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किसी के बोलते या गाते समय उसके मुंह से निकलने वाली सांस का अध्ययन करने का नया तरीका विकसित किया गया

By RNI Hindi Desk 
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वाशिंगटन:  इससे ना केवल यह पता करने में आसानी होगी कि कोरोना जैसी बीमारियां कैसे फैलती हैं बल्कि इससे फेस मास्क के असर के मूल्यांकन में भी मदद मिल सकती है। ‘अप्लाइड ऑप्टिक्स’ नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में मुंह से निकलने वाली सांस और आसपास की हवा के बीच के तापमान के अंतर का अनुमान लगाया जाता है बल्कि यह भी पता किया जाता है कि आसपास की हवा में फैलने से पहले सांस कितनी दूर तक जाती है।

अमेरिका स्थित रोलिंस कॉलेज से ताल्लुक रखने वाले अध्ययन के लेखक थॉमस मूर के मुताबिक, ‘नई तकनीक का उपयोग इस बात का अध्ययन करने के लिए भी किया जा सकता है कि बोलने के दौरान मुंह से सांस कैसे निकलती है और क्या इसका उपयोग संगीत के दौरान हिदायत देने या स्पीच थेरेपी में किया जा सकता है।

दरअसल, यह शोध संगीत वाद्य यंत्रों के माध्यम से हवा के प्रवाह का अध्ययन करने के लिए विकसित किया गया था। मूर ने कहा कि जो नई तकनीक विकसित की गई है वह इस तथ्य पर आधारित है कि हवा के तापमान के आधार पर प्रकाश की गति में परिवर्तन होता है। चूंकि सांस आसपास की हवा की तुलना में गर्म होती है, इसलिए सांस लेने के दौरान जो प्रकाश निकलता है वह मूल प्रकाश से थोड़ी देर पहले कैमरे पर पहुंचता है। इसका उपयोग हवा की छवियां बनाने के लिए किया जा सकता है।

मूर के अनुसार, यह तकनीक इस बात में मदद प्रदान कर सकती है कि हम घर के बाहर रहने के दौरान किस तरह का मास्क पहनें और कितनी शारीरिक दूरी बनाकर रखें। उन्होंने कहा कि महामारी ने कई संगीतकारों को आर्थिक रूप से बहुत नुकसान पहुंचाया है और ऐसी कोई जानकारी जो उन्हें फिर से पटरी पर ला सके वह महत्वपूर्ण होगी।

 

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