बीजेपी आगामी लोकसभा चुनावों की तैयारी के तहत 10 करोड़ नए सदस्य जोड़ने का लक्ष्य लेकर चल रही है, लेकिन अभियान की धीमी रफ्तार ने पार्टी को चिंता में डाल दिया है। अब तक सिर्फ 4 करोड़ सदस्य ही बनाए जा सके हैं, जो लक्ष्य का मात्र 40% है। कई राज्य लक्ष्य से बहुत पीछे हैं, जबकि कुछ राज्यों ने शानदार प्रदर्शन किया है। आइए जानते हैं किस राज्य का परफॉर्मेंस कैसा रहा।
टॉप परफॉर्मर राज्य
असम: असम ने 50 लाख सदस्य बनाने का लक्ष्य प्राप्त किया था और अब तक 42 लाख सदस्य बनाए जा चुके हैं, जो कुल लक्ष्य का 83% है। असम इस अभियान में सबसे आगे है।
मध्य प्रदेश: मध्य प्रदेश को 1.5 करोड़ सदस्य बनाने का लक्ष्य मिला था, और अब तक यहां 1 करोड़ सदस्य रजिस्टर किए जा चुके हैं। यह कुल लक्ष्य का 65% है। एमपी बीजेपी जल्द ही 2 करोड़ सदस्य बनाने की ओर बढ़ सकती है।
उत्तर प्रदेश: देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में 2 करोड़ सदस्य बनाने का टारगेट है। अब तक 1 करोड़ सदस्य बनाए जा चुके हैं, जो लक्ष्य का 50% है। यूपी जैसे बड़े राज्य के लिए यह आंकड़ा उम्मीद से कम है, लेकिन अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर है।
सुस्त प्रदर्शन करने वाले राज्य
बिहार: बीजेपी को बिहार में 1 करोड़ सदस्य बनाने का टारगेट दिया गया था, लेकिन अब तक सिर्फ 30 लाख सदस्य ही बनाए गए हैं, जो लक्ष्य का 30% है। यह राज्य इस अभियान में बेहद सुस्त रहा है।
राजस्थान: राजस्थान को भी 1 करोड़ सदस्य बनाने का लक्ष्य मिला था, लेकिन यहां अब तक सिर्फ 25 लाख सदस्य ही बनाए जा सके हैं, जो लक्ष्य का 25% है। सरकार होने के बावजूद राज्य में अभियान की गति काफी धीमी है।
छत्तीसगढ़: छत्तीसगढ़ में 50 लाख सदस्य बनाने का लक्ष्य था, लेकिन अब तक सिर्फ 19 लाख सदस्य ही बने हैं, जो कुल लक्ष्य का 40% है। यहां की सरकार होने के बावजूद प्रदर्शन धीमा रहा है।
तेलंगाना: तेलंगाना में 25 लाख सदस्य बनाने का लक्ष्य था, लेकिन अब तक सिर्फ 7 लाख सदस्य बनाए जा सके हैं, जो लक्ष्य का 30% है।
विशेष प्रदर्शन
कर्नाटक की येलाहंका विधानसभा ने 1 लाख 45 हजार सदस्य बनाए, जो इस अभियान में सबसे आगे है।
गुजरात के राजकोट (शहर) में 1 लाख 25 हजार सदस्य बने हैं, जबकि मध्य प्रदेश के इंदौर-1 विधानसभा क्षेत्र में 1 लाख 17 हजार सदस्य बनाए गए हैं।
बीजेपी के सदस्यता अभियान में असम और मध्य प्रदेश जैसे राज्य टॉप पर हैं, जबकि बिहार और राजस्थान जैसे बड़े राज्य पार्टी के लिए चिंता का विषय बने हुए हैं। इस धीमी गति को सुधारने के लिए बीजेपी को कई राज्यों में अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है।