{ श्री अचल सागर जी महाराज की कलम से }
परमात्मा ने मानव समाज के उत्थान के विस्तार और उत्थान के लिए स्त्री और पुरुष की रचना यह ध्यान में रखकर की है की समाज का विस्तार तभी होगा जब जब बच्चे के जन्म लेने के उपरांत उसकी माँ स्वस्थ रहे और बच्चा उसके दूध से पोषित हो। यह एक स्त्री की रचना ही है जो मनुष्य से बिल्कुल अलग है। पशु पक्षी जीव जंतु सभी में नर और मादा की बनावट में बड़ा अंतर् है। वही प्रजनन क्रिया में भी अंडे बनने के समय निर्धारित है।
वही पुरुष की रचना थोड़ी अलग है, ईश्वर से उसे शरीर से थोड़ा अधिक ताकतवर बनाया ताकि वो परिवार का पालन पोषण कर सके। वह अपने परिवार की रक्षा करने का दायित्व लेता है वही स्त्री भी उसी के ऊपर निर्भर रहती है। पुरुष अपने परिवार और अपने पुत्रों के लिए कठोर से कठोर कार्य करने में भी सक्षम है और यह ईश्वर का विधान है जो बदला नहीं जा सकता है।
मानव रचना के बाद धीरे धीरे हज़ारों वर्षों बाद मनुष्य कबीले बनाकर रहने लगा, एक मुखिया होता था जो निर्णय लेता था उसी के अनुसार वर वधु का चुनाव होता था। उसी दौर में कई बुरे कबीले भी थे जो लोगों को लूटने का काम करते थे। धीरे धीरे उसी डर से स्त्रियाँ घर के काम देखने लगी वही पुरुष बाहर के काम देखने लगा। किन्तु धीरे धीरे विकास होता गया और अनेक समुदाय धर्म के नाम से प्रचलित होते गए। बाहुबली राजाओं और बादशाहों ने धीरे धीरे धर्म परिवर्तन करवाए और स्त्रियों की आज़ादी छीन ली।
धीरे धीरे यह समय भी बदला और स्त्री के अधिकारों की लम्बी लड़ाई लड़ी गयी लेकीन वर्तमान कलियुग में पैसा कमाने की धुन में माता पिता सत्यता और नैतिकता को त्याग कर संतान को गलत काम करने की सहमति दे रहे है। ये मालुम होते हुए भी की इससे उसका भविष्य बर्बाद हो जाएगा वो बुरे काम को पैसे के लालच में स्वीकार कर रहे है। सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या ये कृत्य बदले नहीं जा सकते क्यूंकि संस्कारों में ज़रा सी चूक से पूरा परिवार बर्बाद हो जाता है। डाका डालना, किसी का मर्डर करना, किसी स्त्री के साथ दुष्कर्म करना ये सब नैतिकता के कार्य नहीं है !
क्या माँ जो ममता की खान है वो ये जानते हुए भी की ये गलत है क्या अपने बच्चे को अपराधी बनने देगी ? लेकिन आज के इस घोर कलियुग में बच्चे नहीं बल्कि वो माता पिता अपराधी है जो सिर्फ कुछ पैसों के लालच में अपने ही संतानों के अनैतिक कृत्यों को ढक रही है। जो अपनी संतान से प्रेम करते है वो उसे अच्छे संस्कार देते है और सत्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते है।