निकाय चुनावों में भाजपा को अप्रत्याशित जीत भले न मिली हो, लेकिन बागेश्वर से हल्द्वानी तक पालिकाध्यक्ष और मेयर के चुनाव में पार्टी की सफलता के पीछे कई महत्वपूर्ण फैक्टर रहे। इन फैक्टरों ने न केवल भाजपा को जीत दिलाने में मदद की, बल्कि मतदाताओं के मूड को भी बदलने का काम किया।
भाजपा की जीत के प्रमुख कारण
1. विकास कार्य और सीएम धामी का दौरा
पिछले पांच वर्षों में हुए विकास कार्यों और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निरंतर जिलों का दौरा करने से जनता में विश्वास कायम हुआ। कुमाऊं के बागेश्वर, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, चंपावत, रुद्रपुर और हल्द्वानी में भाजपा की जीत में यह प्रमुख कारक रहा।
2. ‘थूक कांड’ का असर
बागेश्वर में उत्तरायणी मेले के दौरान रोटी पर थूक लगाने की घटना ने सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक मंच तक बड़ा विवाद खड़ा किया। भाजपा और कांग्रेस दोनों ने इस घटना की निंदा की, लेकिन मतदाताओं में इसका गहरा प्रभाव पड़ा, जो भाजपा के पक्ष में गया।
3. हल्द्वानी हिंसा का प्रभाव
फरवरी 2024 में हल्द्वानी के बनभूलपुरा क्षेत्र में हुई हिंसा ने पूरे कुमाऊं में लोगों को झकझोर दिया। इस घटना के बाद समाज के एक बड़े वर्ग ने भाजपा का समर्थन किया, जिसका असर निकाय चुनाव में देखने को मिला।
4. विपक्ष की कमजोरी और विवादित बयान
भाजपा के मेयर प्रत्याशी गजराज का विवादित बयान, “मुझे अराजक तत्वों का वोट नहीं चाहिए,” चर्चा में रहा। वहीं, कांग्रेस प्रत्याशी ललित जोशी की निष्क्रियता और विवादों पर चुप्पी ने उन्हें नुकसान पहुंचाया।
प्रभावशाली चुनावी नारे
भाजपा के चुनाव प्रचार में “एक हैं तो सेफ हैं” और “बंटोगे तो कटोगे” जैसे नारे खूब गूंजे। इन नारों ने मतदाताओं को भावनात्मक रूप से जोड़ने में बड़ी भूमिका निभाई।
सोशल इंजीनियरिंग और आईटी सेल की ताकत
भाजपा के आईटी सेल ने विपक्ष की कमियों को उजागर करने और पार्टी की प्राथमिकताएं गिनाने में सोशल मीडिया का बखूबी इस्तेमाल किया। इसका सीधा असर मतदाताओं पर पड़ा।
चौथे राउंड में जीत का अहसास
हल्द्वानी में मेयर चुनाव के चौथे राउंड के बाद ही भाजपा कार्यकर्ताओं को गजराज की जीत का अहसास हो गया था। इसके बाद जश्न का सिलसिला शुरू हो गया और देर रात तक पार्टी कार्यकर्ताओं ने विशाल रैली निकाली।
निकाय चुनाव 2025 में भाजपा की जीत का श्रेय विकास कार्यों, मुख्यमंत्री धामी की सक्रियता, सोशल मीडिया रणनीति और विपक्ष की कमजोरियों को जाता है। चुनावी नारे और सोशल इंजीनियरिंग ने भी मतदाताओं के मूड को भाजपा के पक्ष में मोड़ने में अहम भूमिका निभाई।