांत्रिक नियमों के आधीन है, जैसे कि मारण, मोहन, वशीकरण, सम्मोहन, उच्चाटन, आदि।
काली को काम रूपिणी बोला जाता है यानी कि जो काम को सफल कर दे, माता को हकीक की माला से मंत्रजाप करकर प्रसन्न किया जाता है।
हकीक की माला में काला हकीक साहस और सफलता का प्रतीक है। इसे पहनने वाले व्यक्ति में निडरता आती है। वह कठिन से कठिन परिस्थितियों से आसानी से पार पा जाता है और साधना में इसी माला का प्रयोग किया जाता है।
माता की पूजा के लिए 5 शुद्धि करनी जरुरी है जिनमे स्थान शुद्धि, तन शुद्धि, द्रव्य शुद्धि, देव शुद्धि और मन्त्र शुद्धि प्रधान है. साधना के लिये बैठते है उस जगह को शुद्ध कर लिजिये, सात्विक भोजन का सेवन करे, ब्रम्हचर्य का पालन करे.
काली की साधना में सबसे बड़ा ध्यान यह रखना होता है कि तंत्र से दूसरों को नुकसान करने वाला कभी भी सुख नहीं पाता और उसका अंजाम बुरा होता है, इसलिए सिद्धि प्राप्त करने के बाद साधकों को किसी का बुरा नहीं करना चाहिये।