आपने स्वामी विवेकानंद की ये पंक्तियां तो सुनी ही होगी की उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक रुकना नहीं। जीवन के मायनों में देखा जाए तो यह सटीक भी बैठती है।
दरअसल जीवन में ऐसे कई लोग होते है जो अपने लिए लक्ष्य तो बड़ा रखते है लेकिन कई बार बीच में जैसे ही रूकावट आती है वो अपने लक्ष्य को छोड़ देते है।
इसलिए उनके जीवन में कई बार सफलता बिल्कुल नजदीक होने के बाद भी वो हार मान जाते है। इसलिए इस सूत्र में रुकना नहीं लिखा गया है।
कई बार लोग एक-दो बार असफल होने पर अपने लक्ष्य को पाने के लिए किए जाने वाले प्रयासों को छोड़कर ही बैठ जाते हैं। इसके विपरीत अगर हम अपनी कोशिशें जारी रखें तो हमें सफल होने से कोई नहीं रोक सकता है।
इसे समझने के लिए एक छोटी सी कथा है ,एक पानी के टैंक में शार्क के साथ कुछ मछलियों को रख दिया गया और वो शार्क रोज उन मछलियों को खा जाती ! ऐसा कई दिनों तक चलता रहा। कुछ दिनों बाद उस शार्क और मछली के बीच में एक फाइबर शीट रख दी गई।
वो शार्क मछली खाने जाती और उस शीट से टकरा जाती। ऐसा कई महीनो तक चला। एक दिन वो शीट हटा दी गई और उस दिन कुछ ऐसा हुआ जो हैरान करने वाला था और वो ये की उस शार्क ने उस मछली को खाने की कोशिश नहीं की।
उसने ये मान लिया था की एक दीवार है जो उसे उस मछली तक जाने नहीं देगी। आज वो दीवार नहीं है लेकिन वो मन से हार गई है। यही हमारी पीड़ा है। हम जैसे ही कोई मुसीबत आती है ये सोच लेते है की अब ये काम तो नहीं हो पायेगा लेकिन ऐसा नहीं होता।
इसलिए स्वामी विवेकानंद के इस कथन को सदैव याद रखो की जब तक लक्ष्य को प्राप्त न कर लो उसे छोड़ना नहीं है चाहे कुछ भी हो जाए।