उत्तराखंड में भू-तापीय ऊर्जा के स्रोतों का उपयोग कर बिजली उत्पादन की दिशा में बड़ा कदम उठाया गया है। राज्य सरकार ने इस क्षेत्र में अध्ययन और विकास के लिए आइसलैंड की वर्किस कंपनी के साथ समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इसे देश की ऊर्जा सुरक्षा और सतत विकास के लिए मील का पत्थर करार दिया है।
40 स्थलों पर भू-तापीय ऊर्जा का अध्ययन
भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण और वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान, देहरादून के अनुसार, उत्तराखंड में लगभग 40 भू-तापीय स्थल चिह्नित किए गए हैं। इन स्थलों पर भू-तापीय ऊर्जा का दोहन किया जा सकता है। इस अध्ययन का पूरा व्यय आइसलैंड सरकार उठाएगी।
शुक्रवार को मुख्य सचिव राधा रतूड़ी की उपस्थिति में उत्तराखंड सरकार की ओर से सचिव ऊर्जा आर. मीनाक्षी सुंदरम और आइसलैंड के राजदूत डॉ. बेनेडिक्ट हॉस्कुलसन ने एमओयू पर हस्ताक्षर किए। इस अवसर पर वर्चुअल माध्यम से मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि आइसलैंड, जो भू-तापीय ऊर्जा के क्षेत्र में अग्रणी देश है, के तकनीकी सहयोग से उत्तराखंड इस क्षेत्र में नई ऊंचाइयों को छुएगा।
पर्यावरण और सतत विकास को बढ़ावा
मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि इस समझौते से स्वच्छ और नवीनीकरण ऊर्जा का लक्ष्य प्राप्त होगा। साथ ही, यह परियोजना पर्यावरणीय सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए समावेशी विकास के मार्ग को प्रशस्त करेगी। केंद्र सरकार के पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, नवीन एवं नवीनीकरण ऊर्जा मंत्रालय और विदेश मंत्रालय से भी इस परियोजना के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त हो चुका है।
एमओयू के दौरान प्रमुख हस्तियां
इस महत्वपूर्ण अवसर पर दिलीप जावलकर, दीपेंद्र चौधरी, रेजिडेंट कमिश्नर अजय मिश्रा, अपर सचिव रंजना राजगुरु और वर्किस कंपनी से हैंकर हैरोल्डसन और रंजीत कुंना मौजूद रहे।
भविष्य के लिए ऊर्जा सुरक्षा
यह समझौता उत्तराखंड को भू-तापीय ऊर्जा के क्षेत्र में एक प्रमुख राज्य बनाने की दिशा में एक अहम कदम है। यह न केवल राज्य को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाएगा बल्कि भारत की ऊर्जा सुरक्षा में भी योगदान देगा।