{ श्री अचल सागर जी महाराज की कलम से }
बड़े बड़े महापुरुष और ऋषि मुनि ने शास्त्रों और वेदों का अध्ययन करके यह सार निकाला की ईश्वर एक है, और उसके रूप अनेक हो सकते है, शायद यही कारण है कि ईश्वर को अविनाशी कहा जाता है।
हम सभी पृथ्वी वासियों का अस्तित्व उन्ही से जुड़ा हुआ है। इसलिए ही कहा गया है की ईश्वर अंश जीव अविनाशी। हम सब उसी के अंश है।
हम सब उसी परमपिता के आशीर्वाद से जीवित है क्यूंकि उसी की कृपा से यह जीवन हमें और आपको मिला है। अन्यथा हम तो एक योनि से दूसरी योनि में जाने की पक्रिया को मृत्यु मानकर विलाप करने लग जाते है।
जिस प्रकार बिजली का सूक्ष्म अंश एक बल्ब भी जला सकता है और भारी मशीन भी उसी प्रकार ईश्वर के अंश से एक चींटी से लेकर हाथी तक जीवित रहते है।
ईश्वर दुनिया को संचालित करता है और इसी का संतुलन बनाये रखने के लिए वो आदिकाल से सुर असुर, दानव -मानव और मानवतावादी- अमानवतावादी चीज़ें भी उत्पन्न करता है और यही उसका एक दूसरा रूप है।
जो सही मार्ग पर चलने वालों को आतंकित करे वो आतंकी होता है। मानव धर्म का पालन करने वालों को शांति प्रिय कहा जाता है।
लेकिन ये परिपाटी कभी समाप्त नहीं होती है क्यूंकि ये जो विचारधारा है वो ईश्वर का आपके कर्मों के अनुसार दिया गया फल है। जिस प्रकार मांस मदिरा का सेवन किया जाता है उसी से आज सोच बदलती जा रही है। अलगाव और आतंक बढ़ता ही जा रहा है।
लोग भयभीत होकर इन लोगों को चंदा दे रहे है। किन्तु यह भी लिखा गया है की जब इन लोगों का पाप बढ़ जाता हैं तो स्वयं ईश्वर जन्म लेता है और इनका नाश करता है।
ईश्वर एक है और उसके नाम अनेक है, कोई उसे भगवान कहता है कोई उसे अल्लाह कहता है और कोई उसे जीसस कहता है। जब भगवान एक है तो उसके अनुयायियों के बीच वैमनस्य और बैर क्यों है ?
कोई भी धर्म किसी और को मारने और आतंकित करने की इजाजत नहीं देता है। इसलिए आप सोचिये की कहीं आप ईश्वर के नाम पर लोगों को आतंकित तो नहीं कर रहे है ?